मंगलवार, 10 नवंबर 2009

दोहरा चरित्र नहीं तो क्या


महाराष्ट्र विधानसभा में जिस महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना एमएलए ने हिंदी में शपथ लेने वाले समाजवादी पार्टी एमएलए अबु आजमी •क्ो पीटा, उसी दल •क् एमएलए राम क्दम ने टीवी चैनलों से बातचीत में आजमी पर हमला और थप्पड़ क्ी घटना सही बताने ऊंचे स्वर में हिंदी में बोले।
राम •क्दम ने यह बयान घटना •क्े थोड़ी देर बाद ही टीवी चैनलों से बातचीत में दिया। वे विधानसभा में हुई घटना में भी शामिल थे। वे विधानसभा क्े भीतर मराठी में नारे लगा रहे थे और हिंदी में शपथ लेने वाले आजमी क्े साथ अभद्रता क्े साक्षी थे। जब वे हिंदी में शपथ लेने उचित नहीं मानते तो फिर टीवी चैनल में हिंदी में बयान देते समय वे भूल गए थे। पहले उत्तर भारतीयों पर हमला और अब ंिहंदी में शपथ न लेने क्ा दबाव •िक्स लिए? यह महज राजनीति नहीं है?
- रवींद्र क्ैलासिया

सोमवार, 2 नवंबर 2009

लाचार शिवराज •ka •kरारा जवाब...!


मध्यप्रदेश •kee राजनीति में शांत स्वभाव ••ke माने जाने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ke मंत्रिमंडल ke विस्तार •ke kaयास लोkसभा चुनाव •ke पहले से लगाए जा रहे थे, लेkeeन •kई बार यह टला। मुख्यमंत्री जो चाहते थे नहीं kर पा रहे थे और शायद यही वजह रही •kee वे विस्तार टालते रहे। जब •keeया तो उसमें उन•kee लाचार सामने आई मगर इस••ka जवाब उन्होंने विभागों •ke बंटवारे में अपने स्वभाव •ke अनुkuल जाते हुए दिया।
वैसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विभागों •ke बंटवारे में पार्टी ke दो वरिष्ठ नेताओं ko जो जवाब दिया उसे उनkee •kuटनीति• ••kaमयाबी भी •kaही जा सkती है। अजय विश्नोई और नरोत्तम मिश्रा •ko उन•ke पूर्व •दों kee भांति विभाग नहीं दिए गए। दोनों ही नेताओं पर भ्रष्टाचार •ke आरोप लगते रहे हैं। हालां•keeए• अन्य मंत्री विजय शाह •ko श्री चौहान अपनी मर्जी ke मुताबिka •kaम बजट और सुर्खियों से दूर रहने वाले विभागों से दूर नहीं रख पाए।
विश्नोई और नरोत्तम मिश्रा •ko जिन विभागों •ko दिया गया है वे उससे खुश तो नहीं हैं मगर वे संगठन •ke सामने अपनी बात भी नहीं रख पा रहे हैं। संगठन ने उन्हें मंत्रिमंडल में रखने •ko •हा था, विभाग देने •ke लिए •koई ऐसा दबाव नहीं था। वहीं सांसद से विधायk बने सरताज सिंह •ko मंत्रिमंडल में शामिल ••kर श्री चौहान ने सिख समुदाय •ko अपने पक्ष में •kरने •kee •koशिश •kee है और हरेंद्र सिंह बब्बू •ko मंत्रिमंडल से दूर रखने में सफलता पा ली है।
श्री चौहान ने बाबूलाल गौर •ke मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री रहे उमाशंkर गुप्ता •ko मंत्री बनाkर भोपाल •ke लोगों •ko खुश •िया है। मगर उन्हें गृह विभाग दिए जाने •ko लेkर kई लोग आश्चर्यचkeeत हैं क्योंke श्री गुप्ता •ke स्वभाव •ke अनुkuल यह विभाग नहीं है। देखना यह है •kee पुलिस महkमा उनke आने से •keसा महसूस kरता है।
- रवींद्र keलासिया

शनिवार, 31 अक्तूबर 2009

लाचार शिवराज सिंह चौहान



मप्र सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान बेहद लाचार नजर आते हैं। पहले तो मनमाफिक मंत्रिमंडल बनाने के लिए उनके हाथों को संगठन ने पीछे बांध दिया और अब उन्हें विभागों के बंटवारे में भी वैसा ही महसूस हो रहा है। अब वे किस से कहें अपने मन की बात किसी से कह भी नहीं पा रहे हैं।
प्रदेश सरकार में नौ मंत्रियों को शामिल कर शिवराज सिंह ने मंत्रिमंडल का विस्तार किया था। एक मंत्री को पदोन्नत किया गया। नौ मंत्रियों में वे दागी मंत्री भी हैं जिन्हें सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से किसी न किसी एजेसी ने भ्रष्टाचार के आरोप में घेर रखा है। इनमें स्वास्थ्य मंत्री रहे अजय विशनोई, नगरीय प्रशासन मंत्री रहे नरोत्तम मिश्रा, वन मंत्री रहे विजय शाह जैसे नाम प्रमुख हैं। इन लोगों को मंत्री पद देने के बाद भी श्री चौहान आराम की नींद नहीं सो पाए हैं।
मंत्रिमंडल विस्तार के बाद अब उन्हें विभाग बंटवारे में दबाव झेलना पड़ रहे हैं। नए मंत्रियों के दबाव नहीं बल्कि दबाव उनकी तरफ से आ रहे हैं जो सालों से मंत्री हैं। नाम के बड़े विभाग मिलने से दुखी मंत्रियों कैलाश विजयवर्गीय, अनूप मिश्रा, गोपाल भार्गव जैसे दमखम वाले नेता शामिल हैं। वहीं विभाग बंटवारे में बाबूलाल गौर, राघवजी जैसे नेताओं के विभाग परिवर्तन के लिए हाईकमान अनुमति नहीं देगा। अब श्री चौहान नई मंत्रियों को कौन से विभाग दे और पुराने मंत्रियों को किस तरह मनपंसद विभाग देकर खुश रखें यह चुनौती है। पुराने मंत्री हाईकमान में अच्छी खासी पैठ रखते हैं। वह भी इन मंत्रियों की बातों को खास तवज्जोह देता है।
आखिर ऐसे लाचार मुख्यमंत्री पर हम जैसे आम नागरिक को शायद दया आ जाए मगर उनके साथी और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को दया नहीं आती। जनता को सोचना चाहिए कि ऐसे लाचार मुख्यमंत्री से सवाल पूछे क्योंकि मंत्रिमंडल की अनिश्चितता का सरकार के कामकाज पर असर पडऩे लगा है।
- रवींद्र कैलासिया

शनिवार, 19 सितंबर 2009

ब्लाग प्रविष्टि ka अद्र्धशतk

साथियों मैंने अपने ब्लॉग ki शुरूआत 31 मई 2009 ko ki थी और उस समय मेरे मन में यह विचार था ki kai ऐसी बातें होती हैं जिन्हें पत्रkaरिता पेशे में होने ke बाद भी खुलkar सब ke सामने नहीं रख sakता और ब्लॉग पर उन्हें डाalkar सभी ke साथ उसे शेयर kar sakता हूं। मैंने यह नहीं सोचा था ki मैं इतने kam समय में आपka इतना स्नेह पा लूंगा। kai विचार मैंने ऐसे भी रखे जिनसे बहुत से लोग सहमत नहीं थे। उनki टिप्पणियां भी मुझे मिलीं। उनka मत मेरे से अलग था और मुझे उनke विचारों से जरा भी बुरा नहीं लगा। मुझे उसka दूसरा पहलू भी पता लगा। हालांki kuछ मामलों में उस•े बारे में मुझे पता था।
मेरे ब्लॉग ki 50 वीं प्रविष्टि kenद्रीय मंत्री शशि थरूर ke इkoनॉमी क्लास ki हवाई यात्रा ko caटल क्लास ki यात्रा kaहे जाने पर भारतीय जनता पार्टी ki युवा मोर्चा इkai ke प्रदेश अध्यक्ष विश्वास सारंग हास्यास्पद बयान पर आधारित है। इसमें मैंने यह kaहना चाहा है ki नेता सुर्खियां बटोरने ke लिए kuछ भी बयान देते रहते हैं।
- रवींद्र •kaiलासिया

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

हवाई यात्रा करने वाली गरीब जनता




केंद्रीय मंत्री शशि थरूर के इकोनॉमी क्लास में हवाई यात्रा को कैटल क्लास में यात्रा करने संबंधी बयान पर एक तरफ जहां राष्ट्रीय राजनीति में बवाल मचा है तो वहीं मप्र में भाजपा एक विधायक और युवा मोर्चे के प्रदेश अध्यक्ष विश्वास सारंग हवाई यात्रा करने वालों को गरीब बताकर क्या साबित करना चाह रहे हैं। अगर वे हवाई यात्रा करने वालों को गरीब मान रहे हैं तो भारत में गरीब की परिभाषा को बदले जाने की आवश्यकता है।
कांग्रेस द्वारा अपने केंद्रीय मंत्रियों को सादगी से रहने और दौरों के लिए इकोनॉमी क्लास में यात्रा करने के प्रेरित करने के प्रयास को श्री थरूर के बयान से झटका लगा है और विपक्ष को बैठे-बिठाए हथियार मिल गया है। श्री थरूर ने इकोनॉमी क्लास की हवाई यात्रा को कैटल क्लास कहकर राजनीति माहौलको गरमा दिया है। हालांकि उनके पक्ष में कुछ बुद्धिजीवी सामने आए हैं जिनका मानना है कि कांग्रेस हाईकमान के मंत्रियों के लिए बनाए गए दिशा-निर्देशों से पाखंड और ढोंग को बढ़ावा मिलेगा।
वहीं दूसरी तरफ प्रदेश में सुर्खियों में बने रहने के लिए बयानवीर नेता भी बात की गंभीरता को समझे बिना बयान जारी कर देते हैं। श्री सारंग ने बयान दिया कि श्री थरूर देश की गरीब जनता की तुलन भेड़-बकरी कर रहे हैं और इसलिए उन्हें तुरंत मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जाना चाहिए। श्री थरूर ने हवाई यात्रा करने वालों के लिए बयान दिया था और हमारे देश की करोड़ों की आबादी वाली गरीब जनता ने हवाई जनता तो क्या उसे छूकर देखा तक नहीं होगा। क्या हवाई यात्रा करने वाली गरीब जनता है? अगर है तो फिर हम तो विकासशील नहीं विकसित देशों की श्रेणी में आ चुके होंगे।
केंद्रीय मंत्री श्री थरूर का बयान हो या भाजपा से निष्कासित जसवंत सिंह का कोई विवादास्पद मामला, नेताओं को इसे राजनीतिक चस्मे उतारकर बयानबाजी करना चाहिए। हालांकि तत्कालिक लाभ पाने के लिए लोग सुर्खियां बटोर लेते हैं मगर इसका प्रभाव दीर्घकाल में कहीं न कहीं दिखाई देता है।
- रवींद्र कैलासिया

गुरुवार, 10 सितंबर 2009

बाढ़ के बीच सूखे का अध्ययन



सरकारें किस तरह काम करती हैं यह इन दिनों देखने को मिल रहा है। केंद्र सरकार सूखे के अध्ययन के लिए विभिन्न राज्यों में अध्ययन दल ड्डभेज रहा है तो राज्य सरकारें अपने ज्यादा से ज्यादा जिलों को सूखे में शामिल करने में जुटे हैं। दोनों ही सरकारें यह तैयारी बारिश की समाप्ति का इंतजार किए बिना करने लगी हैं। अब हालात यह है कि राज्यों में जहां बाढ़ के नजारे दिखाई दे रहें तो वहीं केंद्र सरकार के सूखा अध्ययन उसमें सूखा प्रभावित क्षेत्र की तलाश कर रहे हैं।
बाढ़ के बीच सूखे का अध्ययन
सरकारें किस तरह काम करती हैं यह इन दिनों देखने को मिल रहा है। केंद्र सरकार सूखे के अध्ययन के लिए विभिन्न राज्यों में अध्ययन दल भेज रहा है तो राज्य सरकारें अपने ज्यादा से ज्यादा जिलों को सूखे में शामिल करने में जुटे हैं। दोनों ही सरकारें यह तैयारी बारिश की समाप्ति का इंतजार किए बिना करने लगी हैं। अब हालात यह है कि राज्यों में जहां बाढ़ के नजारे दिखाई दे रहें तो वहीं केंद्र सरकार के सूखा अध्ययन उसमें सूखा प्रभावित क्षेत्र की तलाश कर रहे हैं।
क्या यह फिजूलखर्ची नहीं है? जहां सरकारें मंत्रियों को फाइव स्टार होटलों में ठहरने से रोक रही हैं। पेट्रोल-डीजल की बचत करने को कह रही हैं और कहीं सरकारें अफसर-मंत्रियों को एसी चलाने पर पाबंदी लगा रही हैं। वहीं केंद्रीय अध्ययन बाढग़्रस्त प्रदेशों में इस तरह दौरे कर रहा है। क्या यह फिजूलखर्ची नहीं है? इसके लिए कौन जिम्मेदार है।
- रवींद्र कैलासिया

शनिवार, 5 सितंबर 2009

जनता और नेता के चेहरे



आंध्रप्रदेश में मुख्यमंत्री वायएस राजशेखर रेड्डी के निधन के बाद नेता और जनता के अलग-अलग चेहरे एकबार फिर सामने आए। अपने चहेते नेता को खोने वाली जनता ने जहां खुलकर अपनी मौत को गले लगाकर उनके प्रति अपने लगाव को प्रदर्शित किया तो नेताओं ने अपने चहेते नेता को खोने के बाद पर्दे के पीछे जो खेल खेला वह राजनीति का काला चेहरा था। एक तरफ रेड्डी का शव रखा था तो दूसरी तरफ उनके समर्थक अपने सुरक्षित भविष्य के लिए बेटे को कमान सौंपने के लिए पार्टी आलाकमान तक संदेश पहुंचाने में जुटे थे।
रेड्डी के हेलीकॉप्टर के लापता होने से लेकर उनके शव मिलने तक आंध्रप्रदेश में उभरी असुरक्षा की भावना ने एकबार फिर जनता और नेता के चेहरों की असलियत को उजागर कर दिया। बेचारी जनता ने जहां रेड्डी को मसीहा मानकर उनके असामयिक निधन पर अपनी जान की परवाह नहीं की और मौत को गले लगा दिया। मगर नेता की भावना इससे कहीं अलग ही नजर आई। वे अपने सुरक्षित भविष्य की तलाश में रेड्डी के विकल्प के नाम पर सोचते रहे। उन्हें शायद रेड्डी के सांसद बेटे में अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित लगा और श्री रेड्डी के अंतिम संस्कार के पहले ही उनके नाम को मुख्यमंत्री के तौर पर चला दिया।
वैसे भारत की राजनीति में यह कोई पहला उदाहरण नहीं है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भी ऐसा ही माहौल बना था और राजीव गांधी को देश की कमान सौंप दी गई थी।
- रवींद्र कैलासिया

रविवार, 30 अगस्त 2009

घरोंदे का सपना और सहकारिता विभाग की नीयत



खून-पसीने की कमाई से घरोंदे के सपने को पूरा करने के लिए लोग हाउसिंग सोसायटी में पैसे जमा करते हैं लेकिन सोसायटी के कर्ताधर्ता उनको भूखंड न देकर धोखाधड़ी कर बाहरी सदस्यों को प्लाट देते हैं। मध्यप्रदेश में ऐसे हाउसिंग सोसायटी के खिलाफ सहकारिता विभाग की मिलीभगत लंबे समय से चल रही थी और उसे तोडऩे के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अच्छी पहल की है। सहकारिता विभाग के सालों से जमे अफसरों को हटाकर नए अधिकारियों की पदस्थापना की गई है। हाउसिंग सोसायटी की गड़बडिय़ों पर पर्दा डालने वाले अफसरों को हटाने से समस्या का हल नहीं निकलने वाला बल्कि उसका स्थायी इलाज होना जरूरी है।
सरकार को सबसे पहले सहकारिता विभाग की कमान ऐसे स्वच्छ छवि के अधिकारी को सौंपना चाहिए जिसके मन में गरीब और मध्यम वर्ग के दर्द को समझने की ललक हो। जब ऊपर ऐसे अधिकारी की पदस्थापना हो जाएगी तो नीचे अधिकारी स्वत: कोई ऐसी गतिविधि नहीं करेंगे जिससे लोग ऊपर तक पहुंचें। सहकारिता विभाग में मैदानी अफसरों की संपत्ति का रिकार्ड तलब किया जाना चाहिए। कम से कम उनके पिछले पांच साल की संपत्ति का रिकार्ड देखकर उनसे पूछा जाना चाहिए संपत्ति कहां से आई। उनके विलासिता के साधनों, वाहनों के मालिकाना हक और अचल संपत्ति की जानकारी भी लेना चाहिए।
सहकारिता विभाग में कुछ मैदानी अफसर ऐसे हैं जो दूसरे राज्यों से आए हैं। सहकारी गृह निर्माण समितियों की गड़बडिय़ों पर पर्दा डालने का इन अफसरों को यह फायदा मिला कि उन्हें शहर के लगभग हर कोने में जमीन या प्लाट ऑफर होने लगे। पता चला कि उन्हें अपने रिश्तेदारों को मप्र बुलाना पड़ा क्योंकि उनके नाम से जमीन लेकर उन्हें बसाने का मौका मिल गया। ये शिकायतें आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो के आला अफसर दबी जुबान से कह रहे हैं मगर हाउसिंग सोसायटी की विवेचना अभी चल रही है इसलिए वे खुलकर कुछ भी कह नहीं रहे हैं।
अगर यह सब सच है तो सरकार को ऐसे अफसरों पर नियंत्रण पाने के लिए स्वच्छ छवि के आयुक्त की पदस्थापना करना होगी। अन्यथा सरकार की अच्छी पहल का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आएगा।
- रवींद्र कैलासिया

रविवार, 23 अगस्त 2009

स्वास्थ्य मंत्री के पीए की बीमारी नहीं जांच पाए सरकारी डॉक्टर

मप्र में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का भगवान मालिक है। इसका अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि स्वास्थ्य मंत्री अनूप मिश्रा के पीए आरपी मिश्रा के बुखार को डॉक्टर जांच नहीं पाए और उनका रविवार को निधन हो गया। श्री मिश्रा का निधन मलेरिया से होना बताया जा रहा है। बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मप्र को देश में 10 श्रेष्ठ राज्यों में होने का दावा किया जाता है और फिर बुखार से स्वास्थ्य मंत्री के पीए का निधन हो जाना यहां की स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर सवाल खड़े करता है।
शायद इसलिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेस के प्रतिपक्ष के नेता जमुना देवी तक स्वयं या अपने परिवार के किसी भी सदस्य के बीमार होने पर मप्र की स्वास्थ्य सेवाओं पर भरोसा नहीं करते हैं। मुख्यमंत्री की पत्नी को जहां बुखार होने पर मुंबई ले जाया जाता है तो जमुना देवी का भी इसी तरह मुंबई में इलाज कराया जाता है।
प्रदेश का आम आदमी ऐसे में क्या करे? उसके पास तो मप्र के सरकारी चिकित्सकों के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। महंगाई और गरीबी से वह लाचार है। सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की खराब हालात के लिए सरकार दोषी है क्योंकि मेडिकल डिग्री करने के बाद उन्हें नौकरी देने के लिए सरकार के पास आकर्षक पैकेज नहीं है। निजी अस्पतालों के प्रबंधन उन्हें सरकारी नौकरी से दोगुना ज्यादा पैसे देते हैं और अपने यहां रख लेेते हैं। फिर निजी अस्पताल उनकी तनख्वाह की वसूली मरीजों के तगड़े बिलों से करते हैं। गरीब की पहुंच से ये दूर होते हैं।
सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर स्वास्थ्य मंत्री के पीए के निधन से तमाचा पड़ा है मगर सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। उनका इलाज तो मुंबई, दिल्ली, मद्रास, अहमदाबाद जैसे शहरों के बड़े-बड़े अस्पतालों में अच्छे से अच्छे डॉक्टर कर ही देते हैं।
- रवींद्र कैलासिया

बुधवार, 19 अगस्त 2009

भाजपा नेता पाकिस्तान जाकर राजनीति करें



भाजपा नेताओं को जिन्ना बेहद पसंद आ रहा है। जिन्ना को भाजपा नेता महिमा मंडित कर रहे हैं। राष्ट्रीयता का गुणगान करने वाली पार्टी के नेताओं के इस व्यवहार पर अब लगता है कि उन्हें पाकिस्तान भेज देना चाहिए। अगर उन्हें इतना ही जिन्ना प्रेम है तो वे वहीं की राजनीति करें और भारत की जनता से मुक्ति पाएं। उन्हें शायद यह पता नहीं कि जिन्ना को लेकर उनकी कोई भी पाजिटिव टिप्पणी या उससे संबंधित कोई भी गतिविधि से देश को कितने स्थानों पर नुकसान उठाना पड़ेगा।
नेताओं का जीवन सार्वजनिक होता है और उन्हें बेहद सोच-समझकर बोलना या लिखना चाहिए। यह शायद भाजपा के नेता धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं। कुछ साल पहले ही महात्मा गांधी के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को अच्छा मानने लगी भाजपा का अचानक जागा जिन्ना प्रेम देश को अंतर राष्ट्रीय मंच पर नीचा दिखाने वाला साबित हो सकता है। पहले पार्टी के लौह पुरुष माने जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने पाकिस्तान में जिन्ना प्रेम दिखाया था और अब वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह ने किताब में देश के विभाजन में जिन्ना के स्थान पर देश में पूजे जाने वाले महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की भूमिका को प्रमुख बताकर देश के लिए मुसीबतें खड़ी कर दी हैं। हालांकि भाजपा ने जसवंत सिंह को पार्टी से निकाल दिया है मगर क्या इससे देश को होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई हो सकेगी।
- रवींद्र कैलासिया

सोमवार, 10 अगस्त 2009

सुदर्शन ने कहा मनुष्य हिंदू जन्मता है और बनता है इसाई-मुसलमान


राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व प्रमुख केएस सुदर्शन ने पिछले दिनों भोपाल में सिख संगत के एक कार्यक्रम में एकबार फिर आग मंच से उगली लेकिन समाचार पत्रों में उनके भाषण के उन अंशों का कोई भी हिस्सा कहीं दिखाई नहीं दिया। सुदर्शनजी ने कहा कोई भी मनुष्य जन्म लेते समय हिंदू होता है। और उसे बाद में इसाई या मुसलमान बनाया जाता है।
श्री सुदर्शन ने ये विचार भोपाल के जिस कार्यक्रम में व्यक्त किए उनमें सिख, बौद्ध और कुछ अन्य धर्मों के संत मौजूद थे। उन्होंने कहा कि मनुष्य के जन्म के बाद इसाई धर्म में बपतिस्मा और मुसलमान की सुन्नत की जाती है। इसके बिना कोई भी इसाई, इसाई और न मुसलमान, मुसलमान नहीं। हिंदू धर्म का इतिहास हजारों साल पुराना है। आरएसएस के पूर्व प्रमुख के भाषण के इन अंशों का गूढ़ अर्थ है जिसको आम आदमी तक पहुंचाए जाना चाहिेए।
श्री सुदर्शन के इन विचारों से कई लोग सहमत होंगे मगर वे खुलकर सामने नहीं आते जैसे श्री सुदर्शन आए हैं। धर्म निरपेक्षता की आड़ में हम विद्वानों के विचारों को आम आदमी तक पहुंचाने में क्यों परहेज करते हैं? क्योंकि सिख संगत के कार्यक्रम में चंद लोग मौजूद थे और श्री सुदर्शन की उक्त बातों में छिपे गूढ़ अर्थ को उन तक पहुंचाए जाने की जरूरत है। इससे हिंदू धर्म को लेकर फैली भ्रांतियां दूर हो सकें। दूसरे धर्म के लोग भी इस तथ्य को जानकर कुछ समझने की कोशिश करते।
- रवींद्र कैलासिया

रविवार, 9 अगस्त 2009

मुख्यमंत्री का कुत्ता हुआ बीमार



मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कुत्ता इन दिनों बुखार से पीडि़त है और राज्य के पशु चिकित्सकों की अग्निपरीक्षा चल रही है। 10 दिन से बुखार है उतरने का नाम नहीं ले रहा है और बीमारी को ठीक करने के लिए कुत्ते का पहले भोपाल और बाद में विशेष वाहन से जबलपुर ले जाया गया है।
मुख्यमंत्री के कुत्ते को लेकर पशु चिकित्सक बेहद परेशान हैं। उसका इलाज राजधानी भोपाल के राज्य पशु चिकित्सालय में किया गया था जहां चिकित्सकों ने सात दिन के इलाज के बाद हाथ उठा दिए। बाद में उसे विशेष वाहन से जबलपुर पशु चिकित्सा और पशुपालन महाविद्यालय ले जाया गया। वहां कॉलेज के डीन डा. आरपीएस बघेल सहित आधा दर्जन पशु चिकित्सा विशेषज्ञों की टीम तीन दिन से कुत्ते के बुखार पर नजर रखे हुए है। उधर भोपाल और जबलपुर का मीडिया भी कॉलेज के चिकित्सकों से लगातार कुत्ते के हाल पूछ रहा है। मगर चिकित्सक इस मामले को ज्यादा हाइलाइट नहीं होने देना चाहते क्योंकि मामला मुख्यमंत्री के कुत्ते का है। वे यह नहीं जानते कि मामला मुख्यमंत्री के कुत्ते का होने की वजह से ही मीडिया इतने पीछे पड़ा है अन्यथा ऐसे न जाने कितने कुत्ते इलाज के लिए भोपाल से दिल्ली-मुंबई तक ले जाए जाते हैं। जबलपुर के पशु चिकित्सक कुत्ते की बीमारी का पता लगाने में जुटे हैं और जल्द से जल्द उसके ठीक होने की कामना कर रहे हैं क्योंकि जितने दिन वह वहां रहेगा उतना उनके लिए सिरदर्द रहेगा।
कुत्ते के किसी हादसे का शिकार होने की आशंका को देखते हुए अब जबलपुर के चिकित्सक कहने लगे हैं कि भोपाल वालों ने केस बिगड़ कर हमारे पास भेज दिया है। भोपाल राज्य पशु चिकित्सालय में विशेषज्ञ पशु चिकित्सक नहीं हैं और उन्होंने सात दिन इलाज के दौरान उनसे पूछताछ तक नहीं कि जिससे शुरूआती समय ही उसके बुखार को काबू कर लिया जाता तो केस नहीं बिगड़ता नहीं। जबलपुर के पशु चिकित्सकों की जान ऊपर-नीचे हो रही है क्योंकि सरकार का मामला है।
- रवींद्र कैलासिया

गुरुवार, 6 अगस्त 2009

अफसर की पत्नी का असर

मप्र पुलिस भले ही विधायक की हत्या के आरोपी विधायक की गिरफ्तार में नाकाम, तहसीलदार को पिटाई करने वाले विधायक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने में कई मर्तबा सोचने वाली, किशोरी के साथ बलात्कार के मामलों में महीनों रिपोर्ट नहीं लिखने वाली और महिलाओं के गले से चैन लूटने वाले अपराधियों को पकडऩे में असफल रहने वाली हो मगर एक सरकारी महिला कॉलेज की प्राचार्य और अफसर की पत्नी के कमरे में एक छात्रा की फीस की समस्या को लेकर पहुंचे एक व्यक्ति को जरूर तीन-चार दिन के लिए जेल अवश्य भेज सकती है।
भोपाल के नूतन कॉलेज में तीन अगस्त को एक युवक अशोक पंवार एक छात्रा की मदद कर रहा था और जब उसकी सुनवाई नहीं हुई तो वह प्राचार्य शोभना बाजपेयी मारु के कक्ष में पहुंच गया। श्रीमती मारु के पति भोपाल संभाग के आयुक्त पुखराज मारु हैं। अब क्या था प्राचार्य और ऊपर से अफसर की पत्नी को अशोक पंवार का कृत्य नागवार गुजरा और उन्होंने तत्काल पुलिस को बुलाकर उनके हवाले कर दिया। फिर क्या था पुलिस को भी अफसर को खुश करने का अच्छा अवसर मिल गया और उसने अशोक पंवार को हवालात में बंद कर दिया। संभाग आयुक्त की पत्नी के कक्ष में बिना पूछे प्रवेश करने की सजा उसे यहीं तक नहीं मिली बल्कि तीन जेल में बिताने पड़े और गुरुवार को वह जेल से मुक्त हो सका।
मप्र पुलिस की यह तत्परता अफसर की पत्नी के कक्ष में बिना अनुमति के प्रवेश करने पर दिखाई दी मगर विधानसभा चुनाव में तत्कालीन विधायक सुनील नायक की हत्या के आरोपी बिजेंद्र सिंह राठौर की आज तक गिरफ्तारी नहीं होने, खिलचीपुर में नायब तहसीलदार ओपी राजपूत को पीटने वाले विधायक प्रियव्रत सिंह के खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने में वैसी तत्परता नहीं दिखाई। भोपाल-बैतूल में किशोरियों के साथ बलात्कार के आरोपियों को बचाने वाली पुलिस का यह रूप आम जनता को चौंकाने वाला है। साथ ही उन महिलाओं को भी इससे आश्चर्य होगा कि भले ही उनके गले की चैन लूटने वाले आरोपियों को मप्र पुलिस नहीं पकड़ पाए मगर अफसर की पत्नी की शिकायत पर बिना जांच-पड़ताल के किसी को भी पकड़कर तीन-चार दिन जेल की हवा खिला सकती है।
- रवींद्र कैलासिया

सोमवार, 3 अगस्त 2009

कलयुग में राखी स्वयंवर, वाह मेरे महान भारत




रविवार की रात एनडीटीवी एमेजिन पर राखी का स्वयंवर देखकर ऐसा लगा कि सीता मैया ने इसे देख रही होंगी तो सोचेंगी कि अच्छा हुआ मैं धरती में समा गई। भगवान रामचंद्रजी भी इलेश परुजनवाला को देखकर इस कलयुग नौजवान पर तरस खा रहे होंगे। सोच रहे होंगे कि जिस स्वयंवर में महिला उसे पति मानकर कैमरे के सामने माला पहना रही है वह उसे केवल डेट के लिए यह सब कर रही है। यह हमारे धार्मिक भावना के साथ मजाक भी है। क्या अब केवल मनोरंजन के नाम पर भारतीय टीवी चेनलों के पास यही बचा है। इसकी अनुमति हमारे समाज देना उचित है?
सीता का स्वयंवर हमने भले ही देखा नहीं मगर उससे जिस तरह की भावनाएँ हमारे मन में हैं उसका इलेक्ट्रानिक मीडिया ने आर्थिक रूप दोहन किया है। यही नहीं नई पीढ़ी को स्वयंवर के मायने गलत बताने के प्रयास किए गए हैं। स्वयंवर का मतलब वे भी शायद अब यही लगाएंगे कि डेट के लिए किसी को पसंद कर लोग और स्वयंवर हो गया। कुछ दिन के मनोरंजन के लिए ऐसा स्वयंवर भारतीय संस्कृति को पश्चिमी तमाचे जैसा है। पश्चिम में न तो स्वयंवर होते न विवाह। हमारे यहां जो परंपराएं हैं उनका मजाक बनाया जा रहा है। हमारे यहां इलेक्ट्रानिकमनोरंजन चेनल रेटिंग के चक्कर में इसमें टूल बन रहे हैं।
- रवींद्र कैलासिया

रविवार, 2 अगस्त 2009

बुजुर्ग ही क्यों राज्यपाल

गुजरात में राज्यपाल देवेंद्र नाथ द्विवेदी के राज्यपाल पद की शपथ लेेने के पहले ही उनका निधन हो जाने पर अब राजनीतिक पार्टियों को यह सोचना चाहिए कि उम्रदराज नेताओं को पूरा आराम करने दें। वे राजनीतिक पारी पूरी करने के बाद पार्टियां बुजुर्ग नेताओं को राज्यपाल बनाने से बाज आएं। ऐसे नेता राज्यपाल जैसे प्रतिष्ठित पद बैठने के बाद न तो अफसरों और कुलपतियों की बैठकें लेेते समय लंबे समय तक बैठ नहीं पाते। कार्यक्रमों में सीढिय़ां तक नहीं चढ़ पाते। और तो और उनकी उम्र के कारण राजभवन में चिकित्सकों की सेवाएं लेेने की ज्यादा जरूरत पडऩे लगती है।
हाल ही में केंद्र सरकार ने मप्र सहित कुछ राज्यों में ऐसे बुजुर्ग नेताओं को उठाकर राज्यपाल बनाया है जो 70 और 80 की उम्र के हो चुके हैं। प्रदेश के एक और बुजुर्ग नेता अर्जुनसिंह को भी पार्टी किसी राज्य का राज्यपाल बनाने की सोच रही थी। आखिर राजनीतिक पार्टियों को ऐसे बुजुर्ग नेताओं को सक्रिय राजनीति से अलग करने का यह तरीका क्यों अपनाना पड़ता है? क्या ये नेता मरते दम तक पार्टी की जिम्मेदारी हैं? और अगर ऐसा है तो जनता पर क्यों बोझ डाला जाता है? राजनीतिक दलों को इस तरफ सोचना चाहिए।
- रवींद्र कैलासिया

बुजुर्ग ही क्यों राज्यपाल

गुजरात में राज्यपाल देवेंद्र नाथ द्विवेदी के राज्यपाल पद की शपथ लेेने के पहले ही उनका निधन हो जाने पर अब राजनीतिक पार्टियों को यह सोचना चाहिए कि उम्रदराज नेताओं को पूरा आराम करने दें। वे राजनीतिक पारी पूरी करने के बाद पार्टियां बुजुर्ग नेताओं को राज्यपाल बनाने से बाज आएं। ऐसे नेता राज्यपाल जैसे प्रतिष्ठित पद बैठने के बाद न तो अफसरों और कुलपतियों की बैठकें लेेते समय लंबे समय तक बैठ नहीं पाते। कार्यक्रमों में सीढिय़ां तक नहीं चढ़ पाते। और तो और उनकी उम्र के कारण राजभवन में चिकित्सकों की सेवाएं लेेने की ज्यादा जरूरत पडऩे लगती है।
हाल ही में केंद्र सरकार ने मप्र सहित कुछ राज्यों में ऐसे बुजुर्ग नेताओं को उठाकर राज्यपाल बनाया है जो 70 और 80 की उम्र के हो चुके हैं। प्रदेश के एक और बुजुर्ग नेता अर्जुनसिंह को भी पार्टी किसी राज्य का राज्यपाल बनाने की सोच रही थी। आखिर राजनीतिक पार्टियों को ऐसे बुजुर्ग नेताओं को सक्रिय राजनीति से अलग करने का यह तरीका क्यों अपनाना पड़ता है? क्या ये नेता मरते दम तक पार्टी की जिम्मेदारी हैं? और अगर ऐसा है तो जनता पर क्यों बोझ डाला जाता है? राजनीतिक दलों को इस तरफ सोचना चाहिए।
- रवींद्र कैलासिया

शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

पत्रकार यानि सरकारी समितियां और सरकारी आवास...

मध्यप्रदेश में पत्रकार का मतलब शायद केवल सरकारी आवास में रहना और सरकारी समितियों में शामिल होना माने जाने लगा है। अफसर हो या नेता, पत्रकार का मतलब यही निकालने लगे हैं। जो पत्रकार निजी आवास में और बिना समिति का सदस्य होता उसे अप्रभावी पत्रकार माने जाने लगा है। सरकारी आवास और सरकारी समितियों के सदस्य कुछ पत्रकार वैसे कॉलर ऊपर कहते भी हैं इसे अपनी कामयाबी मानते हैं क्योंकि इसके लिए जितनी मेहनत वे करते हैं शायद खबर के लिए कभी नहीं की होगी।
सरकारी आवास में रहने के लिए पत्रकारों ने जितनी मेहनत की है वह उनसे स्वयं पूछना चाहिए। रोज सुबह दरबार में खड़े होकर आग्रह करना पड़ा। एक नहीं दसियों बार वे दरबार में पेश हुए तब कहीं जाकर उन्हें सरकारी आवास मिला। हालांकि इनमें से कुछ असरदार पत्रकारों को ऐसा करने की कभी जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि सरकार उन्हें खुद ओवलाइज करना चाहती है। मगर ऐसे पत्रकारों की संख्या उंगली पर गिनी जा सकती है। इनके अलावा कुछ ऐसे पत्रकार भी हैं जिनके अफसरशाही में अच्छी पकड़ थी तो जैसे ही कोई उनका अफसर वहां पहुंचा तो उसका फायदा उन्होंने उठा लिया। मगर इन दो श्रेणी के पत्रकारों की संख्या बहुत सीमित है और दरबार में हाजरी देकर आवास पाने वालों की संख्या बहुत ज्यादा।
दूसरा सरकारी समितियों में आने वाले पत्रकार आपने आपको इनमें शामिल करने के लिए जिस तरह की कवायद करते हैं वे स्वयं जानते हैं। कुछ पत्रकारों को अफसर और नेता अपने हित में उपयोग करने के लिए अपनी तरफ से समितियों में रख लेते हैं मगर ऐसे पत्रकार कई बार समितियों में होने के बाद अपनी कलम चला ही देते हैं। कुछ ऐसे समितियां हैं जिनमें सदस्य कोई सलाह तो नहीं देते मगर देशाटन पर जाने के लिए सलाह जरूर देते हैं कि इस बार कहां जाना चाहिए। फलां प्रदेश की समिति तो पांच-छह बार विदेश हो आई है इस बार आप भी हमें विदेश ले चलें। जिस काम के लिए समिति बनी है वह तो एकतरफ रह जाता है।
कुल मिलाकर मप्र में सरकारी आवासों और पत्रकार समितियां में पहुंचने की कवायद के लिए कई पत्रकार दिनचर्या ही बदल लेते हैं। जैसे इसके प्रयास करते हैं तो उनका सुबह का रुटिन बदल जाता है और वे श्यामला हिल्स व 74 बंगलों के तीन बंगलों के ईर्दगिर्द देखे जाने लगते हैं। कुछ लोग पर इसका फर्क नहीं पड़ता क्योंकि सरकारी की मजबूरी है कि उनको अगर शामिल नहीं किया उनके चयन पर उंगलियां उठ सकती हैं।
- रवींद्र कैलासिया

मंगलवार, 28 जुलाई 2009

भ्रष्टाचार केवल नाम बदलने से खत्म हो जाएगा?


मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यह कहते हैं कि आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) जैसा काम करना चाहिए वैसे नहीं कर रहा है उसका नाम बदलकर एंट्री करप्शन ब्यूरो करने का विचार है। मगर मुख्यमंत्रीजी क्या केवल नाम बदलने से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा या काबू में आ जाएगा। नहीं उसके लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति चाहिए। जब पूरे प्रदेश में यह चर्चा है कि जिलों में प्रशासन और पुलिस आदि पदों की नीलामी होने लगी है तो भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए अंदर इच्छा भी होना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने ईओडब्ल्यू के काम से असंतुष्टि भोपाल के पहले मेट्रो थाने (हबीबगंज) के उदघाटन के मौके पर व्यक्त की। उनकी यह व्यथा शायद भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाली राज्य की स्वतंत्र इकाई लोकायुक्त को लेकर ज्यादा लगती है। लोकायुक्त में राज्य मंत्रिमंडल के करीब एक दर्जन सदस्यों सहित कई अधिकारियों की शिकायतें लंबित हैं। खुद मुख्यमंत्री के खिलाफ भी एक अपराधिक प्रकरण लोकायुक्त में दर्ज है। उसे कमजोर करने के लिए मुख्यमंत्री की यह पहल ज्यादा लगती है। हालांकि अभी तक उन्होंने इसके पूर्व ऐसी बात जुबान पर नहीं लाई थी। पूर्व लोकायुक्त रिपुसूदन दयाल के जाने के एक महीने बाद श्री चौहान की ईओडब्ल्यू को भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच करने की इकाई बनाने की बात सार्वजनिक तौर पर कहने का यह पहला मौका है।
इसके पीछे मूल वजह यह है कि ईओडब्ल्यू का नियंत्रण राज्य सरकार के पास रहता है। उसका राजनीतिक इस्तेमाल बहुत आसानी हो सकता है। जबकि लोकायुक्त संगठन की स्वायत्ता के कारण सरकार का उस पर बस नहीं चलता। वैसे राज्य सरकार ने वहां मुख्य लोकायुक्त का पद कायम करने का बहुत प्रयास किया मगर फैसला नहीं हो सका। ऐसा लोकायुक्त-उप लोकायुक्त अधिनियम के प्रावधानों की वजह से नहीं हो सका। इसमेंबदलाव के लिए सरकार को विधानसभा में संशोधन ले जाना पड़ेगा। कुल मिलाकर मुख्यमंत्री को ईओडब्ल्यू का कामकाज पसंद नहीं आने का मुख्य कारण यही है भ्रष्टाचार की जांच करने वाली स्वतंत्र एजेंसी लोकायुक्त को कमजोर किया जा सके।
- रवींद्र कैलासिया

रविवार, 26 जुलाई 2009

वीआईपी सुरक्षा में लापरवाही, समीक्षा तो नहीं समाचार रुकवाने में ताकत झोंकी

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस ) प्रमुख मोहन भागवत पिछले दिनों जब भोपाल आए तो उन्हें वापस नागपुर छोडऩे के लिए भोपाल पुलिस ने कोई इंतजाम नहीं किया और जब अंतिम समय में यह लापरवाही सामने आई तो तुरत-फुरत इंतजाम किया गया। सुरक्षा की विशिष्ट श्रेणी जेड प्लस प्राप्त श्री भागवत की सुरक्षा में लापरवाही को भोपाल पुलिस ने अपनी खामियों को पता लगाने के लिए गिरेबां में झांकने की बजाय इससे जुड़े समाचारों को रुकवाने में समाचार पत्रों पर दबाव के लिए पूरी ताकत झोंक दी।
बात 24 जुलाई की है जब भागवतजी भोपाल से नागपुर के लिए केरल एक्सप्रेस से जाने वाले थे। उनके रिंग राउंड (सुरक्षा घेरे) में लगे सुरक्षाकर्मी अपनी निर्धारित ड्यूटी कर वापस लौटने लगे तो वहां मौजूद स्वयं सेवकों में से किसी ने टोक दिया अब यहां से भागवतजी के साथ कौन पुलिस वाले जाएंगे? यह सुनकर रिंग राउंड ड्यूटी में तैनात सुरक्षाकर्मी भी दंग रह गए क्योंकि किसी अन्य पुलिसकर्मी ने यह जिम्मेदारी ली ही नहीं थी। वरिष्ठ अधिकारियों को जब इस बारे में बताया गया तो उन्होंने आनन-फानन में उनको ही भागवतजी को नागपुर तक छोड़कर आने को कहा और आम्र्स गार्ड की अलग से व्यवस्था की गई।
देशभर में जहां एक तरफ वीआईपी को लेकर हंगामा मचा है वहीं भोपाल पुलिस की इसके प्रति यह लापरवाही साबित करती है कि यहां के अफसर कितने गंभीर हैं। इस खामी को लेकर आत्म-मंथन करना तो दूर भोपाल पुलिस के अधिकारी इसमें जुट गए कि यह खबर किसी अखबार में छप नहीं जाए। इसके लिए उन्होंने पूरी ताकत झोंक दी। हालांकि वे इसमें सफल भी हो गए मगर वीआईपी की गाड़ी अगर स्टेशन से छूट रही होती और रिंग राउंड को वरिष्ठ अधिकारियों को बताने का मौका नहीं मिलता तो क्या स्थिति बनती। ऐसे में वीआईपी के साथ कोई घटना होने पर जिस तरह की जिम्मेदारी तय की जाती क्या इस खामी के लिए वही जिम्मेदारी निर्धारित नहीं होना चाहिए। समाचार पत्रों को क्या पुलिस वाले अपनी वाह-वाही के लिए इस्तेमाल करने का साधन समझने लगे हैं? अपनी आलोचना सुनने या पढऩे का साहस पुलिस में नहीं बचा है? पहले के अफसरों में यह सद्गुण था और इस कारण कई सूचनाएं उन्हें समय पर मिल जाती थीं और वे घटनाओं पर जल्द नियंत्रण पा लेते थे। वीआईपी सुरक्षा में लापरवाही से राजीव गांधी की हत्या हुई तो लालकृष्ण आडवाणी, चिंदबरम पर चप्पल-जूते फेंके जा चुके हैं।
- रवींद्र कैलासिया

शनिवार, 25 जुलाई 2009

कौमार्य परीक्षण की आड़, बचीं धोखेबाज महिलाएँ?

गर्भवती महिलाओं के शादी के मंडप में बैठने के बाद मचे बवाल के बाद राजनीति उफान पर है। इस राजनीति में अब हथियार बने महिला आयोग। कांग्रेस ने जहां राष्ट्रीय महिला आयोग की एक सदस्य को कथित कौमार्य परीक्षण के लिए मप्र भेजा तो राज्य सरकार ने अपने राज्य महिला आयोग से जांच रिपोर्ट मांगी। दोनों आयोगों ने अपनी-अपनी सरकार के पक्ष में रिपोर्ट दे दी। केंद्रीय महिला आयोग ने जहां कौमार्य परीक्षण की पुष्टि कर दी तो राज्य महिला आयोग ने राज्य सरकार को क्लीनचिट दे दी कि कौमार्य परीक्षण नहीं हुआ। अब वास्तविकता क्या है आम आदमी की समझ नहीं आ रहा, किसे सही माने और किसे गलत।
महिला आयोगों के रवैये से उनकी कार्यप्रणाली पर जहां सवालिया निशान लग गया है वहीं उनके इस कृत्य से गलत ढंग से सरकारी योजनाओं का लाभ ले रही महिलाओं को एक तरह से प्रश्रय मिला है। उनके द्वारा सरकार को धोखा देकर योजना का लाभ लेने की कोशिश की गई। आज तक उनके खिलाफ राज्य शासन की तरफ से कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की गई। जबकि दूसरी सरकारी योजनाओं का गलत ढंग से फायदा उठाने वालों के खिलाफ संबंधित विभागों द्वारा एफआईआर दर्ज की जाती है। अब राज्य शासन को इस मामले को पुलिस के हवाले कर देना चाहिए। भले ही गर्भवती महिलाओं का कौमार्य परीक्षण हुआ हो या नहीं। मगर उन्होंने योजना का गलत ढंग से लाभ तो लेने की कोशिश की ही है। नेता इस तरफ ध्यान ही नहीं दे रहे हैं कि उन महिलाओं को सबक मिलना चाहिए जो गलत तरीके से सरकारी योजना का लाभ लेने चली थीं। इसमें शायद किसी को भी एतराज नहीं होगा।
- रवींद्र कैलासिया

रविवार, 19 जुलाई 2009

राजनीतिक उपद्रवी और पुलिस के असली चेहरे ..


उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री मायावती-रीता बहुगुणा विवाद के दौरान एक बार फिर राजनीतिक उपद्रवी और पुलिस के असली चेहरे सामने आ गए। इससे यह भी साबित हो गया कि इन दोनों का गठबंधन कुर्सी पर बैठे व्यक्ति के आधार पर बदलता रहता है। इलेक्ट्रानिक मीडिया इसका बहुत अच्छी तरह से खुलासा कर रहा है। प्रिंट मीडिया की काफी सीमाएं हैं जिसके वह इस गठबंधन को उजागर करने में अपना योगदान नहीं दे पा रहा है।

इलेक्ट्रानिक मीडिया को यह भी चाहिए कि रीता बहुगुणा कि मायावती के खिलाफ आखिर वह कौन-सी टिप्पणी थी जिसको लेकर इतना बवाल मचा। रीता बहुगुणा ने तो टिप्पणी पर माफी मांगने की बात कह दी मगर वह टिप्पणी कौन-सी थी जिस पर मायावती को इतना गुस्सा आया। ऐसी टिप्पणियों को भी प्रसारित किया जाना चाहिए जिससे नेताओं की जुबान पर लगाम लग सके। (मैंने न तो वह टिप्पणी कहीं पढ़ी न किसी चैनल पर देखी।) जिस तरह से नेता चुनावी सभाओं और राजनीतिक रैलियों, प्रदर्शन और सभाओं में अनाप-शनाप जो भी मुंह में आता है बोल देते हैं उस पर नियंत्रण किया जा सकेगा।

वैसे मायावती के राजनीतिक गुंडों ने जो रीता बहुगुणा के घर पर किया वह शर्मनाक ही नहीं अत्यंत घटिया है। कानून के पहरेदारों ने जिस तरह उनके कृत्य को मौन स्वीकृति दी वह समाज के लिए घातक संकेत है। कानून के पहरेदारों में वे लोग थे जो अखिल भारतीय स्तर की परीक्षाओं में बैठकर ऊंचे ओहदे पर पहुंचते हैं। अगर यह कृत्य टीआई, एसआई करता तो ये ही लोग उसे संंस्पेंड करते, कार्यशाला-संगोष्ठी में उनके बारे में कहते कि वे राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होते हैं। टीवी में जो कुछ देखा उसको देखकर लगता है कि आईपीएस अधिकारी भी लुके-छिपे ढंग से नहीं खुलकर राजनीतिक संरक्षण हासिल करने में जुटे हैं। जब विपक्ष के इतने बड़े नेता के साथ सरकार का यह रवैया है तो फिर आम जनता गलत काम के खिलाफ आवाज उठाने का सोच भी कैसे सकेगी।

- रवींद्र कैलासिया

शनिवार, 18 जुलाई 2009

नेगेटिव पब्लिसिटी के बाद रियलिटी शो ..


हरियाणा के उप मुख्यमंत्री चंद्रप्रकाश उर्फ चांद मोहम्मद के साथ निकाह करने, कथित तौर पर अलग कर दिए जाने और कुछ समय पहले दोबारा एक हो जाने की नेगेटिव पब्लिसिटी पाने वाली फिजा वाकई बड़ी कलाकार हैं? सब टीवी के एक रियलिटी शो इस जंगल से मुझे बचाओ में फिजा भी शामिल हैं।

रियलिटी शो को देखने के बाद आठ-दस महीने के दौरान चांद-फिजा के बीच संबंधों को लेकर टीवी चैनल और समाचार पत्रों में जिस तरह उन्हें जगह मिली, वह एक नाटक ज्यादा लगता है। रियलिटी शो में कहीं भी फिजा के चेहरे पर महीनों के उस तनाव की झलक दिखाई नहीं देती। ऐसे में टीवी चैनलों और समाचार पत्रों को सबक लेना चाहिए कि कहीं कोई उन्हें हथियार तो नहीं बना रहा। टीवी चैनलों और समाचार पत्रों के एक परेशानी यह है कि उनके बीच ऐसी प्रतियोगिता ्शुरू हो चुकी है जिसके चलते उन्हें मार्केट में बने रहने के लिए ्न चाहते हुए भी जानते-बूझते ऐसे समाचारों को जगह देना पड़ती है। मगर ऐसे लोगों को पब्लिसिटी मिलने से दूसरे लोगों के हौंसले भी बढ़ते हैं।

- रवींद्र कैलासिया

सोमवार, 13 जुलाई 2009

राजस्थान ने बाजी मारी


राजस्थान ने बाजी मारीबाल विवाह, सती प्रथा, विधवा के साथ बुरा बर्ताव जैसे रुढि़वादी राजस्थान ने विश्व पर्यटन के क्षेत्र में बाजी मारी है। अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन शो में जाने मानी पत्रिका टे्वल एंड लेजर के सर्वे में राजस्थान के दो शहरों ने बाजी मारी है। एक शहर तो विश्व के सर्वोत्तम पर्यटन शहर के तौर पर बताया गया है। सती प्रथा, बाल विवाह और न जाने कितनी ही कुरीतियों के कुख्यात राजस्थान की इस उपलब्धि को अब प्रदेश सरकार को पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देकर विदेशी मुद्रा कमाना चाहिए।

टे्रवल एंड लेजर पत्रिका के सर्वे में उदयपुर को जहां विश्व के सर्वोत्तम शहर के रूप में माना है तो 20 सर्वश्रेष्ठ पर्यटन शहरों में जयपुर को भी स्थान दिया है। जयपुर 12 वें स्थान पर है। उदयपुर को सर्वोत्तम स्थान दिए जाने के पीछे सर्वे में कारण यह बताया गया है कि शहर का प्राकृतिक वातावरण, पहाडिय़ां और ऐतिहासिक धरोहर के साथ सुव्यवस्थित होटल है।

देखना यह है कि राजस्थान से सबक लेकर देश के दूसरे राज्य पर्यटन को सुव्यवस्थित करने की कहां तक कोशिश करते हैं। मप्र, उत्तरप्रदेश और कुछ अन्य राज्य तो यदाकदा इस तरह के आयोजन किए जाते हैं मगर अभी तक उसका ऐसा कोई शहर विश्व के पर्यटकों के लिए बहुत आकर्षण का केंद्र नहीं बन सका है।

- रवींद्र कैलासिया

शनिवार, 11 जुलाई 2009

घर की मुर्गी अब दाल बराबर नहीं...

कहते हैं कि घर की मुर्गी दाल बराबर, लेकिन अब यह बिलकुल सही नहीं है। मुर्गी तो पहले जहां थी वहीं है लेकिन दाल आज आसमान छू चुकी है। मांसाहारी लोग पहले जहां एक टाइम दाल खाना पसंद करते थे वे अब एक टाइम मुर्गा खा रहे हैं।
आज दाल की कीमत 85 रुपए किलोग्राम है। एक महीने में इसकी कीमत में 30 रुपए का इजाफा हुआ है। वहीं मुर्गा 60 रुपए किलोग्राम के हिसाब से बाजार में बिक रहा है। शाकाहारी लोगों का दाल खाना अब बंद होता नजर आ रहा है क्योंकि तुअर दाल दूसरी दालों की तुलना में सबसे ज्यादा महंगी हो चुकी है। दूसरे दालें भी महंगी हुईं हैं लेकिन किसी भी दाल की कीमत 60 रुपए किलोग्राम से ज्यादा नहीं पहुंचा है। शाकाहारी व्यक्ति की थाली से दाल शायद अब गायब हो जाएगी। मगर मांसाहारी व्यक्ति के पास विकल्प जरूर है। वह तुअर दाल की जगह दूसरी दालों की कीमत में मुर्गा खा सकता है।
लोकसभा चुनाव के पहले जो महंगाई थी वह नई और स्थिर सरकार बनने के बाद भी लगातार बढ़ रही है। आखिर इस पर लगाम लगाने के उपाय सरकार के पास हैं भी या फिर गरीब की थाली से दिन ब दिन एक-एक सब्जी गायब होती जाएगी।
- रवींद्र कैलासिया

गुरुवार, 9 जुलाई 2009

ऐसी पुलिस चाहिए हमें...

समाज में महिलाओं के साथ असामाजिक तत्वों द्वारा छेड़छाड़ और उनके साथ जोर-जबरदस्ती के खिलाफ पुलिस की मूकदृष्टि से उसकी छवि सबसे ज्यादा खराब हुई है। भोपाल में एक घटना में पुलिस की तत्परता वाकई तारीफे काबिल है और समाज को ऐसी ही पुलिस चाहिए।
घटना भोपाल के अशोका गार्डन से मुख्य रेलवे स्टेशन जाने वाले रास्ते की है। यहां कुछ मनचले बाइक पर सवार होकर जा रहे थे। बारिश के कारण छाता लगाकर जा रही एक युवती से इन लोगों ने इस कदर छेड़छाड़ की कि उसे अपना रास्ता बदलना पड़ा। दैनिक भास्कर के एक फोटोग्राफर की नजर उस पर पड़ गई और उसने कैमरे में इन मनचलों की चार-पांच तस्वीरें उतार लीं। भला इस समाचार पत्र का कि उसने फोटोग्राफर की तस्वीरों को अखबार में जगह दे दी। समाचार पत्र में बाइक का नंबर भी था तो पुलिस ने तुरंत उसके मालिक का पता लगाया और दोनों मनचलों को पकड़ लिया। अब अगर ऐसी पुलिस समाज को मिल जाए तो कहना क्या? पुलिस ऐसी दो-चार कार्रवाई कर दे और उसका खासा प्रचार-प्रसार हो जाए तो असामाजिक तत्वों की मजाल कि वे राह चलती लड़की या किसी सार्वजनिक स्थान पर युवती को कुछ कह सकें। मगर इसमें समाचार पत्र को अपनी भूमिका का निर्वाह इस घटना जैसा करना होगा।
- रवींद्र कैलासिया

शनिवार, 4 जुलाई 2009

सरकारी अस्पताल में मोमबत्ती में प्रसव

एक सप्ताह पहले भोपाल शहर के एक सरकारी अस्पताल में छह गर्भवती महिलाओं की एक के बाद एक मौत होने की घटना के बाद भी व्यवस्थाओं में सुधार नहीं हुआ है। सप्ताह भर बाद शनिवार को अचानक बिजली गुल हो गई और एक अन्य अस्पताल में गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा शुरू हुई। फिर मोमबत्ती की रोशनी में सरकारी डॉक्टर ने उस महिला का इलाज किया और प्रसव कराया।
सप्ताह भर पहले सरकारी मेडिकल कॉलेज के महिला अस्पताल में चिकित्सकों की कथित लापरवाही से गर्भवती महिलाओं की मौत पर अधीक्षक डा। नीरज बेदी को आनन-फानन में हटा दिया गया था। इन मौतों के बाद महिला आयोग से लेकर राज्य शासन के चिकित्सा शिक्षा विभाग के दो आला अफसरों ने तुरंत निरीक्षण किया था। वहां उन्होंने डॉक्टरों की लापरवाही तो देखी मगर सुविधाओं पर गौर नहीं किया। मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया द्वारा जिस तरह खामियां बताकर इस मेडिकल कॉलेज को बार-बार चेतावनी दी जाती रही है। उन खामियों को आज तक दूर नहीं किया गया। शनिवार को राजधानी का जिला अस्पताल बारिश और तेज हवा के कारण बिजली गुल होने पर अंधेरे में डूब गया। जनरेटर चालू नहीं होने पर डॉक्टरों ने गर्भवती महिला का मोमबत्ती की रोशनी में इलाज किया। यह जनरेटर बार-बार बंद हो रहा था। क्या सरकारी डॉक्टरों के विपरीत परिस्थितियों में भी इस सेवाभाव को नजरअंदाज किया जा सकता है? अब उन अफसरों या जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कोई एक्शन होगा जो छोटी-मोटी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में सरकारी अस्पताल जैसे संवेदनशील सार्वजनिक स्थान अंधेरे में डूब गया? क्या ऐसे में कोई बड़ा हादसा हो जाने पर लोगों की जान को खतरा पैदा नहीं हो सका?
- रवींद्र कैलासिया

मप्र में मंत्रियों की अपनों बदसलूकी, जनता से क्या करेंगे?


मप्र सरकार के मंत्रियों के मुंह में लगाम नहीं है। ये लोग अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं सहित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के आनुषांगिक संगठनों के कार्यकर्ताओं के साथ भी बदसलूकी करन से बाज नहीं आ रहे तो आम जनता की क्या सुनवाई करेंगे।

खाद्य, नागरिक और आपूर्ति राज्यमंत्री पारस जैन ने नीमच की बंद पड़ी मंडी को खुलवाने की मांग कर रहे किसानों से मिलना तो दूर अफसरों से कह दिया कि मंडी बंद कर दो किसान खुद भीख मांगने आएंगे।पारस जैन नीमच जिले के प्रभारी मंत्री हैं और नीमच की बंद मंडी को खुलवाने के लिए वहां भारतीय किसान संघ (आरएसएस का आनुषांगिक संगठन) काफी दिनों से मांग कर रहा है। गुरुवार को मंत्री को किसानों ने मंडी को लेकर ज्ञापन देना चाहा तो उनका बर्ताव देखकर किसान संघ उत्तेजित हो गया। संघ के नेताओं ने मंत्री का निंदा प्रस्ताव पारित कर दिया और उनके त्यागपत्र की मांग कर डाली है।

गौरतलब है कि हाल ही में भाजपा सरकार के एक और मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने सतना के जिला केंद्रीय सहकारी बैंक अध्यक्ष कमलाकर चतुर्वेदी (भाजपा के जिले के वरिष्ठ नेता हैं) को राज्य मंत्रालय में सरेआम (मुख्यमंत्री की बैठक के बाद) अपशब्द कहे थे। इसको लेकर संगठन के दिग्गजों ने दोनों की मीटिंग कराई थी। इन उदाहरणों को देखने और सुनने के बाद लगता है कि प्रदेश की आम जनता को मंत्रियों से दूर रहना चाहिए। नहीं तो उनके साथ तो मंत्री जाने क्या करेंगे। उनकी सुनवाई तो कहीं होगी भी नहीं।

- रवींद्र कैलासिया

शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

क्या बार गर्ल के साथ बलात्कार कोई अपराध नहीं

राजधानी में 17 जून को गांधीनगर के पास हुए गैंग रैप में पुलिस की विवेचना पर एकबार फिर कई सवाल खड़े हुए हैं। जल्दबाजी में उसने पहले एक स्थानीय दुकानदार को इसमें आरोपी बनाया और अब पुलिस पीडि़त महिला के बार गर्ल होने की वजह से उसके साथ हुई घटना पर ही संदेह करना शुरू कर दिया है। पुलिस को सबसे पहले यह चाहिए कि सामूहिक बलात्कार जैसे संवेदनशील मामले में किसी पर कीचड़ उछालने के पहले साक्ष्य जुटाए।
पुलिस ने पहले एक जबलपुर-जयपुर रोड स्थित परवलिया सड़क के पास एक चाय की दुकान वाले सत्यनारायण शर्मा को पकड़ा और उसे आरोपी के रूप में प्रचारित किया। पुलिस की मौजूदगी में उसने रोते-रोते कहा कि तीन लोग उसकी दुकान पर आए थे और कॉल गर्ल की तलाश कर रहे थे। घटना स्थल पर ब्रेसलेट मिलने को पुलिस ने इतनी गंभीरता से लिया कि जयपुर में जांच कराने का बयान दे दिया और उसके दिमाग में जरा-सी देर के लिए यह सवाल नहीं उठा कि क्या गैंग रैप जैसी घटना में आरोपी इतना बड़ा साक्ष्य छोड़ सकते हैं। अपनी बात को सही साबित करने के लिए उसके द्वारा जोर देकर यह कहा जाता रहा कि आरोपी घटना के बाद जयपुर की ओर भागे हैं। फिर क्या परवलिया सड़क जैसा स्थान वैश्यावृत्ति के लिए कुख्यात भी नहीं है जो सत्यनारायण की दुकान पर कॉल गर्ल की पूछताछ की जाए। भोपाल पुलिस मुंबई में एफआईआर के मुताबिक पीडि़त महिला के पति प्रमोद से बयान लेने गई तो वहां उसे जो जानकारियां मिलीं उसको विवेचना के पहले ही सार्वजनिक कर दिया। पीडि़त महिला बार गर्ल थी, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या बार गर्ल होना अपराध है। बार गर्ल होने पर क्या किसी महिला के साथ बलात्कार की कानून अनुमति देता है। अब पीडि़त महिला के बयानों को लगातार सार्वजनिक कर रही है। जिस प्रमोद को एफआईआर में पति बताया गया वह उसका पति नहीं है और उसके द्वारा भी बलात्कार में सहयोग किया गया। इस तरह पुलिस इस मामले की विवेचना में कई लापरवाही बरतती जा रही। शायद सब इसलिए किया जा रहा है कि घटना के बाद पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए गए थे और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक ने डीजीपी से लेकर आईजी, एसपी तक की खिचाई की थी। लेकिन क्या अब पुलिस का यह रवैया ठीक है। उसे अब वैज्ञानिक साक्ष्य जुटाकर इसमें सही तथ्य सामने आने पर ही कोई बात कहना चाहिए।
- रवींद्र कैलासिया

बुधवार, 1 जुलाई 2009

मंडप में बैठी 10 फीसदी युवती गर्भवती

मध्यप्रदेश के शहडोल जिले में एक सामूहिक विवाह समारोह में 138 युवतियां मंडप के नीचे बैठी थी और उनमें से 14 गर्भवती पाई गईं। यह रहस्य उस समय खुला जब सरकारी मेडिकल टीम ने उन युवतियां की उम्र का परीक्षण कर रही थी। यह एक अखबार के लिए छोटा सा समाचार था मगर हमारे समाज के लिए बड़ा झटका है। हमारी संस्कृति के साथ इलेक्ट्रानिक मीडिया और फिल्मों द्वारा किए जा रहे खिलवाड़ का यह नतीजा है।
मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत जिला प्रशासन द्वारा सामूहिक विवाह समारोह का आयोजन किया जाता है जो शहडोल में होता है। इसमें कम उम्र की लड़कियों की शादी न हो जाए यह एहतियात बरतने के लिए जिला प्रशासन द्वारा विवाह से पहले उनकी उम्र की जांच कराई जाती है। यह एहतियात इसलिए बरता जाता है क्योंकि इसके पहले एक आयोजन में यहां एक गर्भवती युवती का विवाह हो चुका है। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री कन्यादान योजना में लड़की शादी में सरकार खर्च करती है। मंडप के नीचे बैठी युवतियों में से 10 फीसदी के गर्भवती होना समाज को सतर्क रहने के संकेत हैं। यह तो सरकारी आयोजन था तो पता चल गया। परिवार के लोगों और स्वयं युवतियों को इस दिशा में सोचना चाहिए। जिससे उनका भविष्य खराब न हो।
- रवींद्र कैलासिया

सोमवार, 29 जून 2009

1946 में भोपाल के हिंदूओं की हालत

आजादी की दहलीज पर जब भारत खड़ा था और राष्ट्रीय सरकार के उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल छोटी-छोटी रियासतों को भारत में मिलाने की कवायद कर रहे थे तब 30 जून 1946 में अलग-अलग विचारधारा वाले हिंदू नेताओं के उन्हें जो आवेदन पत्र दिया उसे पढऩे पर हिंदुओं के साथ हो रहे व्यवहार को लेकर आज रोंगटे खड़े हो सकते हैं। तब मुसलमानों द्वारा कई तरह से ज्यादती की जाती थी। राजनैतिक संरक्षण में धर्म परिवर्तन होता था। उस आवेदन के तथ्यों को पढऩे के बाद लगता है कि भोपाल में हिंदुओं की हालत में बहुत कम बदलाव आया है।
सरदार वल्लभ भाई पटेल को दिए गए आवेदन में भोपाल के भैरोंप्रसाद, उद्धवदास मेहता, लक्ष्मीनारायण शर्मा, बाबूलाल शर्मा, लक्ष्मीनारायण सिंहल, मदनलाल गुप्ता, नारायणदास सिंहल, राजमल वैश्य, जगन्नाथ सर्राफ, रामनारायण अग्रवाल, मिश्रीलाल तिवारी, निर्मल कुमार जैन, चतुर्भुज दास अघ्रवाल ने हस्ताक्ष किए थे। यह आवेदन भोपाल समाचार नाम के साप्ताहिक समाचार पत्र ने सात अक्टूबर 1947 को प्रकाशित किया था। उस समय के हालात बताते हुए इन लोगों ने लिखा था कि जब से लड़ाई चालू हुई तब से फूड कंट्रोल, राशन, टेक्सटाइल विभाग द्वारा हिंदूओं पर अत्याचार किया जा रहा है। मुस्लिम पक्षपाती नीति के कारण हिंदुओं को सदैव शिकार बनाया जाता रहा है। हिंदू मजदूर और किसानों की हालत दयनीय बताई गई।धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर बताया गया कि भोपाल शहर में मस्जिद के 25 कदम के फासले पर रात हो या दिन कभी-भी बाजा नहीं बजाया जा सकता। यदि किसी मंदिर की मरम्मत के लिए आवेदन दो तो नामंजूर हो जाती है जबकि हर साल मस्जिदों की वृद्धि होती रही। मगर मंदिर बनाया जाना लगभग असंभव बताया गया। अखबार ने 1931 और 1941 की भोपाल राज्य की आबादी की तुलना की थी। 1931 में जहां भोपाल राज्य में निम्न हिंदू वर्ग 167017, अन्य हिंदू 396089, जंगली जाति 64485, जैन, सिख आदि 60093 और मुसलमान 88 हजार थी वहीं 1941 में क्रमश: यह आबादी 187243, 409960, 69339, 69003 और 109870 हो गई।
1931 में भोपाल राज्य की आबादी में मुसलमान का प्रतिशत 12 था जो 1941 मं 14 फीसदी हो गया। भोपाल शहर की आबादी 1931 में 61033 थी जिसमें मुसलमान 60 फीसदी थे। 1941 में भोपाल शहर की 75000 की आबादी में 66 फीसदी मुसलमान हो गए। तब हिंदू नेताओं ने आवेदन में यह आशंका जताई थी कि अगर यही वृद्धि दर रही तो 50 साल में भोपाल में गैर मुसलमान आबादी नही ंबचेगी। इसके लिए उन्होंने धर्म परिवर्तन को जिम्मेदार बताया था। आरोप लगाया था कि सरकारी कर्मचारी मुसलमान गुंडों को संरक्षण देते थे और हिंदू स्त्रियों व बच्चे को शिकार बनाते थे। रियासत में अलग महकमा था जिसका स्थानीय काजी प्रधान होता था। यह महकमा धर्म परिवर्तन का काम करता था। धर्म परिवर्तन में मुसलमानों की कई गुप्त संस्थाएं भी थीं। हिंदू महिलाओं के अपहरण की आशंका हमेशा बनी रहती थी।
समाचार पत्र ने लिखा था कि भोपाल राज्य में मुसलमानों को बसाने का काम किया गया। बाहरी मुसलमानों को उच्च पदों पर बैठाया गया या नौकरियां दी गईं। पठान पेशावर और उत्तर पश्चिम सीमांत से फौज में भती कर लोगों को लाया गया जो अपने आपको भोपाली बताते हैं। तिब्बत में लूटमार करने वाले रज्जाकों ने कश्मीर में शरण ली मगर वहां से भगाए तो वे भोपाल आ गए। यहां उनके लिए सुविधा आदि देने हेतु अलग महकमा बनाया गया। बड़े-बड़े ठेके राज्य के बाहर के मुस्लिमों को दिए गए। आवेदन में बताया गया था कि सरकारी नौकरियों में भी हिंदुओं को जगह बहुत कम थी। सात हजार में से केवल 400 हिंदू थे। ये भी निचले ओहदों के कर्मचारी ज्यादा थे। पांच मिनिस्टर्स में कोई हिंदू नहीं था। 30 सेक्रेटरी व अंडर सेक्रेटरी में 1, चार हाईकोर्ट जज में 1, दो सेशन जज में से शून्य, 18 दूसरे जज में से चार हिंदू थे। एक इंस्पेक्टर जनरल पुलिस और दो डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल पुलिस में से कोई भी नहीं तो पांच सुपरिटेंडेंट पुलिस में से एक हिंदू था। 12 इंस्पेक्टर पुलिस में से 2, 63 सब इंस्पेक्टर पुलिस में से 3, 140 हेड कांस्टेबल मेंसे पांच तो लगभग 1000 कांस्टेबल में से 50 हिंदू सिपाही थे। चारों नाजिम व डिप्टी नाजिम मुसलमान थे। वहीं 20 तहसीलदार में से 3, 25 नायब तहसीलदार मे से दो हिंदू ते। इन आंकडों को आधार बनाकर तत्कालीन हिंदू नेताओं ने सरदार पटेल को बताया था कि भोपाल राज्य में हिंदुओं की हालत काफी दयनीय है। यह आवेदन तब समाचार पत्र ने प्रकाशित किया था। यह समाचार पत्र भोपाल राज्य के इतिहास की एक पुस्तक में उपलब्ध है।
- रवींद्र कैलासिया

रविवार, 28 जून 2009

बोरिंग मशीन ऑपरेटर से मंत्री तक


केंद्रीय मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री डी नेपोलियन की जीवन यात्रा संघर्ष भरी है। दो दशक पहले तक बोरिंग मशीन ऑपरेटर का काम करने वाले श्री नेपोलियन की मेहनत लोगों के लिए एक उदाहरण है जो पुराने दिनों को भूल जाते हैं। श्री नेपोलियन ने अपने जीवन के उन दिनों को याद करते हुए मध्यप्रदेश के प्रवास के दौरान जब इसका खुलासा किया तो लोग आश्चर्यचकित रह गए मगर केंद्रीय मंत्री का ह्रदय उस समय को याद कर प्रफुल्लित हो रहा था।श्री नेपोलियन मध्यप्रदेश प्रवास के दौरान रतलाम पहुंचे थे। उन्होंने बताया कि उनके बड़े भाई कृपाकरण के साथ वे 25 साल पहले काम की तलाश में दक्षित भारत से रतलाम पहुंचे थे। यहां नलकूप खनन का काम मिला और उन्होंने बोरिंग मशीन ऑपरेटर का काम किया। साल दो साल नहीं बल्कि पांच साल बोरिंग मशीन ऑपरेटर रहे। इसके बाद दक्षिण भारत की फिल्मों में काम किया। अभी वे डीएमके से सांसद हैं और केंद्र में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के राज्यमंत्री हैं।

- रवींद्र कैलासिया

शनिवार, 27 जून 2009

क्या मुख्यमंत्री केवल पार्टी कार्यकर्ताओं का?


मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक बयान दिया है कि नशे के कारोबारियों को भाजपा से लात मारकर निकालेंगे। यह बयान किसी पार्टी का प्रमुख का नहीं बल्कि एक प्रदेश के मुखिया है और अगर वे वाकई इस तरह की विचारधारा वाले मुख्यमंत्री हैं तो उन्हें प्रदेश में शराब के कारोबार पर पाबंदी लगाना चाहिए। मगर वे ऐसा नहीं कर रहे हैं बल्कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष या संगठन के दूसरे प्रमुख पदाधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रहे हैं।

मुख्यमंत्री को अपने इस विचार का पालन हरियाणा और गुजरात की तरह शराब पर पाबंदी लगाकर करना चाहिए। इससे वे न केवल भाजपा कार्यकर्ताओं को नशे के क ारोबार से दूर रख सकेंगे बल्कि समाज को भी एक बुराई से दूर कर सकेंगे। उन्हें प्रदेश की महिलाएं और बच्चे सबसे ज्यादा दुआएं देंगे। मगर वे ऐसा नहीं कर सकेंगे क्योंकि इससे प्रदेश को जितना राजस्व मिलता है उसकी भरपाई के वे दूसरे रास्ते तलाश नहीं सकते। वैसे उनकी यह चिंता बहुत अच्छी है लेकिन उन्हें प्रदेश का मुखिया होने के नाते केवल पार्टी कार्यकर्ताओं के बारे में नहीं राज्य की समूची जनता का ध्यान कर कोई बात कहना चाहिए। यही नहीं उन्हें दोहरे चरित्र की भूमिका नहीं निभाना चाहिए और अगर वे पार्टी कार्यकर्ताओं को नशे के कारोबार से दूर रखना चाहते हैं तो शराब पर पाबंदी लगाकर उनका भला कर सकते हैं।

दूसरी बात यह कि मुख्यमंत्री को क्या लात मारकर निकालने जैसे वाक्यों को सार्वजनिक तौर पर इस्तेमाल करना चाहिए। भले ही यह बात उन्होंने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए कही हो मगर मुख्यमंत्री के नाते उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे संभ्रांत भाषा का उपयोग करेंगे। किसी के दिल को चोट न पहुंंचे ऐसी भाषा तो कतई उपयोग नहीं लाएंगे।


- रवींद्र कैलासिया

शुक्रवार, 26 जून 2009

अब उनकी मां वापस आ पाएगी

  • आज
    सात साल की कोमल और आठ साल के उसके भाई अमन बिन मां के हो गए हैं। उनकी
    मां इस दुनिया में नहीं है और आरोप है कि उनके पिता ने उसे पीट - पीट कर मारा डाला और
    वह भी जेल में है। इस पूरे मामले में पुलिस की लापरवाही सामने आई कि उस से सूचना मिल
    गई थी लेकिन उसने सूचना पर जाना तो दूर सूचना देने वाले व्यक्तियों को ही थाने में रात भर
    बैठाकर रखा और जब महिला की लाश मोहल्ले में मिली तब तुरत - फुरत उन्हें भागने को कहा।मामला मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में राज्य मंत्रालय के सामने बनी झुग्गीबस्ती भीमनगर है।
    पति जीतेंद्र- पत्निी मीना की रात को पिटाई कर रहा था। उसके भाई महेंद्र ने बीच - बचाव कि
    या जब वह नहीं माना था जीजा अशोक के साथ पुलिस थाने में सूचना देने पहुंचा। नई गाड़ी थी
    जिसका नंबर आरटीओ से नहीं मिला था। जीजा शराब के नशे में था। पुलिस ने यहां अपराध नियंत्रण की संवेदनशील नजरों से दोनों को रातभर बैठने को कहा। मगर
    उनकी सूचना पर ध्यान तक नहीं दिया और नींद लेने लगे। सुबह उनकी नींद तब खुली जब भी
    मनगर में एक महिला की लाश मिलने की सूचना आई। यह वही महिला थी जिसे पति पीट रहा
    था। पुलिस की नींद फुर्र हो गई और उन्होंने जीजा - साले को कहा भागो सालों बिना नंबर की
    गाड़ी में क्यों घूमते हो।पुलिस ने तो उन्हें भगा दिया मगर जब महेंद्र और अशोक वहां पहुंचे तो माजरा देखकर उन्हें
    पुलिस के रवैये पर जमकर गुस्सा आया। महिला के दोनों तरफ दो बच्चे कोमल और अमन रो
    रहे थे। आखिर अब इन मासूमों को कौन बताए अब उनकी मां वापस नहीं आएगी। शायद आज
    इन मासूमों की जिंदा होती अगर जनता के रखवाले समय पर सक्रिय हो जाते। आखिर पुलिस में
    कब संवेदनशीलता जागेगी।

- रवींद्र कैलासिया

गुरुवार, 25 जून 2009

जंगल बाघ, बाबा और बागी का







सतना जिले के बिछियन में दर्जन भर लोगों को जिंदा जलाकर मार देने वाले विंध्य क्षेत्र में सक्रिय डाकू सुंदर पटेल उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश पुलिस के घेराबंदी के तमाम दावों के बाद भी वह लगातार मोबाइल बदल कर लोगोंम को डरा-धमकाकर अड़ी बाजी कर रहा है। हजारों में नहीं बल्कि लाखों में चौथ वसूल रहा है। मैंने भी पत्रकार के नाते उसके मोबाइल नंबर साक्षात्कार लिया तो उसने धमकी भरे अंदाज में अपने इरादे बताते हुए कहा जंगल बाघ, बाबा और बागी का होता है। सुंदर पटेल से बातचीत के कुछ अंश मैं अपने ब्लॉक पर डाल रहा हूं जिसको सुनकर डाकुओं के विचारों को जान सकेंगे। उसने चर्चा में साफतौर पर धमकाया जंगल सरकार नहीं है। बाघ, बाबा और बागी के जंगल से कुछ भी चीज ले जाओगे को उसके बदले पैसा तो देना होगी। उसने विंध्य क्षेत्र में बाक्साइट खदानों के मालिकों, सड़क के ठेके ले रहे लोगों से चौथ वसूली का सिलसिला बंद नहीं किया है। पुलिस को भी इसकी सूचना मिलती रहती है। हाल ही में उसने सतना के एक बाक्साइट खदान मालिक पर तीन लाख रुपए की अड़ी डाली। सुंदर पटेल मोबाइल पर बात करने के पहले पूरी सतर्कता बरता है और नजर रखता है कि कहीं कोई पुलिस का मुखबिर तो नहीं है। जब मैंने उसके एक मोबाइल नंबर पर कुछ दिन पहले बात की थी तब उसने सीधे फोन नहीं उठाया बल्कि किसी अन्य व्यक्ति ने उसे अटैंड किया। 15-20 मिनट बाद उसी नंबर पर मेरे मोबाइल पर घंटी बजी और दूसरी तरफ से आवाज आई मैं सुंदर पटेल बोल रहा हूं। उसने लगभग 10 मिनट बात की। इस दौरान तत्कालीन सतना एसपी जिनका हाल ही में तबादला हुआ है और एसडीओपी से हुई बातचीत के बारे में बताया। सुंदर े एसपी के हुई गरमा-गरम बहस को लेकर बताया कि उन्होंने थाने से मुझे एक नंबर पर मोबाइल लगाया था। डकैत ने कहा जब उन्होंने धमकाना शुरू किया तो उसने भी उन्हें धमकी भरे अंदाज में कह दिया था कि दम है तो मुझे पकड़कर बता दो। इसी तरह एसडीओपी से भी कमोबेश यही बात हुई क्योंकि वे मेरे रिश्तेदारों और मित्रों को बेवजह परेशान कर रहे थे। एक धार्मिक आयोजन को लेकर उसने बतया कि मेरे रिश्तेदार के आयोजन के खाने में पुलिस वालों ने मिट्टी डलवा दी थी। यह कौन-सी बात है।



- रवींद्र कैलासिया

बुधवार, 24 जून 2009

समलैंगिक संबंधों पर पाटिल की सफाई...

पंचायत सचिव के साथ समलैंगिक संबंध स्थापित करने के आरोपों में फंसे मप्र कैडर के आईएएस अधिकारी ज्ञानेश्वर पाटिल अब तमाम अधिकारियों और प्रेस के सामने सफाई देते फिर रहे हैं। अपने विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ आईएएस अफसर इंद्रनील दाणी से लेकर अपने साथ काम कर चुके राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी से रूबरू मुलाकात कर वे सफाई दे रहे हैं। आमतौर पर समाचार पत्रों से दूर रहने वाले श्री पाटिल इन दिनों समाचार पत्रों में सफाई देने के लिए खुलकर बोल रहे हैं। दैनिक भास्कर को पूरे घटनाक्रम का ब्योरा दिया है।वे बताते हैं कि रात सवा नौ बजे बच्चे को डॉक्टर को दिखाने के बाद पत्नी और बच्चे को घर के लिए रवाना कर स्वयं आफिस में रुकने की बात कह रहे हैं। पंचायत सचिव को पंचायत के कुछ रिकार्ड के साथ रात को दफ्तर में बुलाया था और काम संतोषजनक नहीं पाने से उसके डांट लगाई। उसे बाहर जाने का कहकर वे शौच के लिए कक्ष के शौचालय में चले गए और जब बाहर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आई तो देखा पंचायत सचिव अद्र्धनग्न हालत में शोर मचा रहा था और मीडिया को पुकार रहा था। श्री पाटिल ने यह घटनाक्रम बताते हुए अपनी सफाई दी है। वहीं श्री पाटिल के साथ काम कर चुके अधिकारी घटना में दम होने की बातें कर रहे हैं तो वरिष्ठ अफसरान वास्तविकता पंचायत सचिव या श्री पाटिल को पता होने की बात कह कर कन्नी काट रहे हैं। मगर इस घटना ने पूरे प्रशासनिक हल्के को हिलाकर रख दिया है। इसको लेकर वैसे अभी तक आईएएस अधिकारी खुलकर सामने नहीं आए हैं लेकिन श्री पाटिल इसे उनके खिलाफ षडय़ंत्र बता रहे हैं। दूसरी तरफ इस घटना के प्रभाव धीरे-धीरे दिखाई भी देने लगे हैं। हाल ही में दो दिन पहले पंचायत एवं ग्रामीण विकास के एक दफ्तर विकास आयुक्त कार्यालय में एक पेंशनर ने जब पेंशन प्रकरण का निराकरण नहीं होने पर कपड़े उतार हंगामा मचाया तो सचिव अनिल श्रीवास्तव इतने घबरा गए कि उन्होंने पेंशनर से मिलने से इनकार कर दिया। दबी जुबान से वे एक अधिकारी से बोले साहब वह कपड़े उतारकर खड़ा है। आप मिल लीजिए, अभी ज्ञानेश्वर पाटिल का मामला हुआ, मैं तो नहीं मिलूंगा। ये संकेत प्रशासनिक व्यवस्था के लिए घातक साबित हो सकती है। राज्य शासन को पंचायत सचिव-आईएएस अधिकारी के मामले की जल्द से जल्द निष्पक्ष जांच उसका खुलासा करना चाहिए जिससे दूसरे अधिकारी प्रशासनिक कंट्रोल के लिए निर्णय लेने में टालमटोल नहीं कर सकें।

- रवींद्र कैलासिया

मंगलवार, 23 जून 2009

गरीबों का मजाक न उडाएं लालू


लालू प्रसाद यादव और उनकी पार्टी को लोकसभा चुनाव में जनता ने सबक सिखा दिया है मगर लगता है कि अभी-भी उनकी समझ नहीं आ रहा है। वे नौटंकी कर गरीबों का मजाक उड़ाने से बाज नहीं आ रहे हैं। आलीशान गाड़ी में बैठकर गरीबों को 500-500 रुपए के नोट बांट रहे हैं। और तो और उन्हें न जाने किस बात की खुशी हुई है जो अद्र्धनग्न अवस्था में उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े गरीबों को मिठाई खिला रहे हैं। हार का स्वाद चखने के पहले हवा में उड़ान भर रहे लालू ने सोनिया गांधी का साथ छोड़ा और फिर दूसरे हवाई नेता बन चुके रामविलास पासवान से हाथ मिलाया। जनता द्वारा बुरी तरह ठुकराए जाने के बाद उन्हें पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता याद आने लगे। इसके लिए उन्होंने कार्यकर्ताओं को स्वादिष्ट व्यंजन खिलाए। इन व्यंजन का स्वाद तो कार्यकर्ताओं ने चख लिया मगर पार्टी को मिली हार के कड़वे सच को वे हजम नहीं कर पा रहे हैं। लालू को इसके बाद मतदान केंद्रों पर पहुंचकर उन्हें हार दिखाने वाले मतदाताओं तक जाने की याद आर्ई। वे गरीबों की बस्तियों में पहुंचे जिसकी तस्वीरें टीवी पर दिखाई गईं। दृश्यों में जो दिखाई दिया उससे लगता है कि हार के बाद भी वे गरीबों का मजाक उड़ाने से बाज नहीं आ रहे हैं। शायद उन्हें अभी भी अपने पैसे का घमंड है। तस्वीरों में दिख रहा था कि लालू आलीशान गाड़ी में बैठे हैं और सीट के एक कोने से पांच-पांच सौ के नोट उठाकर गरीबों को देकर उनके सिर पर हाथ फेर रहे हैं। उनका यह व्यवहार क्या गरीबों के दिलों में जगह बनाने के लिए काफी है।

- रवींद्र कैलासिया

रविवार, 21 जून 2009

शिव के गुस्से का शिवराज द्वारा मजाक..




भगवान शिव के कऱोध के बारे में कहा जाता है कि उनके गुस्से से भगवान बऱह्मा तक घबराते हैं। मगर उनके नाम के साथ मध्यपऱदेश में राज कर रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गुस्से का सरेआम मजाक उड़ रहा है। मुख्यमंत्री ने शुकऱवार को अपने गुस्से का शायद पहली बार इजहार किया जिसमें सामने थे पुलिस महानिदेशक संतोष कुमार राउत और भोपाल आईजी शैलेंदऱ श्रीवास्तव, एसपी जयदीप पऱसाद। गुस्से की वजह थी भोपाल में लूट की घटनाएं बढ़ रही हैं और सरेराह अपराधियों द्वारा महिलाओं के साथ गैंग रेप जैसी घटनाएं की जा रही हैं। मगर सीएम के गुससे में इतना दम था कि रात के अंधेरे में सरकार ने पऱदेश के ५० में से २५ जिलों के एसपी बदल िदए और तीन रेंज के छह आईजी-डीआईजी को हटा िदया मगर न तो शैलेंदऱ श्रीवास्तव का नाम था न जयदीप पऱसाद का।
मुख्यमंत्री शायद यहां असहाय महसूस कर रहे हैं क्योंकि जिन अधिकारियों की डोर उनके हाथ में नहीं हैं। आखिर उनके गुस्से के चंद घंटे बाद जो पुलिस के थोकबंद तबादला आदेश जारी हुए उससे तो यह लगता है। उनके गुस्से में भोपाल की जनता की पीड़ा तो नजर आ रही थी मगर तबादला आदेश में उनकी पीड़ा नजर नहीं आई। क्या वे जनता को अपने गुस्से के बाद भी अफसरों को हटा नहीं पाने की वजह बता पाएंगे।
बढ़ते अपराधों के बारे में माना जाता है कि पुलिस की अपराधियों के साथ सांठगांठ हो चुकी है या उनका कंट्रोल समाप्त हो चुका है। पुलिसिंग सही तौर पर नहीं हो रही। न तो रात्रिगश्त की जा रही न अपराधियों की सही तौर पर की जा रही। न अपराधों में पकड़े जा रहे नए अपराधियों का सही रिकाडर् रखा जा रहा। पढ़ने के लिए भोपाल आ रहे छात्रों के रिकाडर् को रखे जाने की आज जरूरत है जिसके लिए थाना स्तर पर ज्यादा काम होने की आवश्यकता है। बीट में सिपाही और हवलदार को ज्यादा काम करने की जरूरत है। जगह-जगह हास्टल बन जाने से उन्हें घूम-घूमकर उनमें रह रहे छात्रों के बारे में हर हफ्ते-दस दिन में उनके बारे में पूछताछ करने की जरूरत है। उनके रहन-सहन पर लगातार नजर रखने की आवश्यकता है। उनके पड़ोसियों से उनके बारे में पूछताछ करने आवश्यकता है।
पुलिस जब ये सारे काम करेगी तो जनता में विश्वास जागेगा और पुलिस की आलोचना होने से बचेगी। दूसरे राज्यों की तरह अपराध दजर् होने से परहेज की पऱवृत्ति को त्यागना होगा। जितने ज्यादा अपराध दजर् होंगे उतने ज्यादा पुलिस को इनवेस्टीगेशन करना होगा जिससे अपराधियों की धरपकड़ होगी और फिर अपराधियों में खौफ बैठेगा कि कहीं कुछ किया नहीं उन्हें पुलिस पकड़ लेगी।
एकबार फिर मुख्यमंत्री के गुस्से पर आता हूं। वे दिखावा नहीं करें क्योंकि जो वे करना चाहते हैं कर नहीं पाते। पहले वे जहां सरकार की डोर है वहां से हरी झंडी ले लिया करें फिर अफसरों पर गुस्सा निकाल करें क्योंकि इससे अफसरों में उनकी छवि पर असर पड़ता है। गुस्से से लाल-पीले होने के बाद भी जब वे निणर्य नहीं ले पाते तो संबंधित अफसर कई जगह उनके असहाय होने की खबरें बताता है और दोस्तों-साथियों को सुनाता है।

-रवींदऱ कैलासिया

शुक्रवार, 19 जून 2009

आईएएस अफसर द्वारा युवक का दैहिक शोषण

मध्यप्रदेश के एक आईएएस अधिकारी ज्ञानेश्वर पाटिल पर एक पंचायत सचिव ने दैहिक शोषण का आरोप लगा है। जिला पंचायत भोपाल के दफ्तर में मुख्य कार्यपालन अधिकारी और आईएएस अधिकारी श्री पाटिल और पंचायत सचिव की आपत्तिजन तस्वीरों को एक टीवी चैनल के कैमरा मेन ने भी कैद किया है। इन तस्वीरों और पंचायत सचिव के आरोप में कितनी सत्यता है इसका खुलासा तो पुलिस की जांच में हो जाएगा। मगर रात को सरकारी दफ्तर में आईएएस अधिकारी क्या कर रहे थे? क्या उन्होंने पंचायत सचिव को बुलाया था? जैसा कि पंचायत सचिव का आरोप है कि वह अपने दोस्त के काम से आते थे और उन्हें इसके लिए कई बार श्री ज्ञानेश्वर पाटिल ने बुलाया। कई बार उन्होंने उनका दैहिक शोषण किया। इन आरोपों में चाहे जितनी सत्यता हो मगर एक आईएएस अधिकारी के दफ्तर में कार्यालयीन समय के बाद रात को उपस्थिति और उसी दौरान एक पंचायत सचिव जैसे सरकारी कर्मचारी की मौजूदगी से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। यह खबर भले ही टीवी चैनल वालों के लिए बिकाऊ हो लेकिन इससे प्रशासन की छवि धूमिल होती है। इसको लेकर सरकार को अपने अफसरों की क्लास लेने की जरूरत होगी।

- रवींद्र कैलासिया

गुरुवार, 18 जून 2009

हम हैं यहां के राजकुमार...


कांग्रेस ने यह फैसला ले लिया है कि उनका कोई भी नेता श्रीमंत, राजा, रानी, महाराजा, महारानी, कुंवर साहब, युवराज, राजकुमार, राजकुमारी साहिबा नहीं पुकारा जाएगा या अपने नाम के साथ इनका उपयोग करेगा। मतलब साफ है देश में 60 साल पहले जो राज परिवार थे उनके सदस्यों में आज भी कहीं न कहीं सामंती मानसिकता हावी है। उन्हें राजा, महाराजा जैसे विशेषण कर्णप्रिय लगते हैं। क्षेत्र के दौरे पर जाने पर सुबह जब सर्किट हाउस में उठते हैं तो उन्हें अच्छा लगता है कि दरवाजे पर खड़ा लोगों का समूह पुकारे महाराज दर्शन दो। पहले वे छोटी रियासत या छोटे सीमित क्षेत्र में शासन करने वाले घरानों पर राज करते थे अब वे पूरे देश-प्रदेश पर अप्रत्यक्ष तौर पर राज कर रहे हैं।
कांग्रेस की यह पहल नेहरू-गांधी परिवार की परंपरा है। जवाहरलाल नेहरू ने जिस तरह प्रधानमंत्री बनने पर छोटी-छोटी रियासतों को मिलाने के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल का उपयोग किया था उससे एक कदम आगे इंदिरा गांधी ने पूर्व राजे-महाराजे को मिलने वाला प्रिवीपर्स बंद कर दिया था। अब सोनिया गांधी उन्हें उनके कर्णप्रिय और नाम के साथ लिखे जाने वाले सामंती विशेषणों से दूर करने जा रही हैं। क्या इससे राजे-रजवाड़ों के परिवारो के लोगों की मानसिकता भी बदल जाएगी? क्या ये लोग इसके बाद भी आम आदमी से पैर छूने बंद करा पाएंगे? क्या दिल से ये लोग गरीब, निचली जाति के लोगों को गले लगाकर उसकी पीड़ा जानेंगे? नहीं, क्योंकि इसके लिए दबाव नहीं बल्कि उन्हें आत्मप्रेरित करना चाहिए। वे स्वयं बैठक कर यह निर्णय लें कि हम ऐसा करेंगे।
हालांकि कांग्रेस की यह कोशिश बहुत अच्छी है मगर अकेले कांग्रेस में यह फैसला हो जाने से राजे-रजवाड़ों के लोगों की मानसिकता को बदला नहीं जा सकता। भाजपा और दूसरे दलों को भी इस दिशा में फैसला लेना चाहिए। इसके बाद भारत सरकार राजपत्र में इसका प्रकाशन करे। अन्यथा कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान जैसे राज्य एक बार यह फैसला ले लेंगे तो मप्र जैसे राज्य राजे-रजवाड़ों को बढ़ावा देते हुए श्रीमंत जैसे शब्दों के इस्तेमाल की खुलेआम अधिसूचना जारी करते रहेंगे। - रवींद्र कैलासिया

बुधवार, 17 जून 2009

जोश और जुनून के आगे पैसे के आगे नतमस्तक



क्रिकेट का जुनून भारत में दशकों से है। पहले अधिकांश लोग देश और कुछ व्यक्तिगत नाम के लिए खेलते थे। अब शायद क्रिकेट का मतलब पैसा और पैसा रह गया है। देश की सरकार के लिए जहां चुनाव होने जा रहे थे वहीं बीसीसीआई नोट की बारिश करने वाले आईपीएल ट्वेंटी 20 के आयोजन पर अड़ा था और उसे जब सुरक्षा की दृष्टि से यहां आयोजन की अनुमति देने में सरकार व राज्य सरकारों ने ना नुकूर की तो वे पैसे की खातिर उसे दक्षिण अफ्रीका ले गए। वहां डेढ़ महीने तक खूब नोट बरसे और भारतीय खिलाडिय़ों ने उसके लिए खूब पसीना बहाया। अब जब देश के सिर ट्वेंटी 20 का ताज चढ़ाने की बारी आई तो पता लगा कि ये शेर मांद में नोटों का बिस्तर बनाकर ऐसे मस्त हो गए कि उन्हें न प्रेक्टिस की याद रही न कम डॉट बॉल खेलने की।
आईपीएल ट्वेंटी 20 के बादशाह और देशवासियों के अजीज माही उर्फ महेंद्रसिंह उर्फ एमएस धोनी अब देशवासियों से माफी मांग रहे हैं। क्या उन्हें माफ किया जाना चाहिए? उन्हें अपने वरिष्ठ साथियों के साथ राजनीति करने से फुरसत नहीं है। कभी सचिन तो कभी सहबाग के साथ उनकी राजनीति सामने आती है। विज्ञापनों में इतने व्यस्त रहते हैं कि अब वे क्रिकेटर कम मॉडल ज्यादा बन गए हैं। उनके ही राज्य झारखंड में कई पूर्व क्रिकेटरों, राज्य क्रिकेट संघ के पदाधिकारियों ने उनके और टीम इंडिया के खेल की आलोचना की है।
वैसे परिणाम सामने आने के बाद उसकी आलोचना सबसे आसान होता है। मगर क्रिकेटरों से भारतीयों की ज्यादा भावनाएं जुड़ी रहती हैं और शायद इसी वजह से उन्हें बीसीसीआई नोटों से खूब तौल रहा है। यह पैसा अप्रत्यक्ष तौर पर आम नागरिकों का है। विभिन्न कंपयिनों के विज्ञापन से यह राशि बीसीसीआई को मिलती है और ये कंपनियां अपने उत्पाद की कीमत में शुमार करती हैं। कीमत तो नागरिक ही चुकता है।
हमने ओलंपिक खेलों के स्थान पर क्रिकेट को तव्वजोह दी है मगर क्रिकेटरों द्वारा समय समय पर इसका मजाक उड़ाकर खिताबी दौड़ के समय ही अपने आपको फिसड्डी साबित देशवासियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाया। भारत सरकार को देशवासियों की भावनाओं की कद्र कर बीसीसीआई का नियंत्रण अपने पास लेना चाहिए क्योंकि उसमें बेहिसाब पैसा है और आ रहा है। इस पैसे को दूसरे खेलों में इस्तेमाल किया जा सकता है। आप अपनी राय इस बारे में जरूर दें।

- रवींद्र कैलासिया

सोमवार, 15 जून 2009

बनारस के दरोगाजी का शौक



उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थल बनारस पर जहां आतंकवादियों की नजरें जमीं

रहती हैं मगर इससे सबसे बेखबर हैं यहां के एक दरोगा। इनका शौक अजब

है, खुद को रस्सियों से बंधवाकर वे गंगा में उतरना और रिकार्ड बनाने के

लिए दर्शकों की भीड़ को साक्षी बनाना।
बनारस के ये दरोगाजी हैं सुरेश कुमार सोनी। एक टीवी चैनल पर ये मजे से

अद्र्धनग्न हालत में एक खंभे से टिक कर खड़ेे थे और उनके इलाके के लोग

उन्हें रस्सियों से बांध रहे थे। सिर से लेकर कंधे तक उन्होंने खुद को रस्सियों

से बंधवाया लेकिन सिर पर रिकार्ड दर्ज कराने के जुनून के चलते उन्होंने खुद

को सफेद कपड़े के एक बोरानुमा चीज में डलवा लिया। उसके ऊपर भी उन्हो

ंने रस्सियां बंधवाईं और फिर नाव की सवारी कर वे नदी के बीचों बीच पहुंच

गए। उन्होंने लोगों से कहा कि उन्हें नदी में फेंक दें। हाथ-पैर बंधी हालत में

वे तैरते हुए नदी के दूसरे छोर पर पहुंच गए। इसके बाद उन्होंने पत्रकारों से

यहां तक कहा कि वे ऐसे दो-तीन किलोमीटर तक तैर सकते हैं।
देखिये इन महाशय को जनता की सुरक्षा के स्थान पर अनोखे रिकार्ड को

हासिल करने की कैसी चिंता है। इनकी इस करतूत को आप क्या मानते हैं कृ

पया अपनी राय जरूर बताएं। अगर पर उत्तर प्रदेश के हों तो वहां की पुलिस से

यह सवाल जरुर करें कि ऐसे अधिकारियों को फील्ड में रखकर क्या वाकई

जनता की भलाई हो सकती है।

- रवींद्र कैलासिया

रविवार, 14 जून 2009

क्योंकि चांद भी कभी चंद्रमोहन था .. ..


कहा जाता है कि आसमान में रात को दुधिया रोशनी बिखरने वाले खूबसूरत चांद में दाग है मगर उसी चांद में दाग है यह हरियाणा के चांद के लिए अपमान की बात होगी। वहां के सम्मानित परिवार भजनलाल ने भी एक ऐसे सपूत (?) को जन्म दिया है जिसने उनके परिवार पर दाग लगाया है। चांद कभी अपने प्रेमिका और कथित पत्नी अनुराधा बाली उर्फ फिजा के नाम पर सरेआम भड़क जाते हैं तो कभी उसके घर पहुंचकर रासलीला खेलते हैं। इस पर अभी तक शायद अभिनेता जीतेंद्र की पुत्री एकता कपूर ने गौर नहीं किया नहीं तो वे भी क शब्द का नया धारावाहिक शुरू कर देती। हरियाणा में चांद-फिजा के बीच जो खेल चल रहा है वह समाज में फैलती विकृति का एक उदाहरण है। कुछ दिन पहले चंद्रमोहन उर्फ चांद ने सरेआम कहा था कि फिजा का मेरे सामने नाम लिया तो वे मानहानि का मुकदमा लगा देंगे लेकिन अब वे उसके घर पहुंचकर माफी मांग रहे हैं। कह रहे हैं कि मुझे लोगों ने बहकाया दिया था। तब वे कहते थे कि जो पत्नी अपने पति पर रेप का आरोप लगाए उसके साथ कैसे रह जा सकता है। उन्होंने तब फिजा को अच्छी महिला मानने से इनकार कर दिया था। वहीं अनुराधा बाली उर्फ फिजा ने चांद को घर बुलाकर तमाम पत्रकारों को टीवी के लिए अलग-अलग पोज में तस्वीरें दीं। कुछ दिन पहले चादं मोहम्मद उर्फ चंद्रमोहन ने आरोप लगाया था कि फिजा पब्लिसिटी के लिए यह सब करती है तो फिर वे दोबारा उसके झांसे में कैसे आ गए। इतने लड़ाई झगड़े और गंभीर आरोपों के बाद अब दोनों के प्रेंमी-प्रेमिका जैसे पोज देखकर लगता है कि दोनों नाटक कर रहे हैं। क्या इससे हमारे समाज को जरा भी चोट नहीं पहुंच रही जो दोनों के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठ रही?

- रवींद्र कैलासिया

शनिवार, 13 जून 2009

मानसून की पहली बारिश का शानदार स्वागत

भोपाल शहर में शनिवार की शाम ऐसी झमाझम बारिश हुई कि सड़कें लबालब भर गईं। वाहनों की रेलमपेल में बारिश का पानी ऐसी छलांग लगा रहा था कि मानो वह भी अटखेली कर रहा हो। उसे भी गर्मी से राहत मिली है। वह भी नौ तपे की गर्मी से परेशान हो चुका था। बारिश के पानी की अटखेलियों के बीच शहर में भीगे हुए शरीर में महिलाएं, युवतियां और बच्चियां अलग ही आनंद लेती नजर आईं। युवकों की टोलियां भी बारिश में नहाने के लिए निकल चुकी थी। 2009 की पहली बारिश ने पूरे शहर की सड़कों को जहां अलमस्त कर दिया था वहीं नागरिक भी इस मौसम में डूब गए थे। करीब एक घंटे तक शाम को ऐसा मौसम हो गया था जैसे कहीं स्वर्ग में आ गए हों। इसके बाद भी काफी देर तक बारिश की बौछारों ने लोगों के चेहरों को मुरझाने नहीं दिया। मगर बिजली विभाग और नगर निगम की बारिश पूर्व की तैयारियों की बखिया उधड़ गई। नालों में जरा-सी बारिश में उभान आ गया तो बिजली के तार बारिश और तेज हवा से तार-तार हो गए। बिजली कई इलाकों मेंं तीन से चार घंटे तक गुल हो गई। मगर इसके बाद भी लोगों ने मौसम का खूब आनंद लिया। मानसून का शानदार स्वागत किया। - रवींद्र कैलासिया

शुक्रवार, 12 जून 2009

विदेशों की तर्ज पर बिना काम के खाना

मप्र में शिवराज सिंह चौहान की लाड़ली लक्ष्मी, जननी और कन्यादान जैसी योजनाओं से विधानसभा चुनाव जीते थे और लोकसभा चुनाव में उन्हें ऐसी कोई दूसरी योजना बनाने का अवसर नहीं मिला तो करारी हार मिली। अब नगर निगम, नगर पालिका, पंचायत चुनाव आने जा रहे हैं और उन पर कब्जा जमाने के लिए वे जनता को बेवकूफ बनाने का यह मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहेंगे।
मतदान केंद्र पर ज्यादा संख्या में पहुंचने वाले वोटर को रिझाने के लिए अब प्रदेश भाजपा सरकार उनको फिर दाना फेंकने जा रही है। इस बार गरीब बच्चों के साथ उनके परिवार महिलाओं और बुजुर्गों के लिए उसने खाना देने की योजना तैयार की है। अगर सब कुछ उनकी योजना के मुताबिक चला तो गरीब परिवार के बच्चे के अलावा महिलाओं- बुजुर्गों को काम करने की जरुरत नहीं पड़ेगी।
सरकार की योजना तो अच्छी है मगर यह समाज के हित में नहीं है। ऐसे में समाज को हम मक्कारी की राह पर ले जा रहे हैं। काम करने के लिए अभी जो व्यक्ति दर - दर भटकता है वह फिर सरकारी खाने के लिए लाइन में लगने लगेगा। काम के लिए मजदूर नहीं मिलेंगे। मजदूरों की कमी से योजनाओं की लागत बढऩे की आशंका रहेगी। महिलाओं और बुजुर्गों के लिए अगर खाने का इंतजाम करना ही है तो उसके लिए बुनियादी स्तर से अधोसंरचना तैयार कर पूरा सेटअप बनाकर उसे लागू किया जाना चाहिए। केवल साल दो साल की अस्थाई व्यवस्था से उनका भला नहीं किया जा सकता।
शिवराज सरकार के सलाहकार शायद उन्हें अर्जुनसिंह की राह पर ले जा रहे हैं। जिस तरह अर्जुन सिंह ने प्रदेश को कई समस्याओं को जन्म दिया। झुग्गी बस्तियों के पट्टे देने की प्रथा के कारण आज सरकारी जमीन पर झुग्गी तानने की आदत ऐसी बढ़ गई है कि चुनाव के पहले तो सैकड़ों झुग्गी कुकरमुत्ते की उग जाती हैं।
वोट और कुर्सी बनाए रखने के लिए शिवराज सिंह चौहान भी शायद वही गलती दोहरा रहे हैं। जिस तरह झुग्गी बस्तियिों के लिए उन्हें लोग कोसते हैं कहीं ऐसा कर वे उसी अंदाज में बाद में याद नहीं किए जाएं। आखिर जो रोटी और सब्जी गरीबों को वे देंगे वह निम्न मध्यम, मध्यम, उच्च मध्यम परिवारों के हिस्से से काट कर ही दी जाएगी। ऐसे में उनके बारे में सरकार कब सोचेगी? बच्चों और बुजुर्गों को बिना काम के खाना दिया जाए मगर महिलाओं को जब बराबरी का दर्जा देने के लिए चारों तरफ चर्चा चल रही है तो उन्हें कम से कम ऐसे फैसलों से अलग रखना चाहिए। क्या हम विदेशों की नागरिकों को देशहित में सोचने के प्रेरित नहीं कर सकते। उनमें ज्यादा से ज्यादा संख्या और पूरा कर देने की भावना जाग्रत करने की कोशिश नहीं कर सकते। केवल वोट की खातिर कब तक सरकारें ऐसे कदम उठाती रहेंगी?
- रवींद्र कैलासिया

गुरुवार, 11 जून 2009

हॉकी के बाद अब गिल खेलों के पीछे

भारतीय हॉकी फेडरेशन के निलंबित अध्यक्ष केपीएस गिल हॉकी के बाद अब भारत में खेले जाने वाले सभी खेलों के पीछे पडऩे जा रहे हैं। उन्हें हॉकी दुर्दशा दोषी माना जाता रहा है लेकिन शायद उन्हें इतने से संतोष नहीं है।
श्री गिल ने एक समाचार पत्र को बयान दिया है कि वे इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन के समानांतर एसोसिएशन खड़ी करेंगे। उनके मत के मुताबिक वे भारत में खेलों की दशा से बेहद चिंतित हैं। इसके लिए वे जून को सभी राज्यों की हॉकी एसोसिएशन की बैठक बुलाने जा रहे हैं। राज्यों की एसोसिएशन मं अपने कार्यकाल में बैठाए पदाधिकारियों से अपने साथ लेने की कोशिश करने जा रहे हैं। देखना यह है कि उन्हें गुरङ ु दीक्षा देने के लिए कितने राज्यों के पदाधिकारी आगे आते हैं।
श्री गिल का कहना है कि वैसे तो यह बैठक हॉकी दुर्दुशा पर चिंता के तहत बुलाई गई है और इससे हॉकी को ऊबारने के लिए बातचीत होगी मगर देश में दूसरे खेलों की हालत को भी मद्देनजर रखा जाएगा। इस बैठक के बाद अंतर रामट्रीय ओलंपिक कमेटी मान्यता का फैसला लिया जाएगा।
हॉकी के मौजूदा हालात के लिए दोषी माने जाने वाले गिल के साथ समर्थन में बंगाल हॉकी एसोसिएशन आ गया है। देखना यह है कि हॉकी हो या दूसरे खेल भारत को ओलंपिक में एक- एक पद के लिए तरसने वाले देश में खेल की चिंता करने वाले वास्तविक लोग भी सामने आएंगे या गिल या ऐसे ही दूसरे लोगों के हवाले खेल कर दिए जाते रहेंगे। व्यक्ति आधारित खेल संगठनों के कारण आज हमारी यह हालत है। दूसरे खेलों की बलि चढ़ाने वाले क्रिकेट को बीसीसीआई ने पैसे की मशीन बनाकर रख दिया है। क्या कभी इस बारे मे ंगिल या उनसे से कथित खेल के शुभचिंतक सोचेंगे? आप भी इस बारे में बताएं कि क्या गिल और बीसीसीआई के पदाधिकारी जैसे व्यक्ति खेलों का भला करने में लायक हैं?
- रवींद्र कैलासिया

बुधवार, 10 जून 2009

कुर्सी मिलने के बाद सुर बदलते हैं अफसरों के

मंगलवार को भोपाल में एक मंच से मप्र के पुलिस महानिदेशक संतोष कुमार राउत ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के तारीफों के पुल बांधना आरंभ किए तो उस समय शायद सीएम को भी शर्म आने लगी होगी। देशभर के करीब एक दर्जन से ज्यादा राज्यों के आईपीएस अफसर की मौजूदगी में राउत ने यह तारीफ की। इसी तरह बिहार के डीजीपी देवकीनंदन गौतम ने भी पत्रकारों से चर्चा के दौरान अपने मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के तारीफों में कोई कसर नहीं रहने दी। एक ने मंच और दूसरे ने पत्रकारों को कहा कि मुख्यमंत्री और उनकी सरकार में कोई दबाव महसूस नहीं करते।
वहीं दूसरी ओर आए दिन सुनने में आता है कि पुलिस पर राजनीतिक दबाव है। राष्ट्रीय पुलिस आयोग, मप्र की पुलिस सुधार के लिए गठित त्रिखा कमेटी से लेकर कई कोर्ट यह मान चुकी हैं कि पुलिस राजनीतिक दबाव में काम करती है मगर पुलिस महानिदेशक बनते ही आईपीएस अधिकारियों के सुर बदल जाते हैं। उन्हें इस तरह के दबाव की बातों से परहेज हो जाता हैै और अकेले में पूछो या सोते समय या सार्वजनिक जगह पर इनके मुंह यही निकलता है कि उन्होंने अपनी पूरी सेवा में यह कभी महसूस ही नहीं किया।
जब राजनीतिक दबाव नहीं होता है तो फिर सुप्रीम कोर्ट कैसे तबादलों और पदस्थापना के लिए अलग से बोर्ड बनाने के निर्देश देती। कई राज्यों में इनका गठन भी हो चुका हैै। अपराध की विवेचना में क्यों फिर हस्तक्षेप होता है और निष्पक्ष जांच के नाम पर क्यों सीआईडी को प्रकरण सौंप दिए जाते हैं।
ऐसे अफसरों को सरकारें भी पसंद करती हैं जो उनकी हां में हां मिलाएं। यही वजह है किसी भी मुखिया की कमान ऐसे अफसर को सौंपी जाती है जो कम से कम सरकार को न में उतर देेने के पहले सोचे। शायद राउत और गौतम भी ऐसे ही अफसरों की गिनती में आते हैं तभी वे मंच से सरकार की तारीफ के साथ कुछ कड़वे सच को कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते।
- रवींद्र कैलासिया

पार्ट टाइमर किसी भी काम से न्याय नहीं करते

जिस तरह विदेशों में पार्ट टाइम जॉब करने वालों से वहां के मूल निवासी परेशानी हैं कमोबेश वैसे ही हालात यहां हमारी धरती पर है। हालांकि विदेशों में जाने वाले लोगों के सामने पैसे का संकट रहता है और इसके लिए वहां जाने वाला कमोबेश हर व्यक्ति यह करता है। मगर यहां समाचार पत्रों के दफ्तरों में काम करने वाले पार्ट टाइमर अपने दूसरे गलत कामों पर पर्दा डालने के लिए ऐसा करते हैं। वे एक तो एक काम की तलाश में भटक रहे व्यक्ति के रोजगार को खाता है दूसरा वह अपने दोनों कामों के साथ इंसाफ नहीं करते।
आमतौर पर समाचार पत्रों के दफ्तर में ऐसे कुछ क्षेत्र हैं जहां ऐसे लोगों की पैठ आसानी से बन जाती है। तथाकथित विशेषज्ञ के नाम पर इन्हें रख लिया जाता है और वे समाचार पत्र की आड़ में मूल कत्र्तव्य वाली जगह पर काम नहीं करते और प्रेस में तो जो उनकी मर्जी आती है वह करते ही हैं। मूल काम पर तो वे प्रेस के नाम पर जो करते हैं वह तो अपनी जगह है मगर इसके साथ समाचार पत्र के नाम उपयोग कर ये लोग दूसरे आर्थिक लाभ वाले काम भी खूब करते हैं।
समाचार पत्रों में कुछ संपादक इसके विरोधी होते हैं और वे ऐसे व्यक्तियों की छंटनी उन्हें बाहर का रास्ता दिखाते भी हैं मगर इनकी पैठ ऐसी होती है कि वे आदेशों को बदलवा देते हैं। कुछ इसमें से इमानदारी से काम भी करते हैं मगर अधिकांश काम की जगह दुकानदारी और प्रेस का नाम ज्यादा उपयोग करते हैं। सही पत्रकार उनके जलवे देखकर जलता भुनता है।
कई बार ऐसे लोगों की समाचार पत्र में ऐसी पैठ हो जाती है कि वे हर छोटे बड़े आयोजनों में असरदार लोगों के ईर्द गिर्द नजर आते हैं। कई बार ऐसा भी होता कि इनके रोजगार की जगह दूसरे सही पत्रकार बलि चढ़ जाती है। कुछ ऐसे तत्व नि:शुल्क काम करने को तैयार हो जाते हैं। आखिर ऐसे लोगों के खिलाफ कुछ करने के लिए पत्रकारों को प्रयास करने की आवश्यकता है। ऐसा माहौल बनाया जाना चाहिए जिससे इनकी प्रवेश ही नहीं हो पाए।

- रवींद कैलासिया

शुक्रवार, 5 जून 2009

साइ•ल पर ज्यादा दिन नहीं चले नेता

आज विश्व पर्यावरण दिवस है। मध्यप्रदेश में ए• साइ•ल राइडर क्लब ने इस मौ•े पर अच्छी पहल •ी है। उस•े द्वारा लोगों •ो इस•े लिए प्रेरित •रने •ी •ोशिश •ी जा रही है •ि छोटे-मोटे •ाम साइ•ल पर जा•र •िए जा स•ते हैं और इससे ईंधन •ी बचत •े साथ पर्यावरण •ो सुरक्षित •िया जा स•ता है। विश्व पर्यावरण दिवस पर क्लब द्वारा पांच •िलोमीटर •ी साइ•ल रैली •ा आयोजन •िया गया है जिस•ा •ई दिनों से व्याप• प्रचार •िया जा रहा है। क्लब •ा उद्देश्य बहुत अच्छा है मगर •ायदे से इस•ी शुरूआत क्लब •े सदस्यों •ो स्वयं •े घर से •रना चाहिए। •ुछ समय पहले मप्र सर•ार •े मुखिया शिवराजसिंह चौहान ने •ेंद्र सर•ार •ी पेट्रोल डीजल •ीमत वृद्धि और आर्थि• मंदी •े दौर में ईंधन •ी बचत •ो ले•र साइ•ल •ी सवारी •र खूब प्रचार पाया था। तब मुख्यमंत्री ने ऐलान •िया था •ि सप्ताह में ए• दिन वे और उन•े मंत्रिमंडल •े सदस्य ेघर से मंत्रालय त• साइ•ल से सवारी •रेंगे। इस ऐलान •े •ुछ दिन बाद ही सर•ार वापस पटरी पर आ गई और सीएम सहित उन•े मंत्री साइ•ल •ो छोड़ •ार पर सवार हो गए। पता नहीं उन्होंने जिन साइ•लों •ो खरीदा था वे उन•े बंगलों में •िस •ोने में धूल खा रही होंगी। अब साइ•ल राइडर क्लब इस मुहिम •ो चला रहा है। क्लब में जो सदस्य हैं वे घर और दफ्तर में तो ऐसी में बैठते ही हैं साथ बिना एसी •े •ार में भी सवारी नहीं •रते। उन्होंने क्लब •े प्रचार •े लिए महंगी-महंगी साइ•लें खरीदी हैं। जिन पर सवार हो •र ये लोग महीने में ए• या दो बार नि•ल पड़ते हैं। ये दो उदाहरण इसलिए दिए हैं •ि पर्यावरण और अर्थव्यवस्था •ी चिंता •रने वाले नेता और अफसर •ो सबसे पहले अपने घर से शुरूआत •रना चाहिए। वे अपने वादे पर अडिग रहे हैं तो जनता खुद ब खुद उन•े पीछे-पीछे चलने लगेगी। यही वजह है •ि जनता उन•ी बातों •ो गंभीरता से नहीं लेती और उन•ी ही तरह आज •ी बात •ो •ल भूल जाती है। आज भी अगर नेता और अफसर •ेवल सप्ताह में ए• दिन साइ•ल पर चल•र मंत्रालय पहुंचने •ा प्रण ले लें और दूसरे अफसर और •र्मचारियों •ो भी इस•े लिए प्रेरित •रें तो देखिए प्रदेश •े सभी शहरों में उस दिन वातावरण •ितना खुशनुमा होगा और आ•ाश में धूंए •े •ाले बादल दिखाई नहीं देंगे।
पर्यावरण दिवस •ी बधाई। पॉलीथिन •ा •म से •म उपयोग •रें और पर्यावरण •ो सुरक्षित •रें।
- रवींद्र •ैलासिया

गुरुवार, 4 जून 2009

अगर वन रहेंगे तब बचेंगे न टाइगर

मध्यप्रदेश टाइगर स्टेट के नाम से जाना जाता है मगर आज बाघों की संख्या आंध्रप्रदेश की तुलना में कम हो चुकी है। आंध्रप्रदेश में जहां 290 टाइगर हैं वहीं मप्र में इनकी संख्या अभी अधिकृत रूप से 300 संख्या बताई जा रही है। मगर इसमें पन्ना के वे 24 टाइगर भी शामिल हैं जिनको लेकर विवाद की स्थिति बन चुकी है। पन्ना में टाइगर की संख्या शून्य बताई जा रही है। केंद्र और हाल ही में मप्र सरकार ने इसकी जांच के लिए एक कमेटी बना दी है। अगर यह संख्या कम कर दी जाए तो मप्र टाइगर स्टेट कहां रहा। टाइगर स्टेट का खिताब तो ऐसे में आंध्रप्रदेश के पास पहुंच जाएगा। मप्र में नेशनल टाइगर अथॉरिटी के 2007 के आंकड़ों के मुताबिक 300 टाइगर थे जिनमें से अकेले कान्हा में 89, बांधवगढ़ में 47, सतपुड़ा में 39, पेंच में 33 और पन्ना में 24 (?) शामिल हैं। विश्व में टाइगर की संख्या 3400 से लेकर 5150 के बीच बताई जाती है। अकेले भारत में 1410 टाइगर बताए जाते हैं। भारत में इनकी संख्या में कमी आती जा रही है। सारिस्का और इसके बाद पन्ना जैसे टाइगर बहुल राष्ट्रीय उद्यानों में इनकी संख्या शून्य होना पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है। आखिर मप्र के जंगलों से टाइगर गए कहां? यह सवाल आज नेता और वन विभाग के आला अफसरों से पूछा जा रहा है? वन विभाग के मुखिया की कुर्सी पर आज जो डा. पीबी गंगोपाध्याय बैठे हैं वे इसके पहले चीफ वार्डन वाइल्ड लाइफ के पद पर थे। उसी समय पन्ना के बाघों की संख्या कम होना बताई जा रही है। ऐसे आला अफसरों के खिलाफ पहले कार्रवाई कर उन्हें वन विभाग के मुखिया पद से हटाया जाना चाहिए, फिर दूसरे अधिकारियों की जांच की जाना चाहिए। सवाल यह उठता है कि टाइगर कहां रहेंगे जब जंगल ही नहीं बच रहे हैं। जंगल कटाई की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। जनता को नेता और वन विभाग के आला अधिकारियों से यह सवाल करना चाहिए। प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने वाले इन लोगों की वजह से आज देश और प्रदेश के लोग सूखा और अन्य प्राकृतिक आपदों से जूझ रहे हैं।
- रवींद्र कैलासिया

बुधवार, 3 जून 2009

तालिबान पैदा •रने •े बाद भी नहीं सुधारना चाहता

पा•िस्तान ने तालिबान •ो जिस तरह से खड़ा •िया उसने उस•े ही घर •ो आग लगाने •ी जो •ार्रवाई पिछले दिनों •ी है उससे पा•िस्तानी अभी-भी सब• लेने •े तैयार नहीं है। वह भारत •े लिए •श्मीर •े बहान जिस गड्ढे •ो खोदना चाहता है उससे भारत तो •िसी तरह बाहर नि•ल आएगा मगर पा•िस्तान इस बार उसमें समा जाएगा और फिर उसे बाहर नि•लने •ा •ो रास्ता भी नहीं बचेगा। मुंबई हमले •े आरोपी हाफिज सईद •ो रिहा •र पा•िस्तान ने अपने असली चेहरे •ो दिखा दिया है। उस पर पा•िस्तानी प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी •े •श्मीर •े राग से विश्व •ो उस•े आतं•वाद परस्त चेहरे •ो पहचान जाना चाहिए। बार-बार उसे आर्थि•, सैन्य और अन्य तरह से मदद •र वि•सित देश अप्रत्यक्ष रूप से आतं•वाद •ो बढ़ावा देने से बाज आएं। भारत •ी सह्रदयता •ा वि•सित देश और पा•िस्तान लगातार लाभ उठा रहे हैं। उन्हें अब सईद •ी रिहाई •े बाद उस•े पीछे छिपे आतं•वाद •ो प्रश्रय देने •े पा•िस्तान •े असली सच •ा विरोध •रना चाहिए। हालां•ि सईद •ो रिहा •रने •ा फैसला वहां •ी •ोर्ट •ा है। मगर इस•े पीछे पा•िस्तान सर•ार •ी पैरवी •ो मुख्य •ारण माना जा रहा है। भारत ने जब पुख्ता सबूत दिए थे तो उन्हें आधार बना•र •ोर्ट •े सामने •ैसे पेश •िया गया? पा•िस्तान सर•ार •ी नीयत तो समय ही साफ हो गई थी जब वह अंतरराष्ट्रीय दबाव •े दौरान बार-बार भारत से सबूत •ी मांग •र आरोपियों •ी गिरफ्तारियों •ो टाल रहा थी। आखिर पा•िस्तान ऐसे तत्वों •ो क्यों पैदा •रता है जो उस•े लिए बाद में सिरदर्द बना जाएं।
- रवींद्र •ैलासियातालिबान पैदा •रने •े बाद भी नहीं सुधारना चाहता पा•िस्तान ने तालिबान •ो जिस तरह से खड़ा •िया उसने उस•े ही घर •ो आग लगाने •ी जो •ार्रवाई पिछले दिनों •ी है उससे पा•िस्तानी अभी-भी सब• लेने •े तैयार नहीं है। वह भारत •े लिए •श्मीर •े बहान जिस गड्ढे •ो खोदना चाहता है उससे भारत तो •िसी तरह बाहर नि•ल आएगा मगर पा•िस्तान इस बार उसमें समा जाएगा और फिर उसे बाहर नि•लने •ा •ो रास्ता भी नहीं बचेगा। मुंबई हमले •े आरोपी हाफिज सईद •ो रिहा •र पा•िस्तान ने अपने असली चेहरे •ो दिखा दिया है। उस पर पा•िस्तानी प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी •े •श्मीर •े राग से विश्व •ो उस•े आतं•वाद परस्त चेहरे •ो पहचान जाना चाहिए। बार-बार उसे आर्थि•, सैन्य और अन्य तरह से मदद •र वि•सित देश अप्रत्यक्ष रूप से आतं•वाद •ो बढ़ावा देने से बाज आएं। भारत •ी सह्रदयता •ा वि•सित देश और पा•िस्तान लगातार लाभ उठा रहे हैं। उन्हें अब सईद •ी रिहाई •े बाद उस•े पीछे छिपे आतं•वाद •ो प्रश्रय देने •े पा•िस्तान •े असली सच •ा विरोध •रना चाहिए। हालां•ि सईद •ो रिहा •रने •ा फैसला वहां •ी •ोर्ट •ा है। मगर इस•े पीछे पा•िस्तान सर•ार •ी पैरवी •ो मुख्य •ारण माना जा रहा है। भारत ने जब पुख्ता सबूत दिए थे तो उन्हें आधार बना•र •ोर्ट •े सामने •ैसे पेश •िया गया? पा•िस्तान सर•ार •ी नीयत तो समय ही साफ हो गई थी जब वह अंतरराष्ट्रीय दबाव •े दौरान बार-बार भारत से सबूत •ी मांग •र आरोपियों •ी गिरफ्तारियों •ो टाल रहा थी। आखिर पा•िस्तान ऐसे तत्वों •ो क्यों पैदा •रता है जो उस•े लिए बाद में सिरदर्द बना जाएं।


- रवींद्र •ैलासिया

मंगलवार, 2 जून 2009

आखिर •ब सोचेंग देशहित में ..

बिहार •े खुसरुपुर में सोमवार जो हुआ क्या वह विरोध •ा सही तरी•ा था। क्या इसमें शामिल लोग देशद्रोही नहीं हैं? उन पर देशद्रोह •ा मु•दमा चलाया जाना चाहिए। मगर इस सवाल •ो नेताओं ने ए•तरफ रख•र राजनीति• रोटियां सें•ना शुरू •र दी हैं।ए• तरफ जहां रेल मंत्री ममता बनर्जी इसे राजनीति• साजिश •रार दे रही हैं तो दूसरी तरफ बिहार •े मुयमंत्री नीतिश •ुमार •ेंद्र सर•ार •ी गलत •ी नतीजा बता रहे हैं। वहीं पूर्व रेल मंत्री लालूप्रसाद यादव ऐसा •रने वालों •ो गलत ठहरा रहे हैं। टे्रनों •ो सही समय पर चलाने और उन•ी दूरी •ो देखते हुए स्टॉपेज तय •रने •ी नीति रेलवे •ी रही है मगर नेताओं ने इसमें अपने मनमुताबि• परिवर्तन ç•ए। लंबी दूरी •ी टे्रनों •े भी जगह-जगह स्टॉपेज दे•र उन•ी यात्रा अवधि बढ़ाई है। इससे लोगों •े अपने गांव और •स्बे में टे्रन •े स्टॉपेज •राने •ी प्रवृçत्त बढ़ी और नतीजा खुसरूपुर है। रेलवे •ो सोचना चाहिए ç• •म से •म ऐसी नीति बनाए जिससे पूरे देश में ए•समान व्यवस्था बनाई जा स•े। इसमें राजनीति• •ो •हीं भी आड़े नहीं आने देना चाहिए। इस•े साथ ही जिन लोगों ने खुसरूपुर में राष्ट्रीय संपçत्त •ो नु•सान पहुंचाया है उन•े खिलाफ राष्ट्रद्रोह •ा मु•दमा चलाया जाना चाहिए। साथ ही उन•ी तत्•ाल पहचान •र उन्हें गिरतार •रना चाहिए।
- रवींद्र •ैलासिया

रविवार, 31 मई 2009

मंत्री को प्रदेश तक बांधा कहां की राजनीति

नेता देश को कहां ले जाना चाहते हैं? यह सवाल नेताओं के रोजाना आने वाले अट-पटे बयानों से आम लोगों के मन में उभरते हैं। लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय दलों की भूमिका निर्णायक रही मगर इन दलों ने अपनी जीत के बाद भी मानसिकता को उसी तरह सीमित कर रखा है। इसका एक उदाहरण तूणमूल कांग्रेस की नेता और केंद्रीय मंत्री ममता बनर्जी के बयान से लगाया जा सकता है। जुझारू नेता ममता बनर्जी ने अपने दल के नेताओं को मंत्री पद दिलाने के लिए मनमोहन सिंह पर जो दबाव बनाया वह किसी भी देशवासी से छिपा नहीं है। मगर मंत्री बनने के बाद उन्होंने अपने पश्चिम बंगाल की लोगों का दिल जीतने के लिए जिस तरह का बयान दिया उससे उससे उनका राष्ट्र प्रेम कहीं नहीं झलकता। उन्होंने कहा दिया कि सप्ताह में पांच दिन उनकी पार्टी के केंद्रीय मंत्री पश्चिम बंगाल में रहेंगे। केंद्रीय मंत्री बनने के बाद तो उन्हें स्वयं और अपने मंत्रियों को देश हित के बारे में सोचना शुरू करना चाहिए। आखिर जब मंत्री पांच दिन पश्चिम बंगाल में रहेंगे तो क्या उनका मंत्रालय दिल्ली में केवल दो दिन काम करेगा। साथ ही क्या उनके मंत्रालय की गतिविधियां देश के दूसरे हिस्से में नहीं चलेंगी। मंत्रीजी क्या दूसरे राज्यों की चिंता छोड़ देंगे। है न यह नेताओं की देश का सत्यानाश करने की सोच।

- रवींद्र कैलासिया

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