tag:blogger.com,1999:blog-63572465090321647512024-02-07T11:53:56.837+05:30सर्व सत्यानाशयही चलता रहा तो
इसके बाद
क्या होगा...सोचेंरवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.comBlogger53125tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-42077883755098333742009-11-10T00:22:00.003+05:302009-11-10T00:53:35.426+05:30दोहरा चरित्र नहीं तो क्या<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgy5utZt_9KULeT1vxZC4aAkG5-N2FJEzw0Dy7e_pn60twYnpcsSkykLvxiVeWkBjieeLzw100pVdvSaLMJRe-GUNoIANHK79By9svxnsnL8ACmZizW02fO3MC55ktHVvI9jFsyhSmQJIo/s1600-h/maharashtra_map.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 291px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgy5utZt_9KULeT1vxZC4aAkG5-N2FJEzw0Dy7e_pn60twYnpcsSkykLvxiVeWkBjieeLzw100pVdvSaLMJRe-GUNoIANHK79By9svxnsnL8ACmZizW02fO3MC55ktHVvI9jFsyhSmQJIo/s320/maharashtra_map.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5402186668027422834" /></a><br />महाराष्ट्र विधानसभा में जिस महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना एमएलए ने हिंदी में शपथ लेने वाले समाजवादी पार्टी एमएलए अबु आजमी •क्ो पीटा, उसी दल •क् एमएलए राम क्दम ने टीवी चैनलों से बातचीत में आजमी पर हमला और थप्पड़ क्ी घटना सही बताने ऊंचे स्वर में हिंदी में बोले। <br />राम •क्दम ने यह बयान घटना •क्े थोड़ी देर बाद ही टीवी चैनलों से बातचीत में दिया। वे विधानसभा में हुई घटना में भी शामिल थे। वे विधानसभा क्े भीतर मराठी में नारे लगा रहे थे और हिंदी में शपथ लेने वाले आजमी क्े साथ अभद्रता क्े साक्षी थे। जब वे हिंदी में शपथ लेने उचित नहीं मानते तो फिर टीवी चैनल में हिंदी में बयान देते समय वे भूल गए थे। पहले उत्तर भारतीयों पर हमला और अब ंिहंदी में शपथ न लेने क्ा दबाव •िक्स लिए? यह महज राजनीति नहीं है? <br />- रवींद्र क्ैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-58674179199443231142009-11-02T18:52:00.001+05:302009-11-02T18:55:08.428+05:30लाचार शिवराज •ka •kरारा जवाब...!<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjsM3uLzm4Opxus4r75n6NU6MRToPJNdub8eqQCS8wYR25wuHwIRzH5dSQvzCSxPAwjFobUjdf7BFs6oLRyVR0ziiWjKvrqIPNMZ5qzcp56k88_FjuqOuKhhdrCppSsDRZ10qKwSmCBALA/s1600-h/9775.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 180px; height: 180px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjsM3uLzm4Opxus4r75n6NU6MRToPJNdub8eqQCS8wYR25wuHwIRzH5dSQvzCSxPAwjFobUjdf7BFs6oLRyVR0ziiWjKvrqIPNMZ5qzcp56k88_FjuqOuKhhdrCppSsDRZ10qKwSmCBALA/s320/9775.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5399496673408740642" /></a><br />मध्यप्रदेश •kee राजनीति में शांत स्वभाव ••ke माने जाने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ke मंत्रिमंडल ke विस्तार •ke kaयास लोkसभा चुनाव •ke पहले से लगाए जा रहे थे, लेkeeन •kई बार यह टला। मुख्यमंत्री जो चाहते थे नहीं kर पा रहे थे और शायद यही वजह रही •kee वे विस्तार टालते रहे। जब •keeया तो उसमें उन•kee लाचार सामने आई मगर इस••ka जवाब उन्होंने विभागों •ke बंटवारे में अपने स्वभाव •ke अनुkuल जाते हुए दिया।<br />वैसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विभागों •ke बंटवारे में पार्टी ke दो वरिष्ठ नेताओं ko जो जवाब दिया उसे उनkee •kuटनीति• ••kaमयाबी भी •kaही जा सkती है। अजय विश्नोई और नरोत्तम मिश्रा •ko उन•ke पूर्व •दों kee भांति विभाग नहीं दिए गए। दोनों ही नेताओं पर भ्रष्टाचार •ke आरोप लगते रहे हैं। हालां•keeए• अन्य मंत्री विजय शाह •ko श्री चौहान अपनी मर्जी ke मुताबिka •kaम बजट और सुर्खियों से दूर रहने वाले विभागों से दूर नहीं रख पाए। <br />विश्नोई और नरोत्तम मिश्रा •ko जिन विभागों •ko दिया गया है वे उससे खुश तो नहीं हैं मगर वे संगठन •ke सामने अपनी बात भी नहीं रख पा रहे हैं। संगठन ने उन्हें मंत्रिमंडल में रखने •ko •हा था, विभाग देने •ke लिए •koई ऐसा दबाव नहीं था। वहीं सांसद से विधायk बने सरताज सिंह •ko मंत्रिमंडल में शामिल ••kर श्री चौहान ने सिख समुदाय •ko अपने पक्ष में •kरने •kee •koशिश •kee है और हरेंद्र सिंह बब्बू •ko मंत्रिमंडल से दूर रखने में सफलता पा ली है। <br />श्री चौहान ने बाबूलाल गौर •ke मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री रहे उमाशंkर गुप्ता •ko मंत्री बनाkर भोपाल •ke लोगों •ko खुश •िया है। मगर उन्हें गृह विभाग दिए जाने •ko लेkर kई लोग आश्चर्यचkeeत हैं क्योंke श्री गुप्ता •ke स्वभाव •ke अनुkuल यह विभाग नहीं है। देखना यह है •kee पुलिस महkमा उनke आने से •keसा महसूस kरता है। <br />- रवींद्र keलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-81122969438212711122009-10-31T23:37:00.001+05:302009-10-31T23:41:37.645+05:30लाचार शिवराज सिंह चौहान<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNdIrk3T0KAZrsVXppdNbnTJt9_4S_VxHo2Vscjji44a-Y5PuJ3R3DbA7hGNbEqDthbSoECTLyWS-r6H_nCfnQKhIXC4PplDBXjVBIDLgQqoU4QvyBG6m7i65vcMWcBh_nkRwW6vxOfQA/s1600-h/shivraj_singh_chauhan.gif"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 176px; height: 201px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNdIrk3T0KAZrsVXppdNbnTJt9_4S_VxHo2Vscjji44a-Y5PuJ3R3DbA7hGNbEqDthbSoECTLyWS-r6H_nCfnQKhIXC4PplDBXjVBIDLgQqoU4QvyBG6m7i65vcMWcBh_nkRwW6vxOfQA/s320/shivraj_singh_chauhan.gif" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5398828363579491650" /></a><br /><br />मप्र सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान बेहद लाचार नजर आते हैं। पहले तो मनमाफिक मंत्रिमंडल बनाने के लिए उनके हाथों को संगठन ने पीछे बांध दिया और अब उन्हें विभागों के बंटवारे में भी वैसा ही महसूस हो रहा है। अब वे किस से कहें अपने मन की बात किसी से कह भी नहीं पा रहे हैं। <br />प्रदेश सरकार में नौ मंत्रियों को शामिल कर शिवराज सिंह ने मंत्रिमंडल का विस्तार किया था। एक मंत्री को पदोन्नत किया गया। नौ मंत्रियों में वे दागी मंत्री भी हैं जिन्हें सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से किसी न किसी एजेसी ने भ्रष्टाचार के आरोप में घेर रखा है। इनमें स्वास्थ्य मंत्री रहे अजय विशनोई, नगरीय प्रशासन मंत्री रहे नरोत्तम मिश्रा, वन मंत्री रहे विजय शाह जैसे नाम प्रमुख हैं। इन लोगों को मंत्री पद देने के बाद भी श्री चौहान आराम की नींद नहीं सो पाए हैं। <br />मंत्रिमंडल विस्तार के बाद अब उन्हें विभाग बंटवारे में दबाव झेलना पड़ रहे हैं। नए मंत्रियों के दबाव नहीं बल्कि दबाव उनकी तरफ से आ रहे हैं जो सालों से मंत्री हैं। नाम के बड़े विभाग मिलने से दुखी मंत्रियों कैलाश विजयवर्गीय, अनूप मिश्रा, गोपाल भार्गव जैसे दमखम वाले नेता शामिल हैं। वहीं विभाग बंटवारे में बाबूलाल गौर, राघवजी जैसे नेताओं के विभाग परिवर्तन के लिए हाईकमान अनुमति नहीं देगा। अब श्री चौहान नई मंत्रियों को कौन से विभाग दे और पुराने मंत्रियों को किस तरह मनपंसद विभाग देकर खुश रखें यह चुनौती है। पुराने मंत्री हाईकमान में अच्छी खासी पैठ रखते हैं। वह भी इन मंत्रियों की बातों को खास तवज्जोह देता है। <br />आखिर ऐसे लाचार मुख्यमंत्री पर हम जैसे आम नागरिक को शायद दया आ जाए मगर उनके साथी और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को दया नहीं आती। जनता को सोचना चाहिए कि ऐसे लाचार मुख्यमंत्री से सवाल पूछे क्योंकि मंत्रिमंडल की अनिश्चितता का सरकार के कामकाज पर असर पडऩे लगा है। <br />- रवींद्र कैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-44258516167070921712009-09-19T11:42:00.002+05:302009-09-19T11:51:45.170+05:30ब्लाग प्रविष्टि ka अद्र्धशतkसाथियों मैंने अपने ब्लॉग ki शुरूआत 31 मई 2009 ko ki थी और उस समय मेरे मन में यह विचार था ki kai ऐसी बातें होती हैं जिन्हें पत्रkaरिता पेशे में होने ke बाद भी खुलkar सब ke सामने नहीं रख sakता और ब्लॉग पर उन्हें डाalkar सभी ke साथ उसे शेयर kar sakता हूं। मैंने यह नहीं सोचा था ki मैं इतने kam समय में आपka इतना स्नेह पा लूंगा। kai विचार मैंने ऐसे भी रखे जिनसे बहुत से लोग सहमत नहीं थे। उनki टिप्पणियां भी मुझे मिलीं। उनka मत मेरे से अलग था और मुझे उनke विचारों से जरा भी बुरा नहीं लगा। मुझे उसka दूसरा पहलू भी पता लगा। हालांki kuछ मामलों में उस•े बारे में मुझे पता था। <br />मेरे ब्लॉग ki 50 वीं प्रविष्टि kenद्रीय मंत्री शशि थरूर ke इkoनॉमी क्लास ki हवाई यात्रा ko caटल क्लास ki यात्रा kaहे जाने पर भारतीय जनता पार्टी ki युवा मोर्चा इkai ke प्रदेश अध्यक्ष विश्वास सारंग हास्यास्पद बयान पर आधारित है। इसमें मैंने यह kaहना चाहा है ki नेता सुर्खियां बटोरने ke लिए kuछ भी बयान देते रहते हैं। <br />- रवींद्र •kaiलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-1874930722945003532009-09-18T12:50:00.002+05:302009-09-18T12:55:19.547+05:30हवाई यात्रा करने वाली गरीब जनता<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiVST6kHbTV1ZU3uXwXWWzEvgwLILt3pi3w8TL-I3TVP0THeUq0B9ZeIfIevZI0Mif68c5_616WVQ0heQRudReHNgYLSsh6eqPGaVbq84OaE-Uxlv8d98pK33BkqndNVS3NXOJ8AyQOKNk/s1600-h/vishassarang.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 100px; height: 120px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiVST6kHbTV1ZU3uXwXWWzEvgwLILt3pi3w8TL-I3TVP0THeUq0B9ZeIfIevZI0Mif68c5_616WVQ0heQRudReHNgYLSsh6eqPGaVbq84OaE-Uxlv8d98pK33BkqndNVS3NXOJ8AyQOKNk/s320/vishassarang.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5382705116622921858" /></a><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEig7c9AMRzPIzE0SIvt0hHnu78M6mr7Z5NCDHrf4KPZNZm-eoU5aeyvaSp0Hsm82WWwyyvrI1SONyu5S32bHUXHwKmFZhFMrh7FLLDUB3AoGQpq4lAFqPbXtxfY0sgsSetpILC6purqtBI/s1600-h/shashi-tharoor.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 219px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEig7c9AMRzPIzE0SIvt0hHnu78M6mr7Z5NCDHrf4KPZNZm-eoU5aeyvaSp0Hsm82WWwyyvrI1SONyu5S32bHUXHwKmFZhFMrh7FLLDUB3AoGQpq4lAFqPbXtxfY0sgsSetpILC6purqtBI/s320/shashi-tharoor.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5382704662816741746" /></a><br /><br />केंद्रीय मंत्री शशि थरूर के इकोनॉमी क्लास में हवाई यात्रा को कैटल क्लास में यात्रा करने संबंधी बयान पर एक तरफ जहां राष्ट्रीय राजनीति में बवाल मचा है तो वहीं मप्र में भाजपा एक विधायक और युवा मोर्चे के प्रदेश अध्यक्ष विश्वास सारंग हवाई यात्रा करने वालों को गरीब बताकर क्या साबित करना चाह रहे हैं। अगर वे हवाई यात्रा करने वालों को गरीब मान रहे हैं तो भारत में गरीब की परिभाषा को बदले जाने की आवश्यकता है। <br />कांग्रेस द्वारा अपने केंद्रीय मंत्रियों को सादगी से रहने और दौरों के लिए इकोनॉमी क्लास में यात्रा करने के प्रेरित करने के प्रयास को श्री थरूर के बयान से झटका लगा है और विपक्ष को बैठे-बिठाए हथियार मिल गया है। श्री थरूर ने इकोनॉमी क्लास की हवाई यात्रा को कैटल क्लास कहकर राजनीति माहौलको गरमा दिया है। हालांकि उनके पक्ष में कुछ बुद्धिजीवी सामने आए हैं जिनका मानना है कि कांग्रेस हाईकमान के मंत्रियों के लिए बनाए गए दिशा-निर्देशों से पाखंड और ढोंग को बढ़ावा मिलेगा। <br />वहीं दूसरी तरफ प्रदेश में सुर्खियों में बने रहने के लिए बयानवीर नेता भी बात की गंभीरता को समझे बिना बयान जारी कर देते हैं। श्री सारंग ने बयान दिया कि श्री थरूर देश की गरीब जनता की तुलन भेड़-बकरी कर रहे हैं और इसलिए उन्हें तुरंत मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जाना चाहिए। श्री थरूर ने हवाई यात्रा करने वालों के लिए बयान दिया था और हमारे देश की करोड़ों की आबादी वाली गरीब जनता ने हवाई जनता तो क्या उसे छूकर देखा तक नहीं होगा। क्या हवाई यात्रा करने वाली गरीब जनता है? अगर है तो फिर हम तो विकासशील नहीं विकसित देशों की श्रेणी में आ चुके होंगे। <br />केंद्रीय मंत्री श्री थरूर का बयान हो या भाजपा से निष्कासित जसवंत सिंह का कोई विवादास्पद मामला, नेताओं को इसे राजनीतिक चस्मे उतारकर बयानबाजी करना चाहिए। हालांकि तत्कालिक लाभ पाने के लिए लोग सुर्खियां बटोर लेते हैं मगर इसका प्रभाव दीर्घकाल में कहीं न कहीं दिखाई देता है। <br />- रवींद्र कैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-67955652561642485482009-09-10T12:58:00.003+05:302009-09-10T13:05:22.108+05:30बाढ़ के बीच सूखे का अध्ययन<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgozBAUoqTXZDjappVHGCgfNh5lXeCBXfX9GHT8DOQKgbSMpyAusAsSIOoRZjoLKr3tWEHdapLRoGdDuzIy8wBATvtMmOsjaV511QDguzKfZQfw8jE24GVMHe0lOgOEK8-XZH_WNV97bJY/s1600-h/9HOS2.jpg"><img style="cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 214px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgozBAUoqTXZDjappVHGCgfNh5lXeCBXfX9GHT8DOQKgbSMpyAusAsSIOoRZjoLKr3tWEHdapLRoGdDuzIy8wBATvtMmOsjaV511QDguzKfZQfw8jE24GVMHe0lOgOEK8-XZH_WNV97bJY/s320/9HOS2.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5379738997234612418" /></a><br /><br />सरकारें किस तरह काम करती हैं यह इन दिनों देखने को मिल रहा है। केंद्र सरकार सूखे के अध्ययन के लिए विभिन्न राज्यों में अध्ययन दल ड्डभेज रहा है तो राज्य सरकारें अपने ज्यादा से ज्यादा जिलों को सूखे में शामिल करने में जुटे हैं। दोनों ही सरकारें यह तैयारी बारिश की समाप्ति का इंतजार किए बिना करने लगी हैं। अब हालात यह है कि राज्यों में जहां बाढ़ के नजारे दिखाई दे रहें तो वहीं केंद्र सरकार के सूखा अध्ययन उसमें सूखा प्रभावित क्षेत्र की तलाश कर रहे हैं।<br />बाढ़ के बीच सूखे का अध्ययन<br />सरकारें किस तरह काम करती हैं यह इन दिनों देखने को मिल रहा है। केंद्र सरकार सूखे के अध्ययन के लिए विभिन्न राज्यों में अध्ययन दल भेज रहा है तो राज्य सरकारें अपने ज्यादा से ज्यादा जिलों को सूखे में शामिल करने में जुटे हैं। दोनों ही सरकारें यह तैयारी बारिश की समाप्ति का इंतजार किए बिना करने लगी हैं। अब हालात यह है कि राज्यों में जहां बाढ़ के नजारे दिखाई दे रहें तो वहीं केंद्र सरकार के सूखा अध्ययन उसमें सूखा प्रभावित क्षेत्र की तलाश कर रहे हैं।<br />क्या यह फिजूलखर्ची नहीं है? जहां सरकारें मंत्रियों को फाइव स्टार होटलों में ठहरने से रोक रही हैं। पेट्रोल-डीजल की बचत करने को कह रही हैं और कहीं सरकारें अफसर-मंत्रियों को एसी चलाने पर पाबंदी लगा रही हैं। वहीं केंद्रीय अध्ययन बाढग़्रस्त प्रदेशों में इस तरह दौरे कर रहा है। क्या यह फिजूलखर्ची नहीं है? इसके लिए कौन जिम्मेदार है। <br />- रवींद्र कैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-30048495525925796652009-09-05T22:57:00.001+05:302009-09-05T23:00:07.732+05:30जनता और नेता के चेहरे<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgiyjVP_ARh9J4wFKTMWeRu6_5SNjS5kSQlyryNKwtRIcKinOmL3Mja2szD8ebiGQK8-_4bMAkPeN81I7ysbwPSOk12brN4J1W5E7-3oqiyQdv4a8iL90K6vJRyF1NWAwVdI1qwpMTbZdw/s1600-h/ysr_rajshekar_reddy.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 216px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgiyjVP_ARh9J4wFKTMWeRu6_5SNjS5kSQlyryNKwtRIcKinOmL3Mja2szD8ebiGQK8-_4bMAkPeN81I7ysbwPSOk12brN4J1W5E7-3oqiyQdv4a8iL90K6vJRyF1NWAwVdI1qwpMTbZdw/s320/ysr_rajshekar_reddy.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5378036843355018050" /></a><br /><br />आंध्रप्रदेश में मुख्यमंत्री वायएस राजशेखर रेड्डी के निधन के बाद नेता और जनता के अलग-अलग चेहरे एकबार फिर सामने आए। अपने चहेते नेता को खोने वाली जनता ने जहां खुलकर अपनी मौत को गले लगाकर उनके प्रति अपने लगाव को प्रदर्शित किया तो नेताओं ने अपने चहेते नेता को खोने के बाद पर्दे के पीछे जो खेल खेला वह राजनीति का काला चेहरा था। एक तरफ रेड्डी का शव रखा था तो दूसरी तरफ उनके समर्थक अपने सुरक्षित भविष्य के लिए बेटे को कमान सौंपने के लिए पार्टी आलाकमान तक संदेश पहुंचाने में जुटे थे। <br />रेड्डी के हेलीकॉप्टर के लापता होने से लेकर उनके शव मिलने तक आंध्रप्रदेश में उभरी असुरक्षा की भावना ने एकबार फिर जनता और नेता के चेहरों की असलियत को उजागर कर दिया। बेचारी जनता ने जहां रेड्डी को मसीहा मानकर उनके असामयिक निधन पर अपनी जान की परवाह नहीं की और मौत को गले लगा दिया। मगर नेता की भावना इससे कहीं अलग ही नजर आई। वे अपने सुरक्षित भविष्य की तलाश में रेड्डी के विकल्प के नाम पर सोचते रहे। उन्हें शायद रेड्डी के सांसद बेटे में अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित लगा और श्री रेड्डी के अंतिम संस्कार के पहले ही उनके नाम को मुख्यमंत्री के तौर पर चला दिया।<br />वैसे भारत की राजनीति में यह कोई पहला उदाहरण नहीं है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भी ऐसा ही माहौल बना था और राजीव गांधी को देश की कमान सौंप दी गई थी। <br />- रवींद्र कैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-85921720819693205032009-08-30T13:33:00.003+05:302009-08-30T13:43:54.114+05:30घरोंदे का सपना और सहकारिता विभाग की नीयत<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZYJdoVpLlsHdzBJXAkDnvdiYhf66m_aZKFsq9jnZtHKgZf3043huc1YrtilZa2l67DT1R6VJzFf6qfC23BOdBVPpBxN_81Yc7bzQcHoHa6ZzbfphP3JuhFihNw4Yy1ZubUsac6sBcaRY/s1600-h/HS.gif"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 222px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZYJdoVpLlsHdzBJXAkDnvdiYhf66m_aZKFsq9jnZtHKgZf3043huc1YrtilZa2l67DT1R6VJzFf6qfC23BOdBVPpBxN_81Yc7bzQcHoHa6ZzbfphP3JuhFihNw4Yy1ZubUsac6sBcaRY/s320/HS.gif" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5375666954791087682" /></a><br /><br />खून-पसीने की कमाई से घरोंदे के सपने को पूरा करने के लिए लोग हाउसिंग सोसायटी में पैसे जमा करते हैं लेकिन सोसायटी के कर्ताधर्ता उनको भूखंड न देकर धोखाधड़ी कर बाहरी सदस्यों को प्लाट देते हैं। मध्यप्रदेश में ऐसे हाउसिंग सोसायटी के खिलाफ सहकारिता विभाग की मिलीभगत लंबे समय से चल रही थी और उसे तोडऩे के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अच्छी पहल की है। सहकारिता विभाग के सालों से जमे अफसरों को हटाकर नए अधिकारियों की पदस्थापना की गई है। हाउसिंग सोसायटी की गड़बडिय़ों पर पर्दा डालने वाले अफसरों को हटाने से समस्या का हल नहीं निकलने वाला बल्कि उसका स्थायी इलाज होना जरूरी है। <br />सरकार को सबसे पहले सहकारिता विभाग की कमान ऐसे स्वच्छ छवि के अधिकारी को सौंपना चाहिए जिसके मन में गरीब और मध्यम वर्ग के दर्द को समझने की ललक हो। जब ऊपर ऐसे अधिकारी की पदस्थापना हो जाएगी तो नीचे अधिकारी स्वत: कोई ऐसी गतिविधि नहीं करेंगे जिससे लोग ऊपर तक पहुंचें। सहकारिता विभाग में मैदानी अफसरों की संपत्ति का रिकार्ड तलब किया जाना चाहिए। कम से कम उनके पिछले पांच साल की संपत्ति का रिकार्ड देखकर उनसे पूछा जाना चाहिए संपत्ति कहां से आई। उनके विलासिता के साधनों, वाहनों के मालिकाना हक और अचल संपत्ति की जानकारी भी लेना चाहिए। <br />सहकारिता विभाग में कुछ मैदानी अफसर ऐसे हैं जो दूसरे राज्यों से आए हैं। सहकारी गृह निर्माण समितियों की गड़बडिय़ों पर पर्दा डालने का इन अफसरों को यह फायदा मिला कि उन्हें शहर के लगभग हर कोने में जमीन या प्लाट ऑफर होने लगे। पता चला कि उन्हें अपने रिश्तेदारों को मप्र बुलाना पड़ा क्योंकि उनके नाम से जमीन लेकर उन्हें बसाने का मौका मिल गया। ये शिकायतें आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो के आला अफसर दबी जुबान से कह रहे हैं मगर हाउसिंग सोसायटी की विवेचना अभी चल रही है इसलिए वे खुलकर कुछ भी कह नहीं रहे हैं। <br />अगर यह सब सच है तो सरकार को ऐसे अफसरों पर नियंत्रण पाने के लिए स्वच्छ छवि के आयुक्त की पदस्थापना करना होगी। अन्यथा सरकार की अच्छी पहल का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आएगा। <br />- रवींद्र कैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-63553891915984001312009-08-23T13:18:00.000+05:302009-08-23T13:19:29.870+05:30स्वास्थ्य मंत्री के पीए की बीमारी नहीं जांच पाए सरकारी डॉक्टरमप्र में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का भगवान मालिक है। इसका अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि स्वास्थ्य मंत्री अनूप मिश्रा के पीए आरपी मिश्रा के बुखार को डॉक्टर जांच नहीं पाए और उनका रविवार को निधन हो गया। श्री मिश्रा का निधन मलेरिया से होना बताया जा रहा है। बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मप्र को देश में 10 श्रेष्ठ राज्यों में होने का दावा किया जाता है और फिर बुखार से स्वास्थ्य मंत्री के पीए का निधन हो जाना यहां की स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर सवाल खड़े करता है। <br />शायद इसलिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेस के प्रतिपक्ष के नेता जमुना देवी तक स्वयं या अपने परिवार के किसी भी सदस्य के बीमार होने पर मप्र की स्वास्थ्य सेवाओं पर भरोसा नहीं करते हैं। मुख्यमंत्री की पत्नी को जहां बुखार होने पर मुंबई ले जाया जाता है तो जमुना देवी का भी इसी तरह मुंबई में इलाज कराया जाता है। <br />प्रदेश का आम आदमी ऐसे में क्या करे? उसके पास तो मप्र के सरकारी चिकित्सकों के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। महंगाई और गरीबी से वह लाचार है। सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की खराब हालात के लिए सरकार दोषी है क्योंकि मेडिकल डिग्री करने के बाद उन्हें नौकरी देने के लिए सरकार के पास आकर्षक पैकेज नहीं है। निजी अस्पतालों के प्रबंधन उन्हें सरकारी नौकरी से दोगुना ज्यादा पैसे देते हैं और अपने यहां रख लेेते हैं। फिर निजी अस्पताल उनकी तनख्वाह की वसूली मरीजों के तगड़े बिलों से करते हैं। गरीब की पहुंच से ये दूर होते हैं। <br />सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर स्वास्थ्य मंत्री के पीए के निधन से तमाचा पड़ा है मगर सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। उनका इलाज तो मुंबई, दिल्ली, मद्रास, अहमदाबाद जैसे शहरों के बड़े-बड़े अस्पतालों में अच्छे से अच्छे डॉक्टर कर ही देते हैं। <br />- रवींद्र कैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-9868104125171961192009-08-19T22:22:00.002+05:302009-08-19T22:36:51.203+05:30भाजपा नेता पाकिस्तान जाकर राजनीति करें<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgn2pD236H5TxROQHlSOGOMd7OjZpgeDBGLvukeJMYoeCA_jIQmGugdt6fxIU7PnMgXupJO1Y37Uv0O2Pew5KyWSVdTmdse_Tqin0lMz_yvMU5W3EndASSK2N3alca3f3jH4xa8BqLT4ns/s1600-h/pakistan-flag.gif"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 217px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgn2pD236H5TxROQHlSOGOMd7OjZpgeDBGLvukeJMYoeCA_jIQmGugdt6fxIU7PnMgXupJO1Y37Uv0O2Pew5KyWSVdTmdse_Tqin0lMz_yvMU5W3EndASSK2N3alca3f3jH4xa8BqLT4ns/s320/pakistan-flag.gif" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5371722409562995282" /></a><br /><br />भाजपा नेताओं को जिन्ना बेहद पसंद आ रहा है। जिन्ना को भाजपा नेता महिमा मंडित कर रहे हैं। राष्ट्रीयता का गुणगान करने वाली पार्टी के नेताओं के इस व्यवहार पर अब लगता है कि उन्हें पाकिस्तान भेज देना चाहिए। अगर उन्हें इतना ही जिन्ना प्रेम है तो वे वहीं की राजनीति करें और भारत की जनता से मुक्ति पाएं। उन्हें शायद यह पता नहीं कि जिन्ना को लेकर उनकी कोई भी पाजिटिव टिप्पणी या उससे संबंधित कोई भी गतिविधि से देश को कितने स्थानों पर नुकसान उठाना पड़ेगा। <br />नेताओं का जीवन सार्वजनिक होता है और उन्हें बेहद सोच-समझकर बोलना या लिखना चाहिए। यह शायद भाजपा के नेता धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं। कुछ साल पहले ही महात्मा गांधी के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को अच्छा मानने लगी भाजपा का अचानक जागा जिन्ना प्रेम देश को अंतर राष्ट्रीय मंच पर नीचा दिखाने वाला साबित हो सकता है। पहले पार्टी के लौह पुरुष माने जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने पाकिस्तान में जिन्ना प्रेम दिखाया था और अब वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह ने किताब में देश के विभाजन में जिन्ना के स्थान पर देश में पूजे जाने वाले महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की भूमिका को प्रमुख बताकर देश के लिए मुसीबतें खड़ी कर दी हैं। हालांकि भाजपा ने जसवंत सिंह को पार्टी से निकाल दिया है मगर क्या इससे देश को होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई हो सकेगी। <br />- रवींद्र कैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-20264248828849553792009-08-10T13:29:00.002+05:302009-08-10T13:37:15.850+05:30सुदर्शन ने कहा मनुष्य हिंदू जन्मता है और बनता है इसाई-मुसलमान<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvDhGEWrVxMSR-sIt8ZIOJcBlL2TniOMWLp0cjudwci1cLrqjgeMvnVxvzA7EX3BzAPp9rLuZi7vjxW-Ox6BusDufzzdmUi4_5BPWgF7VP-ckPyo1dOfbcDYtnxs5Ag-vSCb5C87Mk780/s1600-h/sudarsan.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 293px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvDhGEWrVxMSR-sIt8ZIOJcBlL2TniOMWLp0cjudwci1cLrqjgeMvnVxvzA7EX3BzAPp9rLuZi7vjxW-Ox6BusDufzzdmUi4_5BPWgF7VP-ckPyo1dOfbcDYtnxs5Ag-vSCb5C87Mk780/s320/sudarsan.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5368243632269596290" /></a><br />राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व प्रमुख केएस सुदर्शन ने पिछले दिनों भोपाल में सिख संगत के एक कार्यक्रम में एकबार फिर आग मंच से उगली लेकिन समाचार पत्रों में उनके भाषण के उन अंशों का कोई भी हिस्सा कहीं दिखाई नहीं दिया। सुदर्शनजी ने कहा कोई भी मनुष्य जन्म लेते समय हिंदू होता है। और उसे बाद में इसाई या मुसलमान बनाया जाता है। <br />श्री सुदर्शन ने ये विचार भोपाल के जिस कार्यक्रम में व्यक्त किए उनमें सिख, बौद्ध और कुछ अन्य धर्मों के संत मौजूद थे। उन्होंने कहा कि मनुष्य के जन्म के बाद इसाई धर्म में बपतिस्मा और मुसलमान की सुन्नत की जाती है। इसके बिना कोई भी इसाई, इसाई और न मुसलमान, मुसलमान नहीं। हिंदू धर्म का इतिहास हजारों साल पुराना है। आरएसएस के पूर्व प्रमुख के भाषण के इन अंशों का गूढ़ अर्थ है जिसको आम आदमी तक पहुंचाए जाना चाहिेए। <br />श्री सुदर्शन के इन विचारों से कई लोग सहमत होंगे मगर वे खुलकर सामने नहीं आते जैसे श्री सुदर्शन आए हैं। धर्म निरपेक्षता की आड़ में हम विद्वानों के विचारों को आम आदमी तक पहुंचाने में क्यों परहेज करते हैं? क्योंकि सिख संगत के कार्यक्रम में चंद लोग मौजूद थे और श्री सुदर्शन की उक्त बातों में छिपे गूढ़ अर्थ को उन तक पहुंचाए जाने की जरूरत है। इससे हिंदू धर्म को लेकर फैली भ्रांतियां दूर हो सकें। दूसरे धर्म के लोग भी इस तथ्य को जानकर कुछ समझने की कोशिश करते। <br />- रवींद्र कैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-66705229681812257512009-08-09T11:15:00.002+05:302009-08-09T11:16:13.843+05:30मुख्यमंत्री का कुत्ता हुआ बीमार<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhz-we9O6ZXgaJccEGVO6T5Cr5_vCJ4YO1LfaxVkI6_k0DQW24nbT3N9jd4kS8OZdxprRDaMzUECP6xCRmH70DrQdmb5U_lobVWMbbgfWSd7dE86yBo_Y6N2HSPvrklwx_jA91OhrD0GQI/s1600-h/Dalmatian.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 222px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhz-we9O6ZXgaJccEGVO6T5Cr5_vCJ4YO1LfaxVkI6_k0DQW24nbT3N9jd4kS8OZdxprRDaMzUECP6xCRmH70DrQdmb5U_lobVWMbbgfWSd7dE86yBo_Y6N2HSPvrklwx_jA91OhrD0GQI/s320/Dalmatian.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5367836192456513282" /></a><br /><br />मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कुत्ता इन दिनों बुखार से पीडि़त है और राज्य के पशु चिकित्सकों की अग्निपरीक्षा चल रही है। 10 दिन से बुखार है उतरने का नाम नहीं ले रहा है और बीमारी को ठीक करने के लिए कुत्ते का पहले भोपाल और बाद में विशेष वाहन से जबलपुर ले जाया गया है। <br />मुख्यमंत्री के कुत्ते को लेकर पशु चिकित्सक बेहद परेशान हैं। उसका इलाज राजधानी भोपाल के राज्य पशु चिकित्सालय में किया गया था जहां चिकित्सकों ने सात दिन के इलाज के बाद हाथ उठा दिए। बाद में उसे विशेष वाहन से जबलपुर पशु चिकित्सा और पशुपालन महाविद्यालय ले जाया गया। वहां कॉलेज के डीन डा. आरपीएस बघेल सहित आधा दर्जन पशु चिकित्सा विशेषज्ञों की टीम तीन दिन से कुत्ते के बुखार पर नजर रखे हुए है। उधर भोपाल और जबलपुर का मीडिया भी कॉलेज के चिकित्सकों से लगातार कुत्ते के हाल पूछ रहा है। मगर चिकित्सक इस मामले को ज्यादा हाइलाइट नहीं होने देना चाहते क्योंकि मामला मुख्यमंत्री के कुत्ते का है। वे यह नहीं जानते कि मामला मुख्यमंत्री के कुत्ते का होने की वजह से ही मीडिया इतने पीछे पड़ा है अन्यथा ऐसे न जाने कितने कुत्ते इलाज के लिए भोपाल से दिल्ली-मुंबई तक ले जाए जाते हैं। जबलपुर के पशु चिकित्सक कुत्ते की बीमारी का पता लगाने में जुटे हैं और जल्द से जल्द उसके ठीक होने की कामना कर रहे हैं क्योंकि जितने दिन वह वहां रहेगा उतना उनके लिए सिरदर्द रहेगा।<br />कुत्ते के किसी हादसे का शिकार होने की आशंका को देखते हुए अब जबलपुर के चिकित्सक कहने लगे हैं कि भोपाल वालों ने केस बिगड़ कर हमारे पास भेज दिया है। भोपाल राज्य पशु चिकित्सालय में विशेषज्ञ पशु चिकित्सक नहीं हैं और उन्होंने सात दिन इलाज के दौरान उनसे पूछताछ तक नहीं कि जिससे शुरूआती समय ही उसके बुखार को काबू कर लिया जाता तो केस नहीं बिगड़ता नहीं। जबलपुर के पशु चिकित्सकों की जान ऊपर-नीचे हो रही है क्योंकि सरकार का मामला है। <br />- रवींद्र कैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-20672500084887978092009-08-06T23:38:00.000+05:302009-08-06T23:39:27.351+05:30अफसर की पत्नी का असरमप्र पुलिस भले ही विधायक की हत्या के आरोपी विधायक की गिरफ्तार में नाकाम, तहसीलदार को पिटाई करने वाले विधायक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने में कई मर्तबा सोचने वाली, किशोरी के साथ बलात्कार के मामलों में महीनों रिपोर्ट नहीं लिखने वाली और महिलाओं के गले से चैन लूटने वाले अपराधियों को पकडऩे में असफल रहने वाली हो मगर एक सरकारी महिला कॉलेज की प्राचार्य और अफसर की पत्नी के कमरे में एक छात्रा की फीस की समस्या को लेकर पहुंचे एक व्यक्ति को जरूर तीन-चार दिन के लिए जेल अवश्य भेज सकती है। <br />भोपाल के नूतन कॉलेज में तीन अगस्त को एक युवक अशोक पंवार एक छात्रा की मदद कर रहा था और जब उसकी सुनवाई नहीं हुई तो वह प्राचार्य शोभना बाजपेयी मारु के कक्ष में पहुंच गया। श्रीमती मारु के पति भोपाल संभाग के आयुक्त पुखराज मारु हैं। अब क्या था प्राचार्य और ऊपर से अफसर की पत्नी को अशोक पंवार का कृत्य नागवार गुजरा और उन्होंने तत्काल पुलिस को बुलाकर उनके हवाले कर दिया। फिर क्या था पुलिस को भी अफसर को खुश करने का अच्छा अवसर मिल गया और उसने अशोक पंवार को हवालात में बंद कर दिया। संभाग आयुक्त की पत्नी के कक्ष में बिना पूछे प्रवेश करने की सजा उसे यहीं तक नहीं मिली बल्कि तीन जेल में बिताने पड़े और गुरुवार को वह जेल से मुक्त हो सका।<br />मप्र पुलिस की यह तत्परता अफसर की पत्नी के कक्ष में बिना अनुमति के प्रवेश करने पर दिखाई दी मगर विधानसभा चुनाव में तत्कालीन विधायक सुनील नायक की हत्या के आरोपी बिजेंद्र सिंह राठौर की आज तक गिरफ्तारी नहीं होने, खिलचीपुर में नायब तहसीलदार ओपी राजपूत को पीटने वाले विधायक प्रियव्रत सिंह के खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने में वैसी तत्परता नहीं दिखाई। भोपाल-बैतूल में किशोरियों के साथ बलात्कार के आरोपियों को बचाने वाली पुलिस का यह रूप आम जनता को चौंकाने वाला है। साथ ही उन महिलाओं को भी इससे आश्चर्य होगा कि भले ही उनके गले की चैन लूटने वाले आरोपियों को मप्र पुलिस नहीं पकड़ पाए मगर अफसर की पत्नी की शिकायत पर बिना जांच-पड़ताल के किसी को भी पकड़कर तीन-चार दिन जेल की हवा खिला सकती है। <br />- रवींद्र कैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-89218333264695146872009-08-03T11:05:00.006+05:302009-08-03T11:18:02.040+05:30कलयुग में राखी स्वयंवर, वाह मेरे महान भारत<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6CIq3OTtj5xwEFlFHEUO20lMzl0fJclubnJEKZz9UsehnkPrjvMsmXv2ZOPGcWN40hdHHL_6rz7q7u_a4eTu6MzCgKMKR6NmBMcb64pYW923c7_j_YJQWMOCIO4Nbr0mWStixnOMSfH8/s1600-h/14535564_Rakhi_Mika_Kiss_3-120.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 120px; height: 144px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6CIq3OTtj5xwEFlFHEUO20lMzl0fJclubnJEKZz9UsehnkPrjvMsmXv2ZOPGcWN40hdHHL_6rz7q7u_a4eTu6MzCgKMKR6NmBMcb64pYW923c7_j_YJQWMOCIO4Nbr0mWStixnOMSfH8/s320/14535564_Rakhi_Mika_Kiss_3-120.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5365610152313795586" /></a><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdYeRlYtUyj8kbWyt15vlrTOx2BY4RMoo00y4ypSNf1UY_tQtR8DtShX7WvjXhaD8d-PR9cNoByaGGlzML3ScQEaz1faw1FSHT1KMkCKgCh5xw1isWMUWeowhWEm0ruaV7rMEr2VGf4Nw/s1600-h/rakhi_mika_kiss-1.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 183px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdYeRlYtUyj8kbWyt15vlrTOx2BY4RMoo00y4ypSNf1UY_tQtR8DtShX7WvjXhaD8d-PR9cNoByaGGlzML3ScQEaz1faw1FSHT1KMkCKgCh5xw1isWMUWeowhWEm0ruaV7rMEr2VGf4Nw/s320/rakhi_mika_kiss-1.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5365609872985574290" /></a><br /><br />रविवार की रात एनडीटीवी एमेजिन पर राखी का स्वयंवर देखकर ऐसा लगा कि सीता मैया ने इसे देख रही होंगी तो सोचेंगी कि अच्छा हुआ मैं धरती में समा गई। भगवान रामचंद्रजी भी इलेश परुजनवाला को देखकर इस कलयुग नौजवान पर तरस खा रहे होंगे। सोच रहे होंगे कि जिस स्वयंवर में महिला उसे पति मानकर कैमरे के सामने माला पहना रही है वह उसे केवल डेट के लिए यह सब कर रही है। यह हमारे धार्मिक भावना के साथ मजाक भी है। क्या अब केवल मनोरंजन के नाम पर भारतीय टीवी चेनलों के पास यही बचा है। इसकी अनुमति हमारे समाज देना उचित है? <br />सीता का स्वयंवर हमने भले ही देखा नहीं मगर उससे जिस तरह की भावनाएँ हमारे मन में हैं उसका इलेक्ट्रानिक मीडिया ने आर्थिक रूप दोहन किया है। यही नहीं नई पीढ़ी को स्वयंवर के मायने गलत बताने के प्रयास किए गए हैं। स्वयंवर का मतलब वे भी शायद अब यही लगाएंगे कि डेट के लिए किसी को पसंद कर लोग और स्वयंवर हो गया। कुछ दिन के मनोरंजन के लिए ऐसा स्वयंवर भारतीय संस्कृति को पश्चिमी तमाचे जैसा है। पश्चिम में न तो स्वयंवर होते न विवाह। हमारे यहां जो परंपराएं हैं उनका मजाक बनाया जा रहा है। हमारे यहां इलेक्ट्रानिकमनोरंजन चेनल रेटिंग के चक्कर में इसमें टूल बन रहे हैं। <br />- रवींद्र कैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-26113678266651952852009-08-02T23:16:00.001+05:302009-08-02T23:17:08.678+05:30बुजुर्ग ही क्यों राज्यपालगुजरात में राज्यपाल देवेंद्र नाथ द्विवेदी के राज्यपाल पद की शपथ लेेने के पहले ही उनका निधन हो जाने पर अब राजनीतिक पार्टियों को यह सोचना चाहिए कि उम्रदराज नेताओं को पूरा आराम करने दें। वे राजनीतिक पारी पूरी करने के बाद पार्टियां बुजुर्ग नेताओं को राज्यपाल बनाने से बाज आएं। ऐसे नेता राज्यपाल जैसे प्रतिष्ठित पद बैठने के बाद न तो अफसरों और कुलपतियों की बैठकें लेेते समय लंबे समय तक बैठ नहीं पाते। कार्यक्रमों में सीढिय़ां तक नहीं चढ़ पाते। और तो और उनकी उम्र के कारण राजभवन में चिकित्सकों की सेवाएं लेेने की ज्यादा जरूरत पडऩे लगती है।<br />हाल ही में केंद्र सरकार ने मप्र सहित कुछ राज्यों में ऐसे बुजुर्ग नेताओं को उठाकर राज्यपाल बनाया है जो 70 और 80 की उम्र के हो चुके हैं। प्रदेश के एक और बुजुर्ग नेता अर्जुनसिंह को भी पार्टी किसी राज्य का राज्यपाल बनाने की सोच रही थी। आखिर राजनीतिक पार्टियों को ऐसे बुजुर्ग नेताओं को सक्रिय राजनीति से अलग करने का यह तरीका क्यों अपनाना पड़ता है? क्या ये नेता मरते दम तक पार्टी की जिम्मेदारी हैं? और अगर ऐसा है तो जनता पर क्यों बोझ डाला जाता है? राजनीतिक दलों को इस तरफ सोचना चाहिए। <br />- रवींद्र कैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-34559451349597744122009-08-02T23:16:00.000+05:302009-08-02T23:17:07.608+05:30बुजुर्ग ही क्यों राज्यपालगुजरात में राज्यपाल देवेंद्र नाथ द्विवेदी के राज्यपाल पद की शपथ लेेने के पहले ही उनका निधन हो जाने पर अब राजनीतिक पार्टियों को यह सोचना चाहिए कि उम्रदराज नेताओं को पूरा आराम करने दें। वे राजनीतिक पारी पूरी करने के बाद पार्टियां बुजुर्ग नेताओं को राज्यपाल बनाने से बाज आएं। ऐसे नेता राज्यपाल जैसे प्रतिष्ठित पद बैठने के बाद न तो अफसरों और कुलपतियों की बैठकें लेेते समय लंबे समय तक बैठ नहीं पाते। कार्यक्रमों में सीढिय़ां तक नहीं चढ़ पाते। और तो और उनकी उम्र के कारण राजभवन में चिकित्सकों की सेवाएं लेेने की ज्यादा जरूरत पडऩे लगती है।<br />हाल ही में केंद्र सरकार ने मप्र सहित कुछ राज्यों में ऐसे बुजुर्ग नेताओं को उठाकर राज्यपाल बनाया है जो 70 और 80 की उम्र के हो चुके हैं। प्रदेश के एक और बुजुर्ग नेता अर्जुनसिंह को भी पार्टी किसी राज्य का राज्यपाल बनाने की सोच रही थी। आखिर राजनीतिक पार्टियों को ऐसे बुजुर्ग नेताओं को सक्रिय राजनीति से अलग करने का यह तरीका क्यों अपनाना पड़ता है? क्या ये नेता मरते दम तक पार्टी की जिम्मेदारी हैं? और अगर ऐसा है तो जनता पर क्यों बोझ डाला जाता है? राजनीतिक दलों को इस तरफ सोचना चाहिए। <br />- रवींद्र कैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-30481656030383362622009-07-31T09:04:00.000+05:302009-07-31T09:07:20.062+05:30पत्रकार यानि सरकारी समितियां और सरकारी आवास...मध्यप्रदेश में पत्रकार का मतलब शायद केवल सरकारी आवास में रहना और सरकारी समितियों में शामिल होना माने जाने लगा है। अफसर हो या नेता, पत्रकार का मतलब यही निकालने लगे हैं। जो पत्रकार निजी आवास में और बिना समिति का सदस्य होता उसे अप्रभावी पत्रकार माने जाने लगा है। सरकारी आवास और सरकारी समितियों के सदस्य कुछ पत्रकार वैसे कॉलर ऊपर कहते भी हैं इसे अपनी कामयाबी मानते हैं क्योंकि इसके लिए जितनी मेहनत वे करते हैं शायद खबर के लिए कभी नहीं की होगी।<br />सरकारी आवास में रहने के लिए पत्रकारों ने जितनी मेहनत की है वह उनसे स्वयं पूछना चाहिए। रोज सुबह दरबार में खड़े होकर आग्रह करना पड़ा। एक नहीं दसियों बार वे दरबार में पेश हुए तब कहीं जाकर उन्हें सरकारी आवास मिला। हालांकि इनमें से कुछ असरदार पत्रकारों को ऐसा करने की कभी जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि सरकार उन्हें खुद ओवलाइज करना चाहती है। मगर ऐसे पत्रकारों की संख्या उंगली पर गिनी जा सकती है। इनके अलावा कुछ ऐसे पत्रकार भी हैं जिनके अफसरशाही में अच्छी पकड़ थी तो जैसे ही कोई उनका अफसर वहां पहुंचा तो उसका फायदा उन्होंने उठा लिया। मगर इन दो श्रेणी के पत्रकारों की संख्या बहुत सीमित है और दरबार में हाजरी देकर आवास पाने वालों की संख्या बहुत ज्यादा।<br />दूसरा सरकारी समितियों में आने वाले पत्रकार आपने आपको इनमें शामिल करने के लिए जिस तरह की कवायद करते हैं वे स्वयं जानते हैं। कुछ पत्रकारों को अफसर और नेता अपने हित में उपयोग करने के लिए अपनी तरफ से समितियों में रख लेते हैं मगर ऐसे पत्रकार कई बार समितियों में होने के बाद अपनी कलम चला ही देते हैं। कुछ ऐसे समितियां हैं जिनमें सदस्य कोई सलाह तो नहीं देते मगर देशाटन पर जाने के लिए सलाह जरूर देते हैं कि इस बार कहां जाना चाहिए। फलां प्रदेश की समिति तो पांच-छह बार विदेश हो आई है इस बार आप भी हमें विदेश ले चलें। जिस काम के लिए समिति बनी है वह तो एकतरफ रह जाता है। <br />कुल मिलाकर मप्र में सरकारी आवासों और पत्रकार समितियां में पहुंचने की कवायद के लिए कई पत्रकार दिनचर्या ही बदल लेते हैं। जैसे इसके प्रयास करते हैं तो उनका सुबह का रुटिन बदल जाता है और वे श्यामला हिल्स व 74 बंगलों के तीन बंगलों के ईर्दगिर्द देखे जाने लगते हैं। कुछ लोग पर इसका फर्क नहीं पड़ता क्योंकि सरकारी की मजबूरी है कि उनको अगर शामिल नहीं किया उनके चयन पर उंगलियां उठ सकती हैं। <br />- रवींद्र कैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-34860006273193718932009-07-28T00:18:00.001+05:302009-07-28T00:20:53.179+05:30भ्रष्टाचार केवल नाम बदलने से खत्म हो जाएगा?<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgXkw8-ZpIcGGvjk9ckwLWxD4AevpLcGOPxFqJm4BhRd-89mdzaU6WWopn2b9PmYH88548cPNKVYMd9R1QSxFNJTVBj7i-3028DQK2L5V3Sx8yKMJaC26a2mNdameuD2x43JOeyERmY424/s1600-h/shivraj_image.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 273px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgXkw8-ZpIcGGvjk9ckwLWxD4AevpLcGOPxFqJm4BhRd-89mdzaU6WWopn2b9PmYH88548cPNKVYMd9R1QSxFNJTVBj7i-3028DQK2L5V3Sx8yKMJaC26a2mNdameuD2x43JOeyERmY424/s320/shivraj_image.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5363214297217228386" /></a><br />मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यह कहते हैं कि आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) जैसा काम करना चाहिए वैसे नहीं कर रहा है उसका नाम बदलकर एंट्री करप्शन ब्यूरो करने का विचार है। मगर मुख्यमंत्रीजी क्या केवल नाम बदलने से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा या काबू में आ जाएगा। नहीं उसके लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति चाहिए। जब पूरे प्रदेश में यह चर्चा है कि जिलों में प्रशासन और पुलिस आदि पदों की नीलामी होने लगी है तो भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए अंदर इच्छा भी होना चाहिए। <br />मुख्यमंत्री ने ईओडब्ल्यू के काम से असंतुष्टि भोपाल के पहले मेट्रो थाने (हबीबगंज) के उदघाटन के मौके पर व्यक्त की। उनकी यह व्यथा शायद भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाली राज्य की स्वतंत्र इकाई लोकायुक्त को लेकर ज्यादा लगती है। लोकायुक्त में राज्य मंत्रिमंडल के करीब एक दर्जन सदस्यों सहित कई अधिकारियों की शिकायतें लंबित हैं। खुद मुख्यमंत्री के खिलाफ भी एक अपराधिक प्रकरण लोकायुक्त में दर्ज है। उसे कमजोर करने के लिए मुख्यमंत्री की यह पहल ज्यादा लगती है। हालांकि अभी तक उन्होंने इसके पूर्व ऐसी बात जुबान पर नहीं लाई थी। पूर्व लोकायुक्त रिपुसूदन दयाल के जाने के एक महीने बाद श्री चौहान की ईओडब्ल्यू को भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच करने की इकाई बनाने की बात सार्वजनिक तौर पर कहने का यह पहला मौका है। <br />इसके पीछे मूल वजह यह है कि ईओडब्ल्यू का नियंत्रण राज्य सरकार के पास रहता है। उसका राजनीतिक इस्तेमाल बहुत आसानी हो सकता है। जबकि लोकायुक्त संगठन की स्वायत्ता के कारण सरकार का उस पर बस नहीं चलता। वैसे राज्य सरकार ने वहां मुख्य लोकायुक्त का पद कायम करने का बहुत प्रयास किया मगर फैसला नहीं हो सका। ऐसा लोकायुक्त-उप लोकायुक्त अधिनियम के प्रावधानों की वजह से नहीं हो सका। इसमेंबदलाव के लिए सरकार को विधानसभा में संशोधन ले जाना पड़ेगा। कुल मिलाकर मुख्यमंत्री को ईओडब्ल्यू का कामकाज पसंद नहीं आने का मुख्य कारण यही है भ्रष्टाचार की जांच करने वाली स्वतंत्र एजेंसी लोकायुक्त को कमजोर किया जा सके। <br />- रवींद्र कैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-57826039298237012252009-07-26T13:49:00.000+05:302009-07-26T13:50:53.871+05:30वीआईपी सुरक्षा में लापरवाही, समीक्षा तो नहीं समाचार रुकवाने में ताकत झोंकीराष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस ) प्रमुख मोहन भागवत पिछले दिनों जब भोपाल आए तो उन्हें वापस नागपुर छोडऩे के लिए भोपाल पुलिस ने कोई इंतजाम नहीं किया और जब अंतिम समय में यह लापरवाही सामने आई तो तुरत-फुरत इंतजाम किया गया। सुरक्षा की विशिष्ट श्रेणी जेड प्लस प्राप्त श्री भागवत की सुरक्षा में लापरवाही को भोपाल पुलिस ने अपनी खामियों को पता लगाने के लिए गिरेबां में झांकने की बजाय इससे जुड़े समाचारों को रुकवाने में समाचार पत्रों पर दबाव के लिए पूरी ताकत झोंक दी। <br />बात 24 जुलाई की है जब भागवतजी भोपाल से नागपुर के लिए केरल एक्सप्रेस से जाने वाले थे। उनके रिंग राउंड (सुरक्षा घेरे) में लगे सुरक्षाकर्मी अपनी निर्धारित ड्यूटी कर वापस लौटने लगे तो वहां मौजूद स्वयं सेवकों में से किसी ने टोक दिया अब यहां से भागवतजी के साथ कौन पुलिस वाले जाएंगे? यह सुनकर रिंग राउंड ड्यूटी में तैनात सुरक्षाकर्मी भी दंग रह गए क्योंकि किसी अन्य पुलिसकर्मी ने यह जिम्मेदारी ली ही नहीं थी। वरिष्ठ अधिकारियों को जब इस बारे में बताया गया तो उन्होंने आनन-फानन में उनको ही भागवतजी को नागपुर तक छोड़कर आने को कहा और आम्र्स गार्ड की अलग से व्यवस्था की गई। <br />देशभर में जहां एक तरफ वीआईपी को लेकर हंगामा मचा है वहीं भोपाल पुलिस की इसके प्रति यह लापरवाही साबित करती है कि यहां के अफसर कितने गंभीर हैं। इस खामी को लेकर आत्म-मंथन करना तो दूर भोपाल पुलिस के अधिकारी इसमें जुट गए कि यह खबर किसी अखबार में छप नहीं जाए। इसके लिए उन्होंने पूरी ताकत झोंक दी। हालांकि वे इसमें सफल भी हो गए मगर वीआईपी की गाड़ी अगर स्टेशन से छूट रही होती और रिंग राउंड को वरिष्ठ अधिकारियों को बताने का मौका नहीं मिलता तो क्या स्थिति बनती। ऐसे में वीआईपी के साथ कोई घटना होने पर जिस तरह की जिम्मेदारी तय की जाती क्या इस खामी के लिए वही जिम्मेदारी निर्धारित नहीं होना चाहिए। समाचार पत्रों को क्या पुलिस वाले अपनी वाह-वाही के लिए इस्तेमाल करने का साधन समझने लगे हैं? अपनी आलोचना सुनने या पढऩे का साहस पुलिस में नहीं बचा है? पहले के अफसरों में यह सद्गुण था और इस कारण कई सूचनाएं उन्हें समय पर मिल जाती थीं और वे घटनाओं पर जल्द नियंत्रण पा लेते थे। वीआईपी सुरक्षा में लापरवाही से राजीव गांधी की हत्या हुई तो लालकृष्ण आडवाणी, चिंदबरम पर चप्पल-जूते फेंके जा चुके हैं। <br />- रवींद्र कैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-40059321761006092942009-07-25T12:50:00.000+05:302009-07-25T12:51:45.407+05:30कौमार्य परीक्षण की आड़, बचीं धोखेबाज महिलाएँ?गर्भवती महिलाओं के शादी के मंडप में बैठने के बाद मचे बवाल के बाद राजनीति उफान पर है। इस राजनीति में अब हथियार बने महिला आयोग। कांग्रेस ने जहां राष्ट्रीय महिला आयोग की एक सदस्य को कथित कौमार्य परीक्षण के लिए मप्र भेजा तो राज्य सरकार ने अपने राज्य महिला आयोग से जांच रिपोर्ट मांगी। दोनों आयोगों ने अपनी-अपनी सरकार के पक्ष में रिपोर्ट दे दी। केंद्रीय महिला आयोग ने जहां कौमार्य परीक्षण की पुष्टि कर दी तो राज्य महिला आयोग ने राज्य सरकार को क्लीनचिट दे दी कि कौमार्य परीक्षण नहीं हुआ। अब वास्तविकता क्या है आम आदमी की समझ नहीं आ रहा, किसे सही माने और किसे गलत। <br />महिला आयोगों के रवैये से उनकी कार्यप्रणाली पर जहां सवालिया निशान लग गया है वहीं उनके इस कृत्य से गलत ढंग से सरकारी योजनाओं का लाभ ले रही महिलाओं को एक तरह से प्रश्रय मिला है। उनके द्वारा सरकार को धोखा देकर योजना का लाभ लेने की कोशिश की गई। आज तक उनके खिलाफ राज्य शासन की तरफ से कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की गई। जबकि दूसरी सरकारी योजनाओं का गलत ढंग से फायदा उठाने वालों के खिलाफ संबंधित विभागों द्वारा एफआईआर दर्ज की जाती है। अब राज्य शासन को इस मामले को पुलिस के हवाले कर देना चाहिए। भले ही गर्भवती महिलाओं का कौमार्य परीक्षण हुआ हो या नहीं। मगर उन्होंने योजना का गलत ढंग से लाभ तो लेने की कोशिश की ही है। नेता इस तरफ ध्यान ही नहीं दे रहे हैं कि उन महिलाओं को सबक मिलना चाहिए जो गलत तरीके से सरकारी योजना का लाभ लेने चली थीं। इसमें शायद किसी को भी एतराज नहीं होगा। <br />- रवींद्र कैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-48909588460673157622009-07-19T22:08:00.005+05:302009-07-19T22:17:41.964+05:30राजनीतिक उपद्रवी और पुलिस के असली चेहरे ..<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDFYs1h5E878JPRvaXnXtGGGz8XDsorTT579cVVDx9rl_oCozIeP-cCDXNxCkMNSfUHeeQT40-27nD_zZgcu3fEigX3X8HT6phI6sm1V6GnzeFLJU4bpu3xP39sRNRuJPCtwfNMzIw40E/s1600-h/rita-maya.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 182px; height: 146px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDFYs1h5E878JPRvaXnXtGGGz8XDsorTT579cVVDx9rl_oCozIeP-cCDXNxCkMNSfUHeeQT40-27nD_zZgcu3fEigX3X8HT6phI6sm1V6GnzeFLJU4bpu3xP39sRNRuJPCtwfNMzIw40E/s320/rita-maya.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5360213871046452770" /></a><br />उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री मायावती-रीता बहुगुणा विवाद के दौरान एक बार फिर राजनीतिक उपद्रवी और पुलिस के असली चेहरे सामने आ गए। इससे यह भी साबित हो गया कि इन दोनों का गठबंधन कुर्सी पर बैठे व्यक्ति के आधार पर बदलता रहता है। इलेक्ट्रानिक मीडिया इसका बहुत अच्छी तरह से खुलासा कर रहा है। प्रिंट मीडिया की काफी सीमाएं हैं जिसके वह इस गठबंधन को उजागर करने में अपना योगदान नहीं दे पा रहा है।<br /><br />इलेक्ट्रानिक मीडिया को यह भी चाहिए कि रीता बहुगुणा कि मायावती के खिलाफ आखिर वह कौन-सी टिप्पणी थी जिसको लेकर इतना बवाल मचा। रीता बहुगुणा ने तो टिप्पणी पर माफी मांगने की बात कह दी मगर वह टिप्पणी कौन-सी थी जिस पर मायावती को इतना गुस्सा आया। ऐसी टिप्पणियों को भी प्रसारित किया जाना चाहिए जिससे नेताओं की जुबान पर लगाम लग सके। (मैंने न तो वह टिप्पणी कहीं पढ़ी न किसी चैनल पर देखी।) जिस तरह से नेता चुनावी सभाओं और राजनीतिक रैलियों, प्रदर्शन और सभाओं में अनाप-शनाप जो भी मुंह में आता है बोल देते हैं उस पर नियंत्रण किया जा सकेगा। <br /><br />वैसे मायावती के राजनीतिक गुंडों ने जो रीता बहुगुणा के घर पर किया वह शर्मनाक ही नहीं अत्यंत घटिया है। कानून के पहरेदारों ने जिस तरह उनके कृत्य को मौन स्वीकृति दी वह समाज के लिए घातक संकेत है। कानून के पहरेदारों में वे लोग थे जो अखिल भारतीय स्तर की परीक्षाओं में बैठकर ऊंचे ओहदे पर पहुंचते हैं। अगर यह कृत्य टीआई, एसआई करता तो ये ही लोग उसे संंस्पेंड करते, कार्यशाला-संगोष्ठी में उनके बारे में कहते कि वे राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होते हैं। टीवी में जो कुछ देखा उसको देखकर लगता है कि आईपीएस अधिकारी भी लुके-छिपे ढंग से नहीं खुलकर राजनीतिक संरक्षण हासिल करने में जुटे हैं। जब विपक्ष के इतने बड़े नेता के साथ सरकार का यह रवैया है तो फिर आम जनता गलत काम के खिलाफ आवाज उठाने का सोच भी कैसे सकेगी। <br /><br />- रवींद्र कैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-31537077451246242142009-07-18T13:12:00.002+05:302009-07-18T13:20:54.962+05:30नेगेटिव पब्लिसिटी के बाद रियलिटी शो ..<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHZ5DzpPsnoByCGAzUXaKz-DIpXPdwATeWxPinMyVEEIang6umruTQTm7dN3Xjp11ueE8vJ5lMn_Yf6BKvnfM70o9K0QJxzE755DdshUFMw0QxlkfsAZ0XkIFWYSCM1355fcwhzflta6k/s1600-h/fiza-chand21.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5359704433939744594" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 310px; CURSOR: hand; HEIGHT: 310px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHZ5DzpPsnoByCGAzUXaKz-DIpXPdwATeWxPinMyVEEIang6umruTQTm7dN3Xjp11ueE8vJ5lMn_Yf6BKvnfM70o9K0QJxzE755DdshUFMw0QxlkfsAZ0XkIFWYSCM1355fcwhzflta6k/s320/fiza-chand21.jpg" border="0" /></a><br /><div>हरियाणा के उप मुख्यमंत्री चंद्रप्रकाश उर्फ चांद मोहम्मद के साथ निकाह करने, कथित तौर पर अलग कर दिए जाने और कुछ समय पहले दोबारा एक हो जाने की नेगेटिव पब्लिसिटी पाने वाली फिजा वाकई बड़ी कलाकार हैं? सब टीवी के एक रियलिटी शो इस जंगल से मुझे बचाओ में फिजा भी शामिल हैं। </div><br /><div>रियलिटी शो को देखने के बाद आठ-दस महीने के दौरान चांद-फिजा के बीच संबंधों को लेकर टीवी चैनल और समाचार पत्रों में जिस तरह उन्हें जगह मिली, वह एक नाटक ज्यादा लगता है। रियलिटी शो में कहीं भी फिजा के चेहरे पर महीनों के उस तनाव की झलक दिखाई नहीं देती। ऐसे में टीवी चैनलों और समाचार पत्रों को सबक लेना चाहिए कि कहीं कोई उन्हें हथियार तो नहीं बना रहा। टीवी चैनलों और समाचार पत्रों के एक परेशानी यह है कि उनके बीच ऐसी प्रतियोगिता ्शुरू हो चुकी है जिसके चलते उन्हें मार्केट में बने रहने के लिए ्न चाहते हुए भी जानते-बूझते ऐसे समाचारों को जगह देना पड़ती है। मगर ऐसे लोगों को पब्लिसिटी मिलने से दूसरे लोगों के हौंसले भी बढ़ते हैं। </div><br /><div>- रवींद्र कैलासिया</div>रवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-53547253756630908172009-07-13T13:57:00.002+05:302009-07-13T14:05:18.085+05:30राजस्थान ने बाजी मारी<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiZpZ6xrGNqzhdm8vlLuIPd_MVoRSn-fIZxKiyPUKJpKocbE164_XHEBr4uibZ84G4eAMb65dHLVo9iP-0nXZQ7u8Bi8BZFZ0h25ff4wg9QsLUJ92m7Vz7CPSkvykLdS54BkIDaJwsefyk/s1600-h/culture-rajasthan.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5357860444852596434" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 112px; CURSOR: hand; HEIGHT: 81px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiZpZ6xrGNqzhdm8vlLuIPd_MVoRSn-fIZxKiyPUKJpKocbE164_XHEBr4uibZ84G4eAMb65dHLVo9iP-0nXZQ7u8Bi8BZFZ0h25ff4wg9QsLUJ92m7Vz7CPSkvykLdS54BkIDaJwsefyk/s320/culture-rajasthan.jpg" border="0" /></a><br /><div>राजस्थान ने बाजी मारीबाल विवाह, सती प्रथा, विधवा के साथ बुरा बर्ताव जैसे रुढि़वादी राजस्थान ने विश्व पर्यटन के क्षेत्र में बाजी मारी है। अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन शो में जाने मानी पत्रिका टे्वल एंड लेजर के सर्वे में राजस्थान के दो शहरों ने बाजी मारी है। एक शहर तो विश्व के सर्वोत्तम पर्यटन शहर के तौर पर बताया गया है। सती प्रथा, बाल विवाह और न जाने कितनी ही कुरीतियों के कुख्यात राजस्थान की इस उपलब्धि को अब प्रदेश सरकार को पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देकर विदेशी मुद्रा कमाना चाहिए।</div><br /><div>टे्रवल एंड लेजर पत्रिका के सर्वे में उदयपुर को जहां विश्व के सर्वोत्तम शहर के रूप में माना है तो 20 सर्वश्रेष्ठ पर्यटन शहरों में जयपुर को भी स्थान दिया है। जयपुर 12 वें स्थान पर है। उदयपुर को सर्वोत्तम स्थान दिए जाने के पीछे सर्वे में कारण यह बताया गया है कि शहर का प्राकृतिक वातावरण, पहाडिय़ां और ऐतिहासिक धरोहर के साथ सुव्यवस्थित होटल है। </div><br /><div>देखना यह है कि राजस्थान से सबक लेकर देश के दूसरे राज्य पर्यटन को सुव्यवस्थित करने की कहां तक कोशिश करते हैं। मप्र, उत्तरप्रदेश और कुछ अन्य राज्य तो यदाकदा इस तरह के आयोजन किए जाते हैं मगर अभी तक उसका ऐसा कोई शहर विश्व के पर्यटकों के लिए बहुत आकर्षण का केंद्र नहीं बन सका है। </div><br /><div>- रवींद्र कैलासिया</div>रवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-7041552179792034332009-07-11T23:06:00.001+05:302009-07-11T23:12:43.993+05:30घर की मुर्गी अब दाल बराबर नहीं...कहते हैं कि घर की मुर्गी दाल बराबर, लेकिन अब यह बिलकुल सही नहीं है। मुर्गी तो पहले जहां थी वहीं है लेकिन दाल आज आसमान छू चुकी है। मांसाहारी लोग पहले जहां एक टाइम दाल खाना पसंद करते थे वे अब एक टाइम मुर्गा खा रहे हैं।<br />आज दाल की कीमत 85 रुपए किलोग्राम है। एक महीने में इसकी कीमत में 30 रुपए का इजाफा हुआ है। वहीं मुर्गा 60 रुपए किलोग्राम के हिसाब से बाजार में बिक रहा है। शाकाहारी लोगों का दाल खाना अब बंद होता नजर आ रहा है क्योंकि तुअर दाल दूसरी दालों की तुलना में सबसे ज्यादा महंगी हो चुकी है। दूसरे दालें भी महंगी हुईं हैं लेकिन किसी भी दाल की कीमत 60 रुपए किलोग्राम से ज्यादा नहीं पहुंचा है। शाकाहारी व्यक्ति की थाली से दाल शायद अब गायब हो जाएगी। मगर मांसाहारी व्यक्ति के पास विकल्प जरूर है। वह तुअर दाल की जगह दूसरी दालों की कीमत में मुर्गा खा सकता है।<br />लोकसभा चुनाव के पहले जो महंगाई थी वह नई और स्थिर सरकार बनने के बाद भी लगातार बढ़ रही है। आखिर इस पर लगाम लगाने के उपाय सरकार के पास हैं भी या फिर गरीब की थाली से दिन ब दिन एक-एक सब्जी गायब होती जाएगी।<br />- रवींद्र कैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6357246509032164751.post-27405857896379165742009-07-09T15:03:00.001+05:302009-07-09T15:17:30.255+05:30ऐसी पुलिस चाहिए हमें...समाज में महिलाओं के साथ असामाजिक तत्वों द्वारा छेड़छाड़ और उनके साथ जोर-जबरदस्ती के खिलाफ पुलिस की मूकदृष्टि से उसकी छवि सबसे ज्यादा खराब हुई है। भोपाल में एक घटना में पुलिस की तत्परता वाकई तारीफे काबिल है और समाज को ऐसी ही पुलिस चाहिए।<br />घटना भोपाल के अशोका गार्डन से मुख्य रेलवे स्टेशन जाने वाले रास्ते की है। यहां कुछ मनचले बाइक पर सवार होकर जा रहे थे। बारिश के कारण छाता लगाकर जा रही एक युवती से इन लोगों ने इस कदर छेड़छाड़ की कि उसे अपना रास्ता बदलना पड़ा। दैनिक भास्कर के एक फोटोग्राफर की नजर उस पर पड़ गई और उसने कैमरे में इन मनचलों की चार-पांच तस्वीरें उतार लीं। भला इस समाचार पत्र का कि उसने फोटोग्राफर की तस्वीरों को अखबार में जगह दे दी। समाचार पत्र में बाइक का नंबर भी था तो पुलिस ने तुरंत उसके मालिक का पता लगाया और दोनों मनचलों को पकड़ लिया। अब अगर ऐसी पुलिस समाज को मिल जाए तो कहना क्या? पुलिस ऐसी दो-चार कार्रवाई कर दे और उसका खासा प्रचार-प्रसार हो जाए तो असामाजिक तत्वों की मजाल कि वे राह चलती लड़की या किसी सार्वजनिक स्थान पर युवती को कुछ कह सकें। मगर इसमें समाचार पत्र को अपनी भूमिका का निर्वाह इस घटना जैसा करना होगा।<br /> - रवींद्र कैलासियारवींद्र कैलासियाhttp://www.blogger.com/profile/06481150874770632663noreply@blogger.com2