शनिवार, 19 सितंबर 2009

ब्लाग प्रविष्टि ka अद्र्धशतk

साथियों मैंने अपने ब्लॉग ki शुरूआत 31 मई 2009 ko ki थी और उस समय मेरे मन में यह विचार था ki kai ऐसी बातें होती हैं जिन्हें पत्रkaरिता पेशे में होने ke बाद भी खुलkar सब ke सामने नहीं रख sakता और ब्लॉग पर उन्हें डाalkar सभी ke साथ उसे शेयर kar sakता हूं। मैंने यह नहीं सोचा था ki मैं इतने kam समय में आपka इतना स्नेह पा लूंगा। kai विचार मैंने ऐसे भी रखे जिनसे बहुत से लोग सहमत नहीं थे। उनki टिप्पणियां भी मुझे मिलीं। उनka मत मेरे से अलग था और मुझे उनke विचारों से जरा भी बुरा नहीं लगा। मुझे उसka दूसरा पहलू भी पता लगा। हालांki kuछ मामलों में उस•े बारे में मुझे पता था।
मेरे ब्लॉग ki 50 वीं प्रविष्टि kenद्रीय मंत्री शशि थरूर ke इkoनॉमी क्लास ki हवाई यात्रा ko caटल क्लास ki यात्रा kaहे जाने पर भारतीय जनता पार्टी ki युवा मोर्चा इkai ke प्रदेश अध्यक्ष विश्वास सारंग हास्यास्पद बयान पर आधारित है। इसमें मैंने यह kaहना चाहा है ki नेता सुर्खियां बटोरने ke लिए kuछ भी बयान देते रहते हैं।
- रवींद्र •kaiलासिया

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

हवाई यात्रा करने वाली गरीब जनता




केंद्रीय मंत्री शशि थरूर के इकोनॉमी क्लास में हवाई यात्रा को कैटल क्लास में यात्रा करने संबंधी बयान पर एक तरफ जहां राष्ट्रीय राजनीति में बवाल मचा है तो वहीं मप्र में भाजपा एक विधायक और युवा मोर्चे के प्रदेश अध्यक्ष विश्वास सारंग हवाई यात्रा करने वालों को गरीब बताकर क्या साबित करना चाह रहे हैं। अगर वे हवाई यात्रा करने वालों को गरीब मान रहे हैं तो भारत में गरीब की परिभाषा को बदले जाने की आवश्यकता है।
कांग्रेस द्वारा अपने केंद्रीय मंत्रियों को सादगी से रहने और दौरों के लिए इकोनॉमी क्लास में यात्रा करने के प्रेरित करने के प्रयास को श्री थरूर के बयान से झटका लगा है और विपक्ष को बैठे-बिठाए हथियार मिल गया है। श्री थरूर ने इकोनॉमी क्लास की हवाई यात्रा को कैटल क्लास कहकर राजनीति माहौलको गरमा दिया है। हालांकि उनके पक्ष में कुछ बुद्धिजीवी सामने आए हैं जिनका मानना है कि कांग्रेस हाईकमान के मंत्रियों के लिए बनाए गए दिशा-निर्देशों से पाखंड और ढोंग को बढ़ावा मिलेगा।
वहीं दूसरी तरफ प्रदेश में सुर्खियों में बने रहने के लिए बयानवीर नेता भी बात की गंभीरता को समझे बिना बयान जारी कर देते हैं। श्री सारंग ने बयान दिया कि श्री थरूर देश की गरीब जनता की तुलन भेड़-बकरी कर रहे हैं और इसलिए उन्हें तुरंत मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जाना चाहिए। श्री थरूर ने हवाई यात्रा करने वालों के लिए बयान दिया था और हमारे देश की करोड़ों की आबादी वाली गरीब जनता ने हवाई जनता तो क्या उसे छूकर देखा तक नहीं होगा। क्या हवाई यात्रा करने वाली गरीब जनता है? अगर है तो फिर हम तो विकासशील नहीं विकसित देशों की श्रेणी में आ चुके होंगे।
केंद्रीय मंत्री श्री थरूर का बयान हो या भाजपा से निष्कासित जसवंत सिंह का कोई विवादास्पद मामला, नेताओं को इसे राजनीतिक चस्मे उतारकर बयानबाजी करना चाहिए। हालांकि तत्कालिक लाभ पाने के लिए लोग सुर्खियां बटोर लेते हैं मगर इसका प्रभाव दीर्घकाल में कहीं न कहीं दिखाई देता है।
- रवींद्र कैलासिया

गुरुवार, 10 सितंबर 2009

बाढ़ के बीच सूखे का अध्ययन



सरकारें किस तरह काम करती हैं यह इन दिनों देखने को मिल रहा है। केंद्र सरकार सूखे के अध्ययन के लिए विभिन्न राज्यों में अध्ययन दल ड्डभेज रहा है तो राज्य सरकारें अपने ज्यादा से ज्यादा जिलों को सूखे में शामिल करने में जुटे हैं। दोनों ही सरकारें यह तैयारी बारिश की समाप्ति का इंतजार किए बिना करने लगी हैं। अब हालात यह है कि राज्यों में जहां बाढ़ के नजारे दिखाई दे रहें तो वहीं केंद्र सरकार के सूखा अध्ययन उसमें सूखा प्रभावित क्षेत्र की तलाश कर रहे हैं।
बाढ़ के बीच सूखे का अध्ययन
सरकारें किस तरह काम करती हैं यह इन दिनों देखने को मिल रहा है। केंद्र सरकार सूखे के अध्ययन के लिए विभिन्न राज्यों में अध्ययन दल भेज रहा है तो राज्य सरकारें अपने ज्यादा से ज्यादा जिलों को सूखे में शामिल करने में जुटे हैं। दोनों ही सरकारें यह तैयारी बारिश की समाप्ति का इंतजार किए बिना करने लगी हैं। अब हालात यह है कि राज्यों में जहां बाढ़ के नजारे दिखाई दे रहें तो वहीं केंद्र सरकार के सूखा अध्ययन उसमें सूखा प्रभावित क्षेत्र की तलाश कर रहे हैं।
क्या यह फिजूलखर्ची नहीं है? जहां सरकारें मंत्रियों को फाइव स्टार होटलों में ठहरने से रोक रही हैं। पेट्रोल-डीजल की बचत करने को कह रही हैं और कहीं सरकारें अफसर-मंत्रियों को एसी चलाने पर पाबंदी लगा रही हैं। वहीं केंद्रीय अध्ययन बाढग़्रस्त प्रदेशों में इस तरह दौरे कर रहा है। क्या यह फिजूलखर्ची नहीं है? इसके लिए कौन जिम्मेदार है।
- रवींद्र कैलासिया

शनिवार, 5 सितंबर 2009

जनता और नेता के चेहरे



आंध्रप्रदेश में मुख्यमंत्री वायएस राजशेखर रेड्डी के निधन के बाद नेता और जनता के अलग-अलग चेहरे एकबार फिर सामने आए। अपने चहेते नेता को खोने वाली जनता ने जहां खुलकर अपनी मौत को गले लगाकर उनके प्रति अपने लगाव को प्रदर्शित किया तो नेताओं ने अपने चहेते नेता को खोने के बाद पर्दे के पीछे जो खेल खेला वह राजनीति का काला चेहरा था। एक तरफ रेड्डी का शव रखा था तो दूसरी तरफ उनके समर्थक अपने सुरक्षित भविष्य के लिए बेटे को कमान सौंपने के लिए पार्टी आलाकमान तक संदेश पहुंचाने में जुटे थे।
रेड्डी के हेलीकॉप्टर के लापता होने से लेकर उनके शव मिलने तक आंध्रप्रदेश में उभरी असुरक्षा की भावना ने एकबार फिर जनता और नेता के चेहरों की असलियत को उजागर कर दिया। बेचारी जनता ने जहां रेड्डी को मसीहा मानकर उनके असामयिक निधन पर अपनी जान की परवाह नहीं की और मौत को गले लगा दिया। मगर नेता की भावना इससे कहीं अलग ही नजर आई। वे अपने सुरक्षित भविष्य की तलाश में रेड्डी के विकल्प के नाम पर सोचते रहे। उन्हें शायद रेड्डी के सांसद बेटे में अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित लगा और श्री रेड्डी के अंतिम संस्कार के पहले ही उनके नाम को मुख्यमंत्री के तौर पर चला दिया।
वैसे भारत की राजनीति में यह कोई पहला उदाहरण नहीं है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भी ऐसा ही माहौल बना था और राजीव गांधी को देश की कमान सौंप दी गई थी।
- रवींद्र कैलासिया

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