शनिवार, 5 सितंबर 2009

जनता और नेता के चेहरे



आंध्रप्रदेश में मुख्यमंत्री वायएस राजशेखर रेड्डी के निधन के बाद नेता और जनता के अलग-अलग चेहरे एकबार फिर सामने आए। अपने चहेते नेता को खोने वाली जनता ने जहां खुलकर अपनी मौत को गले लगाकर उनके प्रति अपने लगाव को प्रदर्शित किया तो नेताओं ने अपने चहेते नेता को खोने के बाद पर्दे के पीछे जो खेल खेला वह राजनीति का काला चेहरा था। एक तरफ रेड्डी का शव रखा था तो दूसरी तरफ उनके समर्थक अपने सुरक्षित भविष्य के लिए बेटे को कमान सौंपने के लिए पार्टी आलाकमान तक संदेश पहुंचाने में जुटे थे।
रेड्डी के हेलीकॉप्टर के लापता होने से लेकर उनके शव मिलने तक आंध्रप्रदेश में उभरी असुरक्षा की भावना ने एकबार फिर जनता और नेता के चेहरों की असलियत को उजागर कर दिया। बेचारी जनता ने जहां रेड्डी को मसीहा मानकर उनके असामयिक निधन पर अपनी जान की परवाह नहीं की और मौत को गले लगा दिया। मगर नेता की भावना इससे कहीं अलग ही नजर आई। वे अपने सुरक्षित भविष्य की तलाश में रेड्डी के विकल्प के नाम पर सोचते रहे। उन्हें शायद रेड्डी के सांसद बेटे में अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित लगा और श्री रेड्डी के अंतिम संस्कार के पहले ही उनके नाम को मुख्यमंत्री के तौर पर चला दिया।
वैसे भारत की राजनीति में यह कोई पहला उदाहरण नहीं है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भी ऐसा ही माहौल बना था और राजीव गांधी को देश की कमान सौंप दी गई थी।
- रवींद्र कैलासिया

1 टिप्पणी:

  1. इसका अर्थ तो यही हुआ कि जो भावुक थे उन्होने जान गवाँ दी और जो भावना शून्य थे वे भविष्य के गणित मे लग गये ।

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