सोमवार, 29 जून 2009

1946 में भोपाल के हिंदूओं की हालत

आजादी की दहलीज पर जब भारत खड़ा था और राष्ट्रीय सरकार के उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल छोटी-छोटी रियासतों को भारत में मिलाने की कवायद कर रहे थे तब 30 जून 1946 में अलग-अलग विचारधारा वाले हिंदू नेताओं के उन्हें जो आवेदन पत्र दिया उसे पढऩे पर हिंदुओं के साथ हो रहे व्यवहार को लेकर आज रोंगटे खड़े हो सकते हैं। तब मुसलमानों द्वारा कई तरह से ज्यादती की जाती थी। राजनैतिक संरक्षण में धर्म परिवर्तन होता था। उस आवेदन के तथ्यों को पढऩे के बाद लगता है कि भोपाल में हिंदुओं की हालत में बहुत कम बदलाव आया है।
सरदार वल्लभ भाई पटेल को दिए गए आवेदन में भोपाल के भैरोंप्रसाद, उद्धवदास मेहता, लक्ष्मीनारायण शर्मा, बाबूलाल शर्मा, लक्ष्मीनारायण सिंहल, मदनलाल गुप्ता, नारायणदास सिंहल, राजमल वैश्य, जगन्नाथ सर्राफ, रामनारायण अग्रवाल, मिश्रीलाल तिवारी, निर्मल कुमार जैन, चतुर्भुज दास अघ्रवाल ने हस्ताक्ष किए थे। यह आवेदन भोपाल समाचार नाम के साप्ताहिक समाचार पत्र ने सात अक्टूबर 1947 को प्रकाशित किया था। उस समय के हालात बताते हुए इन लोगों ने लिखा था कि जब से लड़ाई चालू हुई तब से फूड कंट्रोल, राशन, टेक्सटाइल विभाग द्वारा हिंदूओं पर अत्याचार किया जा रहा है। मुस्लिम पक्षपाती नीति के कारण हिंदुओं को सदैव शिकार बनाया जाता रहा है। हिंदू मजदूर और किसानों की हालत दयनीय बताई गई।धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर बताया गया कि भोपाल शहर में मस्जिद के 25 कदम के फासले पर रात हो या दिन कभी-भी बाजा नहीं बजाया जा सकता। यदि किसी मंदिर की मरम्मत के लिए आवेदन दो तो नामंजूर हो जाती है जबकि हर साल मस्जिदों की वृद्धि होती रही। मगर मंदिर बनाया जाना लगभग असंभव बताया गया। अखबार ने 1931 और 1941 की भोपाल राज्य की आबादी की तुलना की थी। 1931 में जहां भोपाल राज्य में निम्न हिंदू वर्ग 167017, अन्य हिंदू 396089, जंगली जाति 64485, जैन, सिख आदि 60093 और मुसलमान 88 हजार थी वहीं 1941 में क्रमश: यह आबादी 187243, 409960, 69339, 69003 और 109870 हो गई।
1931 में भोपाल राज्य की आबादी में मुसलमान का प्रतिशत 12 था जो 1941 मं 14 फीसदी हो गया। भोपाल शहर की आबादी 1931 में 61033 थी जिसमें मुसलमान 60 फीसदी थे। 1941 में भोपाल शहर की 75000 की आबादी में 66 फीसदी मुसलमान हो गए। तब हिंदू नेताओं ने आवेदन में यह आशंका जताई थी कि अगर यही वृद्धि दर रही तो 50 साल में भोपाल में गैर मुसलमान आबादी नही ंबचेगी। इसके लिए उन्होंने धर्म परिवर्तन को जिम्मेदार बताया था। आरोप लगाया था कि सरकारी कर्मचारी मुसलमान गुंडों को संरक्षण देते थे और हिंदू स्त्रियों व बच्चे को शिकार बनाते थे। रियासत में अलग महकमा था जिसका स्थानीय काजी प्रधान होता था। यह महकमा धर्म परिवर्तन का काम करता था। धर्म परिवर्तन में मुसलमानों की कई गुप्त संस्थाएं भी थीं। हिंदू महिलाओं के अपहरण की आशंका हमेशा बनी रहती थी।
समाचार पत्र ने लिखा था कि भोपाल राज्य में मुसलमानों को बसाने का काम किया गया। बाहरी मुसलमानों को उच्च पदों पर बैठाया गया या नौकरियां दी गईं। पठान पेशावर और उत्तर पश्चिम सीमांत से फौज में भती कर लोगों को लाया गया जो अपने आपको भोपाली बताते हैं। तिब्बत में लूटमार करने वाले रज्जाकों ने कश्मीर में शरण ली मगर वहां से भगाए तो वे भोपाल आ गए। यहां उनके लिए सुविधा आदि देने हेतु अलग महकमा बनाया गया। बड़े-बड़े ठेके राज्य के बाहर के मुस्लिमों को दिए गए। आवेदन में बताया गया था कि सरकारी नौकरियों में भी हिंदुओं को जगह बहुत कम थी। सात हजार में से केवल 400 हिंदू थे। ये भी निचले ओहदों के कर्मचारी ज्यादा थे। पांच मिनिस्टर्स में कोई हिंदू नहीं था। 30 सेक्रेटरी व अंडर सेक्रेटरी में 1, चार हाईकोर्ट जज में 1, दो सेशन जज में से शून्य, 18 दूसरे जज में से चार हिंदू थे। एक इंस्पेक्टर जनरल पुलिस और दो डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल पुलिस में से कोई भी नहीं तो पांच सुपरिटेंडेंट पुलिस में से एक हिंदू था। 12 इंस्पेक्टर पुलिस में से 2, 63 सब इंस्पेक्टर पुलिस में से 3, 140 हेड कांस्टेबल मेंसे पांच तो लगभग 1000 कांस्टेबल में से 50 हिंदू सिपाही थे। चारों नाजिम व डिप्टी नाजिम मुसलमान थे। वहीं 20 तहसीलदार में से 3, 25 नायब तहसीलदार मे से दो हिंदू ते। इन आंकडों को आधार बनाकर तत्कालीन हिंदू नेताओं ने सरदार पटेल को बताया था कि भोपाल राज्य में हिंदुओं की हालत काफी दयनीय है। यह आवेदन तब समाचार पत्र ने प्रकाशित किया था। यह समाचार पत्र भोपाल राज्य के इतिहास की एक पुस्तक में उपलब्ध है।
- रवींद्र कैलासिया

रविवार, 28 जून 2009

बोरिंग मशीन ऑपरेटर से मंत्री तक


केंद्रीय मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री डी नेपोलियन की जीवन यात्रा संघर्ष भरी है। दो दशक पहले तक बोरिंग मशीन ऑपरेटर का काम करने वाले श्री नेपोलियन की मेहनत लोगों के लिए एक उदाहरण है जो पुराने दिनों को भूल जाते हैं। श्री नेपोलियन ने अपने जीवन के उन दिनों को याद करते हुए मध्यप्रदेश के प्रवास के दौरान जब इसका खुलासा किया तो लोग आश्चर्यचकित रह गए मगर केंद्रीय मंत्री का ह्रदय उस समय को याद कर प्रफुल्लित हो रहा था।श्री नेपोलियन मध्यप्रदेश प्रवास के दौरान रतलाम पहुंचे थे। उन्होंने बताया कि उनके बड़े भाई कृपाकरण के साथ वे 25 साल पहले काम की तलाश में दक्षित भारत से रतलाम पहुंचे थे। यहां नलकूप खनन का काम मिला और उन्होंने बोरिंग मशीन ऑपरेटर का काम किया। साल दो साल नहीं बल्कि पांच साल बोरिंग मशीन ऑपरेटर रहे। इसके बाद दक्षिण भारत की फिल्मों में काम किया। अभी वे डीएमके से सांसद हैं और केंद्र में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के राज्यमंत्री हैं।

- रवींद्र कैलासिया

शनिवार, 27 जून 2009

क्या मुख्यमंत्री केवल पार्टी कार्यकर्ताओं का?


मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक बयान दिया है कि नशे के कारोबारियों को भाजपा से लात मारकर निकालेंगे। यह बयान किसी पार्टी का प्रमुख का नहीं बल्कि एक प्रदेश के मुखिया है और अगर वे वाकई इस तरह की विचारधारा वाले मुख्यमंत्री हैं तो उन्हें प्रदेश में शराब के कारोबार पर पाबंदी लगाना चाहिए। मगर वे ऐसा नहीं कर रहे हैं बल्कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष या संगठन के दूसरे प्रमुख पदाधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रहे हैं।

मुख्यमंत्री को अपने इस विचार का पालन हरियाणा और गुजरात की तरह शराब पर पाबंदी लगाकर करना चाहिए। इससे वे न केवल भाजपा कार्यकर्ताओं को नशे के क ारोबार से दूर रख सकेंगे बल्कि समाज को भी एक बुराई से दूर कर सकेंगे। उन्हें प्रदेश की महिलाएं और बच्चे सबसे ज्यादा दुआएं देंगे। मगर वे ऐसा नहीं कर सकेंगे क्योंकि इससे प्रदेश को जितना राजस्व मिलता है उसकी भरपाई के वे दूसरे रास्ते तलाश नहीं सकते। वैसे उनकी यह चिंता बहुत अच्छी है लेकिन उन्हें प्रदेश का मुखिया होने के नाते केवल पार्टी कार्यकर्ताओं के बारे में नहीं राज्य की समूची जनता का ध्यान कर कोई बात कहना चाहिए। यही नहीं उन्हें दोहरे चरित्र की भूमिका नहीं निभाना चाहिए और अगर वे पार्टी कार्यकर्ताओं को नशे के कारोबार से दूर रखना चाहते हैं तो शराब पर पाबंदी लगाकर उनका भला कर सकते हैं।

दूसरी बात यह कि मुख्यमंत्री को क्या लात मारकर निकालने जैसे वाक्यों को सार्वजनिक तौर पर इस्तेमाल करना चाहिए। भले ही यह बात उन्होंने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए कही हो मगर मुख्यमंत्री के नाते उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे संभ्रांत भाषा का उपयोग करेंगे। किसी के दिल को चोट न पहुंंचे ऐसी भाषा तो कतई उपयोग नहीं लाएंगे।


- रवींद्र कैलासिया

शुक्रवार, 26 जून 2009

अब उनकी मां वापस आ पाएगी

  • आज
    सात साल की कोमल और आठ साल के उसके भाई अमन बिन मां के हो गए हैं। उनकी
    मां इस दुनिया में नहीं है और आरोप है कि उनके पिता ने उसे पीट - पीट कर मारा डाला और
    वह भी जेल में है। इस पूरे मामले में पुलिस की लापरवाही सामने आई कि उस से सूचना मिल
    गई थी लेकिन उसने सूचना पर जाना तो दूर सूचना देने वाले व्यक्तियों को ही थाने में रात भर
    बैठाकर रखा और जब महिला की लाश मोहल्ले में मिली तब तुरत - फुरत उन्हें भागने को कहा।मामला मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में राज्य मंत्रालय के सामने बनी झुग्गीबस्ती भीमनगर है।
    पति जीतेंद्र- पत्निी मीना की रात को पिटाई कर रहा था। उसके भाई महेंद्र ने बीच - बचाव कि
    या जब वह नहीं माना था जीजा अशोक के साथ पुलिस थाने में सूचना देने पहुंचा। नई गाड़ी थी
    जिसका नंबर आरटीओ से नहीं मिला था। जीजा शराब के नशे में था। पुलिस ने यहां अपराध नियंत्रण की संवेदनशील नजरों से दोनों को रातभर बैठने को कहा। मगर
    उनकी सूचना पर ध्यान तक नहीं दिया और नींद लेने लगे। सुबह उनकी नींद तब खुली जब भी
    मनगर में एक महिला की लाश मिलने की सूचना आई। यह वही महिला थी जिसे पति पीट रहा
    था। पुलिस की नींद फुर्र हो गई और उन्होंने जीजा - साले को कहा भागो सालों बिना नंबर की
    गाड़ी में क्यों घूमते हो।पुलिस ने तो उन्हें भगा दिया मगर जब महेंद्र और अशोक वहां पहुंचे तो माजरा देखकर उन्हें
    पुलिस के रवैये पर जमकर गुस्सा आया। महिला के दोनों तरफ दो बच्चे कोमल और अमन रो
    रहे थे। आखिर अब इन मासूमों को कौन बताए अब उनकी मां वापस नहीं आएगी। शायद आज
    इन मासूमों की जिंदा होती अगर जनता के रखवाले समय पर सक्रिय हो जाते। आखिर पुलिस में
    कब संवेदनशीलता जागेगी।

- रवींद्र कैलासिया

गुरुवार, 25 जून 2009

जंगल बाघ, बाबा और बागी का







सतना जिले के बिछियन में दर्जन भर लोगों को जिंदा जलाकर मार देने वाले विंध्य क्षेत्र में सक्रिय डाकू सुंदर पटेल उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश पुलिस के घेराबंदी के तमाम दावों के बाद भी वह लगातार मोबाइल बदल कर लोगोंम को डरा-धमकाकर अड़ी बाजी कर रहा है। हजारों में नहीं बल्कि लाखों में चौथ वसूल रहा है। मैंने भी पत्रकार के नाते उसके मोबाइल नंबर साक्षात्कार लिया तो उसने धमकी भरे अंदाज में अपने इरादे बताते हुए कहा जंगल बाघ, बाबा और बागी का होता है। सुंदर पटेल से बातचीत के कुछ अंश मैं अपने ब्लॉक पर डाल रहा हूं जिसको सुनकर डाकुओं के विचारों को जान सकेंगे। उसने चर्चा में साफतौर पर धमकाया जंगल सरकार नहीं है। बाघ, बाबा और बागी के जंगल से कुछ भी चीज ले जाओगे को उसके बदले पैसा तो देना होगी। उसने विंध्य क्षेत्र में बाक्साइट खदानों के मालिकों, सड़क के ठेके ले रहे लोगों से चौथ वसूली का सिलसिला बंद नहीं किया है। पुलिस को भी इसकी सूचना मिलती रहती है। हाल ही में उसने सतना के एक बाक्साइट खदान मालिक पर तीन लाख रुपए की अड़ी डाली। सुंदर पटेल मोबाइल पर बात करने के पहले पूरी सतर्कता बरता है और नजर रखता है कि कहीं कोई पुलिस का मुखबिर तो नहीं है। जब मैंने उसके एक मोबाइल नंबर पर कुछ दिन पहले बात की थी तब उसने सीधे फोन नहीं उठाया बल्कि किसी अन्य व्यक्ति ने उसे अटैंड किया। 15-20 मिनट बाद उसी नंबर पर मेरे मोबाइल पर घंटी बजी और दूसरी तरफ से आवाज आई मैं सुंदर पटेल बोल रहा हूं। उसने लगभग 10 मिनट बात की। इस दौरान तत्कालीन सतना एसपी जिनका हाल ही में तबादला हुआ है और एसडीओपी से हुई बातचीत के बारे में बताया। सुंदर े एसपी के हुई गरमा-गरम बहस को लेकर बताया कि उन्होंने थाने से मुझे एक नंबर पर मोबाइल लगाया था। डकैत ने कहा जब उन्होंने धमकाना शुरू किया तो उसने भी उन्हें धमकी भरे अंदाज में कह दिया था कि दम है तो मुझे पकड़कर बता दो। इसी तरह एसडीओपी से भी कमोबेश यही बात हुई क्योंकि वे मेरे रिश्तेदारों और मित्रों को बेवजह परेशान कर रहे थे। एक धार्मिक आयोजन को लेकर उसने बतया कि मेरे रिश्तेदार के आयोजन के खाने में पुलिस वालों ने मिट्टी डलवा दी थी। यह कौन-सी बात है।



- रवींद्र कैलासिया

बुधवार, 24 जून 2009

समलैंगिक संबंधों पर पाटिल की सफाई...

पंचायत सचिव के साथ समलैंगिक संबंध स्थापित करने के आरोपों में फंसे मप्र कैडर के आईएएस अधिकारी ज्ञानेश्वर पाटिल अब तमाम अधिकारियों और प्रेस के सामने सफाई देते फिर रहे हैं। अपने विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ आईएएस अफसर इंद्रनील दाणी से लेकर अपने साथ काम कर चुके राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी से रूबरू मुलाकात कर वे सफाई दे रहे हैं। आमतौर पर समाचार पत्रों से दूर रहने वाले श्री पाटिल इन दिनों समाचार पत्रों में सफाई देने के लिए खुलकर बोल रहे हैं। दैनिक भास्कर को पूरे घटनाक्रम का ब्योरा दिया है।वे बताते हैं कि रात सवा नौ बजे बच्चे को डॉक्टर को दिखाने के बाद पत्नी और बच्चे को घर के लिए रवाना कर स्वयं आफिस में रुकने की बात कह रहे हैं। पंचायत सचिव को पंचायत के कुछ रिकार्ड के साथ रात को दफ्तर में बुलाया था और काम संतोषजनक नहीं पाने से उसके डांट लगाई। उसे बाहर जाने का कहकर वे शौच के लिए कक्ष के शौचालय में चले गए और जब बाहर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आई तो देखा पंचायत सचिव अद्र्धनग्न हालत में शोर मचा रहा था और मीडिया को पुकार रहा था। श्री पाटिल ने यह घटनाक्रम बताते हुए अपनी सफाई दी है। वहीं श्री पाटिल के साथ काम कर चुके अधिकारी घटना में दम होने की बातें कर रहे हैं तो वरिष्ठ अफसरान वास्तविकता पंचायत सचिव या श्री पाटिल को पता होने की बात कह कर कन्नी काट रहे हैं। मगर इस घटना ने पूरे प्रशासनिक हल्के को हिलाकर रख दिया है। इसको लेकर वैसे अभी तक आईएएस अधिकारी खुलकर सामने नहीं आए हैं लेकिन श्री पाटिल इसे उनके खिलाफ षडय़ंत्र बता रहे हैं। दूसरी तरफ इस घटना के प्रभाव धीरे-धीरे दिखाई भी देने लगे हैं। हाल ही में दो दिन पहले पंचायत एवं ग्रामीण विकास के एक दफ्तर विकास आयुक्त कार्यालय में एक पेंशनर ने जब पेंशन प्रकरण का निराकरण नहीं होने पर कपड़े उतार हंगामा मचाया तो सचिव अनिल श्रीवास्तव इतने घबरा गए कि उन्होंने पेंशनर से मिलने से इनकार कर दिया। दबी जुबान से वे एक अधिकारी से बोले साहब वह कपड़े उतारकर खड़ा है। आप मिल लीजिए, अभी ज्ञानेश्वर पाटिल का मामला हुआ, मैं तो नहीं मिलूंगा। ये संकेत प्रशासनिक व्यवस्था के लिए घातक साबित हो सकती है। राज्य शासन को पंचायत सचिव-आईएएस अधिकारी के मामले की जल्द से जल्द निष्पक्ष जांच उसका खुलासा करना चाहिए जिससे दूसरे अधिकारी प्रशासनिक कंट्रोल के लिए निर्णय लेने में टालमटोल नहीं कर सकें।

- रवींद्र कैलासिया

मंगलवार, 23 जून 2009

गरीबों का मजाक न उडाएं लालू


लालू प्रसाद यादव और उनकी पार्टी को लोकसभा चुनाव में जनता ने सबक सिखा दिया है मगर लगता है कि अभी-भी उनकी समझ नहीं आ रहा है। वे नौटंकी कर गरीबों का मजाक उड़ाने से बाज नहीं आ रहे हैं। आलीशान गाड़ी में बैठकर गरीबों को 500-500 रुपए के नोट बांट रहे हैं। और तो और उन्हें न जाने किस बात की खुशी हुई है जो अद्र्धनग्न अवस्था में उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े गरीबों को मिठाई खिला रहे हैं। हार का स्वाद चखने के पहले हवा में उड़ान भर रहे लालू ने सोनिया गांधी का साथ छोड़ा और फिर दूसरे हवाई नेता बन चुके रामविलास पासवान से हाथ मिलाया। जनता द्वारा बुरी तरह ठुकराए जाने के बाद उन्हें पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता याद आने लगे। इसके लिए उन्होंने कार्यकर्ताओं को स्वादिष्ट व्यंजन खिलाए। इन व्यंजन का स्वाद तो कार्यकर्ताओं ने चख लिया मगर पार्टी को मिली हार के कड़वे सच को वे हजम नहीं कर पा रहे हैं। लालू को इसके बाद मतदान केंद्रों पर पहुंचकर उन्हें हार दिखाने वाले मतदाताओं तक जाने की याद आर्ई। वे गरीबों की बस्तियों में पहुंचे जिसकी तस्वीरें टीवी पर दिखाई गईं। दृश्यों में जो दिखाई दिया उससे लगता है कि हार के बाद भी वे गरीबों का मजाक उड़ाने से बाज नहीं आ रहे हैं। शायद उन्हें अभी भी अपने पैसे का घमंड है। तस्वीरों में दिख रहा था कि लालू आलीशान गाड़ी में बैठे हैं और सीट के एक कोने से पांच-पांच सौ के नोट उठाकर गरीबों को देकर उनके सिर पर हाथ फेर रहे हैं। उनका यह व्यवहार क्या गरीबों के दिलों में जगह बनाने के लिए काफी है।

- रवींद्र कैलासिया

रविवार, 21 जून 2009

शिव के गुस्से का शिवराज द्वारा मजाक..




भगवान शिव के कऱोध के बारे में कहा जाता है कि उनके गुस्से से भगवान बऱह्मा तक घबराते हैं। मगर उनके नाम के साथ मध्यपऱदेश में राज कर रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गुस्से का सरेआम मजाक उड़ रहा है। मुख्यमंत्री ने शुकऱवार को अपने गुस्से का शायद पहली बार इजहार किया जिसमें सामने थे पुलिस महानिदेशक संतोष कुमार राउत और भोपाल आईजी शैलेंदऱ श्रीवास्तव, एसपी जयदीप पऱसाद। गुस्से की वजह थी भोपाल में लूट की घटनाएं बढ़ रही हैं और सरेराह अपराधियों द्वारा महिलाओं के साथ गैंग रेप जैसी घटनाएं की जा रही हैं। मगर सीएम के गुससे में इतना दम था कि रात के अंधेरे में सरकार ने पऱदेश के ५० में से २५ जिलों के एसपी बदल िदए और तीन रेंज के छह आईजी-डीआईजी को हटा िदया मगर न तो शैलेंदऱ श्रीवास्तव का नाम था न जयदीप पऱसाद का।
मुख्यमंत्री शायद यहां असहाय महसूस कर रहे हैं क्योंकि जिन अधिकारियों की डोर उनके हाथ में नहीं हैं। आखिर उनके गुस्से के चंद घंटे बाद जो पुलिस के थोकबंद तबादला आदेश जारी हुए उससे तो यह लगता है। उनके गुस्से में भोपाल की जनता की पीड़ा तो नजर आ रही थी मगर तबादला आदेश में उनकी पीड़ा नजर नहीं आई। क्या वे जनता को अपने गुस्से के बाद भी अफसरों को हटा नहीं पाने की वजह बता पाएंगे।
बढ़ते अपराधों के बारे में माना जाता है कि पुलिस की अपराधियों के साथ सांठगांठ हो चुकी है या उनका कंट्रोल समाप्त हो चुका है। पुलिसिंग सही तौर पर नहीं हो रही। न तो रात्रिगश्त की जा रही न अपराधियों की सही तौर पर की जा रही। न अपराधों में पकड़े जा रहे नए अपराधियों का सही रिकाडर् रखा जा रहा। पढ़ने के लिए भोपाल आ रहे छात्रों के रिकाडर् को रखे जाने की आज जरूरत है जिसके लिए थाना स्तर पर ज्यादा काम होने की आवश्यकता है। बीट में सिपाही और हवलदार को ज्यादा काम करने की जरूरत है। जगह-जगह हास्टल बन जाने से उन्हें घूम-घूमकर उनमें रह रहे छात्रों के बारे में हर हफ्ते-दस दिन में उनके बारे में पूछताछ करने की जरूरत है। उनके रहन-सहन पर लगातार नजर रखने की आवश्यकता है। उनके पड़ोसियों से उनके बारे में पूछताछ करने आवश्यकता है।
पुलिस जब ये सारे काम करेगी तो जनता में विश्वास जागेगा और पुलिस की आलोचना होने से बचेगी। दूसरे राज्यों की तरह अपराध दजर् होने से परहेज की पऱवृत्ति को त्यागना होगा। जितने ज्यादा अपराध दजर् होंगे उतने ज्यादा पुलिस को इनवेस्टीगेशन करना होगा जिससे अपराधियों की धरपकड़ होगी और फिर अपराधियों में खौफ बैठेगा कि कहीं कुछ किया नहीं उन्हें पुलिस पकड़ लेगी।
एकबार फिर मुख्यमंत्री के गुस्से पर आता हूं। वे दिखावा नहीं करें क्योंकि जो वे करना चाहते हैं कर नहीं पाते। पहले वे जहां सरकार की डोर है वहां से हरी झंडी ले लिया करें फिर अफसरों पर गुस्सा निकाल करें क्योंकि इससे अफसरों में उनकी छवि पर असर पड़ता है। गुस्से से लाल-पीले होने के बाद भी जब वे निणर्य नहीं ले पाते तो संबंधित अफसर कई जगह उनके असहाय होने की खबरें बताता है और दोस्तों-साथियों को सुनाता है।

-रवींदऱ कैलासिया

शुक्रवार, 19 जून 2009

आईएएस अफसर द्वारा युवक का दैहिक शोषण

मध्यप्रदेश के एक आईएएस अधिकारी ज्ञानेश्वर पाटिल पर एक पंचायत सचिव ने दैहिक शोषण का आरोप लगा है। जिला पंचायत भोपाल के दफ्तर में मुख्य कार्यपालन अधिकारी और आईएएस अधिकारी श्री पाटिल और पंचायत सचिव की आपत्तिजन तस्वीरों को एक टीवी चैनल के कैमरा मेन ने भी कैद किया है। इन तस्वीरों और पंचायत सचिव के आरोप में कितनी सत्यता है इसका खुलासा तो पुलिस की जांच में हो जाएगा। मगर रात को सरकारी दफ्तर में आईएएस अधिकारी क्या कर रहे थे? क्या उन्होंने पंचायत सचिव को बुलाया था? जैसा कि पंचायत सचिव का आरोप है कि वह अपने दोस्त के काम से आते थे और उन्हें इसके लिए कई बार श्री ज्ञानेश्वर पाटिल ने बुलाया। कई बार उन्होंने उनका दैहिक शोषण किया। इन आरोपों में चाहे जितनी सत्यता हो मगर एक आईएएस अधिकारी के दफ्तर में कार्यालयीन समय के बाद रात को उपस्थिति और उसी दौरान एक पंचायत सचिव जैसे सरकारी कर्मचारी की मौजूदगी से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। यह खबर भले ही टीवी चैनल वालों के लिए बिकाऊ हो लेकिन इससे प्रशासन की छवि धूमिल होती है। इसको लेकर सरकार को अपने अफसरों की क्लास लेने की जरूरत होगी।

- रवींद्र कैलासिया

गुरुवार, 18 जून 2009

हम हैं यहां के राजकुमार...


कांग्रेस ने यह फैसला ले लिया है कि उनका कोई भी नेता श्रीमंत, राजा, रानी, महाराजा, महारानी, कुंवर साहब, युवराज, राजकुमार, राजकुमारी साहिबा नहीं पुकारा जाएगा या अपने नाम के साथ इनका उपयोग करेगा। मतलब साफ है देश में 60 साल पहले जो राज परिवार थे उनके सदस्यों में आज भी कहीं न कहीं सामंती मानसिकता हावी है। उन्हें राजा, महाराजा जैसे विशेषण कर्णप्रिय लगते हैं। क्षेत्र के दौरे पर जाने पर सुबह जब सर्किट हाउस में उठते हैं तो उन्हें अच्छा लगता है कि दरवाजे पर खड़ा लोगों का समूह पुकारे महाराज दर्शन दो। पहले वे छोटी रियासत या छोटे सीमित क्षेत्र में शासन करने वाले घरानों पर राज करते थे अब वे पूरे देश-प्रदेश पर अप्रत्यक्ष तौर पर राज कर रहे हैं।
कांग्रेस की यह पहल नेहरू-गांधी परिवार की परंपरा है। जवाहरलाल नेहरू ने जिस तरह प्रधानमंत्री बनने पर छोटी-छोटी रियासतों को मिलाने के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल का उपयोग किया था उससे एक कदम आगे इंदिरा गांधी ने पूर्व राजे-महाराजे को मिलने वाला प्रिवीपर्स बंद कर दिया था। अब सोनिया गांधी उन्हें उनके कर्णप्रिय और नाम के साथ लिखे जाने वाले सामंती विशेषणों से दूर करने जा रही हैं। क्या इससे राजे-रजवाड़ों के परिवारो के लोगों की मानसिकता भी बदल जाएगी? क्या ये लोग इसके बाद भी आम आदमी से पैर छूने बंद करा पाएंगे? क्या दिल से ये लोग गरीब, निचली जाति के लोगों को गले लगाकर उसकी पीड़ा जानेंगे? नहीं, क्योंकि इसके लिए दबाव नहीं बल्कि उन्हें आत्मप्रेरित करना चाहिए। वे स्वयं बैठक कर यह निर्णय लें कि हम ऐसा करेंगे।
हालांकि कांग्रेस की यह कोशिश बहुत अच्छी है मगर अकेले कांग्रेस में यह फैसला हो जाने से राजे-रजवाड़ों के लोगों की मानसिकता को बदला नहीं जा सकता। भाजपा और दूसरे दलों को भी इस दिशा में फैसला लेना चाहिए। इसके बाद भारत सरकार राजपत्र में इसका प्रकाशन करे। अन्यथा कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान जैसे राज्य एक बार यह फैसला ले लेंगे तो मप्र जैसे राज्य राजे-रजवाड़ों को बढ़ावा देते हुए श्रीमंत जैसे शब्दों के इस्तेमाल की खुलेआम अधिसूचना जारी करते रहेंगे। - रवींद्र कैलासिया

बुधवार, 17 जून 2009

जोश और जुनून के आगे पैसे के आगे नतमस्तक



क्रिकेट का जुनून भारत में दशकों से है। पहले अधिकांश लोग देश और कुछ व्यक्तिगत नाम के लिए खेलते थे। अब शायद क्रिकेट का मतलब पैसा और पैसा रह गया है। देश की सरकार के लिए जहां चुनाव होने जा रहे थे वहीं बीसीसीआई नोट की बारिश करने वाले आईपीएल ट्वेंटी 20 के आयोजन पर अड़ा था और उसे जब सुरक्षा की दृष्टि से यहां आयोजन की अनुमति देने में सरकार व राज्य सरकारों ने ना नुकूर की तो वे पैसे की खातिर उसे दक्षिण अफ्रीका ले गए। वहां डेढ़ महीने तक खूब नोट बरसे और भारतीय खिलाडिय़ों ने उसके लिए खूब पसीना बहाया। अब जब देश के सिर ट्वेंटी 20 का ताज चढ़ाने की बारी आई तो पता लगा कि ये शेर मांद में नोटों का बिस्तर बनाकर ऐसे मस्त हो गए कि उन्हें न प्रेक्टिस की याद रही न कम डॉट बॉल खेलने की।
आईपीएल ट्वेंटी 20 के बादशाह और देशवासियों के अजीज माही उर्फ महेंद्रसिंह उर्फ एमएस धोनी अब देशवासियों से माफी मांग रहे हैं। क्या उन्हें माफ किया जाना चाहिए? उन्हें अपने वरिष्ठ साथियों के साथ राजनीति करने से फुरसत नहीं है। कभी सचिन तो कभी सहबाग के साथ उनकी राजनीति सामने आती है। विज्ञापनों में इतने व्यस्त रहते हैं कि अब वे क्रिकेटर कम मॉडल ज्यादा बन गए हैं। उनके ही राज्य झारखंड में कई पूर्व क्रिकेटरों, राज्य क्रिकेट संघ के पदाधिकारियों ने उनके और टीम इंडिया के खेल की आलोचना की है।
वैसे परिणाम सामने आने के बाद उसकी आलोचना सबसे आसान होता है। मगर क्रिकेटरों से भारतीयों की ज्यादा भावनाएं जुड़ी रहती हैं और शायद इसी वजह से उन्हें बीसीसीआई नोटों से खूब तौल रहा है। यह पैसा अप्रत्यक्ष तौर पर आम नागरिकों का है। विभिन्न कंपयिनों के विज्ञापन से यह राशि बीसीसीआई को मिलती है और ये कंपनियां अपने उत्पाद की कीमत में शुमार करती हैं। कीमत तो नागरिक ही चुकता है।
हमने ओलंपिक खेलों के स्थान पर क्रिकेट को तव्वजोह दी है मगर क्रिकेटरों द्वारा समय समय पर इसका मजाक उड़ाकर खिताबी दौड़ के समय ही अपने आपको फिसड्डी साबित देशवासियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाया। भारत सरकार को देशवासियों की भावनाओं की कद्र कर बीसीसीआई का नियंत्रण अपने पास लेना चाहिए क्योंकि उसमें बेहिसाब पैसा है और आ रहा है। इस पैसे को दूसरे खेलों में इस्तेमाल किया जा सकता है। आप अपनी राय इस बारे में जरूर दें।

- रवींद्र कैलासिया

सोमवार, 15 जून 2009

बनारस के दरोगाजी का शौक



उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थल बनारस पर जहां आतंकवादियों की नजरें जमीं

रहती हैं मगर इससे सबसे बेखबर हैं यहां के एक दरोगा। इनका शौक अजब

है, खुद को रस्सियों से बंधवाकर वे गंगा में उतरना और रिकार्ड बनाने के

लिए दर्शकों की भीड़ को साक्षी बनाना।
बनारस के ये दरोगाजी हैं सुरेश कुमार सोनी। एक टीवी चैनल पर ये मजे से

अद्र्धनग्न हालत में एक खंभे से टिक कर खड़ेे थे और उनके इलाके के लोग

उन्हें रस्सियों से बांध रहे थे। सिर से लेकर कंधे तक उन्होंने खुद को रस्सियों

से बंधवाया लेकिन सिर पर रिकार्ड दर्ज कराने के जुनून के चलते उन्होंने खुद

को सफेद कपड़े के एक बोरानुमा चीज में डलवा लिया। उसके ऊपर भी उन्हो

ंने रस्सियां बंधवाईं और फिर नाव की सवारी कर वे नदी के बीचों बीच पहुंच

गए। उन्होंने लोगों से कहा कि उन्हें नदी में फेंक दें। हाथ-पैर बंधी हालत में

वे तैरते हुए नदी के दूसरे छोर पर पहुंच गए। इसके बाद उन्होंने पत्रकारों से

यहां तक कहा कि वे ऐसे दो-तीन किलोमीटर तक तैर सकते हैं।
देखिये इन महाशय को जनता की सुरक्षा के स्थान पर अनोखे रिकार्ड को

हासिल करने की कैसी चिंता है। इनकी इस करतूत को आप क्या मानते हैं कृ

पया अपनी राय जरूर बताएं। अगर पर उत्तर प्रदेश के हों तो वहां की पुलिस से

यह सवाल जरुर करें कि ऐसे अधिकारियों को फील्ड में रखकर क्या वाकई

जनता की भलाई हो सकती है।

- रवींद्र कैलासिया

रविवार, 14 जून 2009

क्योंकि चांद भी कभी चंद्रमोहन था .. ..


कहा जाता है कि आसमान में रात को दुधिया रोशनी बिखरने वाले खूबसूरत चांद में दाग है मगर उसी चांद में दाग है यह हरियाणा के चांद के लिए अपमान की बात होगी। वहां के सम्मानित परिवार भजनलाल ने भी एक ऐसे सपूत (?) को जन्म दिया है जिसने उनके परिवार पर दाग लगाया है। चांद कभी अपने प्रेमिका और कथित पत्नी अनुराधा बाली उर्फ फिजा के नाम पर सरेआम भड़क जाते हैं तो कभी उसके घर पहुंचकर रासलीला खेलते हैं। इस पर अभी तक शायद अभिनेता जीतेंद्र की पुत्री एकता कपूर ने गौर नहीं किया नहीं तो वे भी क शब्द का नया धारावाहिक शुरू कर देती। हरियाणा में चांद-फिजा के बीच जो खेल चल रहा है वह समाज में फैलती विकृति का एक उदाहरण है। कुछ दिन पहले चंद्रमोहन उर्फ चांद ने सरेआम कहा था कि फिजा का मेरे सामने नाम लिया तो वे मानहानि का मुकदमा लगा देंगे लेकिन अब वे उसके घर पहुंचकर माफी मांग रहे हैं। कह रहे हैं कि मुझे लोगों ने बहकाया दिया था। तब वे कहते थे कि जो पत्नी अपने पति पर रेप का आरोप लगाए उसके साथ कैसे रह जा सकता है। उन्होंने तब फिजा को अच्छी महिला मानने से इनकार कर दिया था। वहीं अनुराधा बाली उर्फ फिजा ने चांद को घर बुलाकर तमाम पत्रकारों को टीवी के लिए अलग-अलग पोज में तस्वीरें दीं। कुछ दिन पहले चादं मोहम्मद उर्फ चंद्रमोहन ने आरोप लगाया था कि फिजा पब्लिसिटी के लिए यह सब करती है तो फिर वे दोबारा उसके झांसे में कैसे आ गए। इतने लड़ाई झगड़े और गंभीर आरोपों के बाद अब दोनों के प्रेंमी-प्रेमिका जैसे पोज देखकर लगता है कि दोनों नाटक कर रहे हैं। क्या इससे हमारे समाज को जरा भी चोट नहीं पहुंच रही जो दोनों के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठ रही?

- रवींद्र कैलासिया

शनिवार, 13 जून 2009

मानसून की पहली बारिश का शानदार स्वागत

भोपाल शहर में शनिवार की शाम ऐसी झमाझम बारिश हुई कि सड़कें लबालब भर गईं। वाहनों की रेलमपेल में बारिश का पानी ऐसी छलांग लगा रहा था कि मानो वह भी अटखेली कर रहा हो। उसे भी गर्मी से राहत मिली है। वह भी नौ तपे की गर्मी से परेशान हो चुका था। बारिश के पानी की अटखेलियों के बीच शहर में भीगे हुए शरीर में महिलाएं, युवतियां और बच्चियां अलग ही आनंद लेती नजर आईं। युवकों की टोलियां भी बारिश में नहाने के लिए निकल चुकी थी। 2009 की पहली बारिश ने पूरे शहर की सड़कों को जहां अलमस्त कर दिया था वहीं नागरिक भी इस मौसम में डूब गए थे। करीब एक घंटे तक शाम को ऐसा मौसम हो गया था जैसे कहीं स्वर्ग में आ गए हों। इसके बाद भी काफी देर तक बारिश की बौछारों ने लोगों के चेहरों को मुरझाने नहीं दिया। मगर बिजली विभाग और नगर निगम की बारिश पूर्व की तैयारियों की बखिया उधड़ गई। नालों में जरा-सी बारिश में उभान आ गया तो बिजली के तार बारिश और तेज हवा से तार-तार हो गए। बिजली कई इलाकों मेंं तीन से चार घंटे तक गुल हो गई। मगर इसके बाद भी लोगों ने मौसम का खूब आनंद लिया। मानसून का शानदार स्वागत किया। - रवींद्र कैलासिया

शुक्रवार, 12 जून 2009

विदेशों की तर्ज पर बिना काम के खाना

मप्र में शिवराज सिंह चौहान की लाड़ली लक्ष्मी, जननी और कन्यादान जैसी योजनाओं से विधानसभा चुनाव जीते थे और लोकसभा चुनाव में उन्हें ऐसी कोई दूसरी योजना बनाने का अवसर नहीं मिला तो करारी हार मिली। अब नगर निगम, नगर पालिका, पंचायत चुनाव आने जा रहे हैं और उन पर कब्जा जमाने के लिए वे जनता को बेवकूफ बनाने का यह मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहेंगे।
मतदान केंद्र पर ज्यादा संख्या में पहुंचने वाले वोटर को रिझाने के लिए अब प्रदेश भाजपा सरकार उनको फिर दाना फेंकने जा रही है। इस बार गरीब बच्चों के साथ उनके परिवार महिलाओं और बुजुर्गों के लिए उसने खाना देने की योजना तैयार की है। अगर सब कुछ उनकी योजना के मुताबिक चला तो गरीब परिवार के बच्चे के अलावा महिलाओं- बुजुर्गों को काम करने की जरुरत नहीं पड़ेगी।
सरकार की योजना तो अच्छी है मगर यह समाज के हित में नहीं है। ऐसे में समाज को हम मक्कारी की राह पर ले जा रहे हैं। काम करने के लिए अभी जो व्यक्ति दर - दर भटकता है वह फिर सरकारी खाने के लिए लाइन में लगने लगेगा। काम के लिए मजदूर नहीं मिलेंगे। मजदूरों की कमी से योजनाओं की लागत बढऩे की आशंका रहेगी। महिलाओं और बुजुर्गों के लिए अगर खाने का इंतजाम करना ही है तो उसके लिए बुनियादी स्तर से अधोसंरचना तैयार कर पूरा सेटअप बनाकर उसे लागू किया जाना चाहिए। केवल साल दो साल की अस्थाई व्यवस्था से उनका भला नहीं किया जा सकता।
शिवराज सरकार के सलाहकार शायद उन्हें अर्जुनसिंह की राह पर ले जा रहे हैं। जिस तरह अर्जुन सिंह ने प्रदेश को कई समस्याओं को जन्म दिया। झुग्गी बस्तियों के पट्टे देने की प्रथा के कारण आज सरकारी जमीन पर झुग्गी तानने की आदत ऐसी बढ़ गई है कि चुनाव के पहले तो सैकड़ों झुग्गी कुकरमुत्ते की उग जाती हैं।
वोट और कुर्सी बनाए रखने के लिए शिवराज सिंह चौहान भी शायद वही गलती दोहरा रहे हैं। जिस तरह झुग्गी बस्तियिों के लिए उन्हें लोग कोसते हैं कहीं ऐसा कर वे उसी अंदाज में बाद में याद नहीं किए जाएं। आखिर जो रोटी और सब्जी गरीबों को वे देंगे वह निम्न मध्यम, मध्यम, उच्च मध्यम परिवारों के हिस्से से काट कर ही दी जाएगी। ऐसे में उनके बारे में सरकार कब सोचेगी? बच्चों और बुजुर्गों को बिना काम के खाना दिया जाए मगर महिलाओं को जब बराबरी का दर्जा देने के लिए चारों तरफ चर्चा चल रही है तो उन्हें कम से कम ऐसे फैसलों से अलग रखना चाहिए। क्या हम विदेशों की नागरिकों को देशहित में सोचने के प्रेरित नहीं कर सकते। उनमें ज्यादा से ज्यादा संख्या और पूरा कर देने की भावना जाग्रत करने की कोशिश नहीं कर सकते। केवल वोट की खातिर कब तक सरकारें ऐसे कदम उठाती रहेंगी?
- रवींद्र कैलासिया

गुरुवार, 11 जून 2009

हॉकी के बाद अब गिल खेलों के पीछे

भारतीय हॉकी फेडरेशन के निलंबित अध्यक्ष केपीएस गिल हॉकी के बाद अब भारत में खेले जाने वाले सभी खेलों के पीछे पडऩे जा रहे हैं। उन्हें हॉकी दुर्दशा दोषी माना जाता रहा है लेकिन शायद उन्हें इतने से संतोष नहीं है।
श्री गिल ने एक समाचार पत्र को बयान दिया है कि वे इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन के समानांतर एसोसिएशन खड़ी करेंगे। उनके मत के मुताबिक वे भारत में खेलों की दशा से बेहद चिंतित हैं। इसके लिए वे जून को सभी राज्यों की हॉकी एसोसिएशन की बैठक बुलाने जा रहे हैं। राज्यों की एसोसिएशन मं अपने कार्यकाल में बैठाए पदाधिकारियों से अपने साथ लेने की कोशिश करने जा रहे हैं। देखना यह है कि उन्हें गुरङ ु दीक्षा देने के लिए कितने राज्यों के पदाधिकारी आगे आते हैं।
श्री गिल का कहना है कि वैसे तो यह बैठक हॉकी दुर्दुशा पर चिंता के तहत बुलाई गई है और इससे हॉकी को ऊबारने के लिए बातचीत होगी मगर देश में दूसरे खेलों की हालत को भी मद्देनजर रखा जाएगा। इस बैठक के बाद अंतर रामट्रीय ओलंपिक कमेटी मान्यता का फैसला लिया जाएगा।
हॉकी के मौजूदा हालात के लिए दोषी माने जाने वाले गिल के साथ समर्थन में बंगाल हॉकी एसोसिएशन आ गया है। देखना यह है कि हॉकी हो या दूसरे खेल भारत को ओलंपिक में एक- एक पद के लिए तरसने वाले देश में खेल की चिंता करने वाले वास्तविक लोग भी सामने आएंगे या गिल या ऐसे ही दूसरे लोगों के हवाले खेल कर दिए जाते रहेंगे। व्यक्ति आधारित खेल संगठनों के कारण आज हमारी यह हालत है। दूसरे खेलों की बलि चढ़ाने वाले क्रिकेट को बीसीसीआई ने पैसे की मशीन बनाकर रख दिया है। क्या कभी इस बारे मे ंगिल या उनसे से कथित खेल के शुभचिंतक सोचेंगे? आप भी इस बारे में बताएं कि क्या गिल और बीसीसीआई के पदाधिकारी जैसे व्यक्ति खेलों का भला करने में लायक हैं?
- रवींद्र कैलासिया

बुधवार, 10 जून 2009

कुर्सी मिलने के बाद सुर बदलते हैं अफसरों के

मंगलवार को भोपाल में एक मंच से मप्र के पुलिस महानिदेशक संतोष कुमार राउत ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के तारीफों के पुल बांधना आरंभ किए तो उस समय शायद सीएम को भी शर्म आने लगी होगी। देशभर के करीब एक दर्जन से ज्यादा राज्यों के आईपीएस अफसर की मौजूदगी में राउत ने यह तारीफ की। इसी तरह बिहार के डीजीपी देवकीनंदन गौतम ने भी पत्रकारों से चर्चा के दौरान अपने मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के तारीफों में कोई कसर नहीं रहने दी। एक ने मंच और दूसरे ने पत्रकारों को कहा कि मुख्यमंत्री और उनकी सरकार में कोई दबाव महसूस नहीं करते।
वहीं दूसरी ओर आए दिन सुनने में आता है कि पुलिस पर राजनीतिक दबाव है। राष्ट्रीय पुलिस आयोग, मप्र की पुलिस सुधार के लिए गठित त्रिखा कमेटी से लेकर कई कोर्ट यह मान चुकी हैं कि पुलिस राजनीतिक दबाव में काम करती है मगर पुलिस महानिदेशक बनते ही आईपीएस अधिकारियों के सुर बदल जाते हैं। उन्हें इस तरह के दबाव की बातों से परहेज हो जाता हैै और अकेले में पूछो या सोते समय या सार्वजनिक जगह पर इनके मुंह यही निकलता है कि उन्होंने अपनी पूरी सेवा में यह कभी महसूस ही नहीं किया।
जब राजनीतिक दबाव नहीं होता है तो फिर सुप्रीम कोर्ट कैसे तबादलों और पदस्थापना के लिए अलग से बोर्ड बनाने के निर्देश देती। कई राज्यों में इनका गठन भी हो चुका हैै। अपराध की विवेचना में क्यों फिर हस्तक्षेप होता है और निष्पक्ष जांच के नाम पर क्यों सीआईडी को प्रकरण सौंप दिए जाते हैं।
ऐसे अफसरों को सरकारें भी पसंद करती हैं जो उनकी हां में हां मिलाएं। यही वजह है किसी भी मुखिया की कमान ऐसे अफसर को सौंपी जाती है जो कम से कम सरकार को न में उतर देेने के पहले सोचे। शायद राउत और गौतम भी ऐसे ही अफसरों की गिनती में आते हैं तभी वे मंच से सरकार की तारीफ के साथ कुछ कड़वे सच को कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते।
- रवींद्र कैलासिया

पार्ट टाइमर किसी भी काम से न्याय नहीं करते

जिस तरह विदेशों में पार्ट टाइम जॉब करने वालों से वहां के मूल निवासी परेशानी हैं कमोबेश वैसे ही हालात यहां हमारी धरती पर है। हालांकि विदेशों में जाने वाले लोगों के सामने पैसे का संकट रहता है और इसके लिए वहां जाने वाला कमोबेश हर व्यक्ति यह करता है। मगर यहां समाचार पत्रों के दफ्तरों में काम करने वाले पार्ट टाइमर अपने दूसरे गलत कामों पर पर्दा डालने के लिए ऐसा करते हैं। वे एक तो एक काम की तलाश में भटक रहे व्यक्ति के रोजगार को खाता है दूसरा वह अपने दोनों कामों के साथ इंसाफ नहीं करते।
आमतौर पर समाचार पत्रों के दफ्तर में ऐसे कुछ क्षेत्र हैं जहां ऐसे लोगों की पैठ आसानी से बन जाती है। तथाकथित विशेषज्ञ के नाम पर इन्हें रख लिया जाता है और वे समाचार पत्र की आड़ में मूल कत्र्तव्य वाली जगह पर काम नहीं करते और प्रेस में तो जो उनकी मर्जी आती है वह करते ही हैं। मूल काम पर तो वे प्रेस के नाम पर जो करते हैं वह तो अपनी जगह है मगर इसके साथ समाचार पत्र के नाम उपयोग कर ये लोग दूसरे आर्थिक लाभ वाले काम भी खूब करते हैं।
समाचार पत्रों में कुछ संपादक इसके विरोधी होते हैं और वे ऐसे व्यक्तियों की छंटनी उन्हें बाहर का रास्ता दिखाते भी हैं मगर इनकी पैठ ऐसी होती है कि वे आदेशों को बदलवा देते हैं। कुछ इसमें से इमानदारी से काम भी करते हैं मगर अधिकांश काम की जगह दुकानदारी और प्रेस का नाम ज्यादा उपयोग करते हैं। सही पत्रकार उनके जलवे देखकर जलता भुनता है।
कई बार ऐसे लोगों की समाचार पत्र में ऐसी पैठ हो जाती है कि वे हर छोटे बड़े आयोजनों में असरदार लोगों के ईर्द गिर्द नजर आते हैं। कई बार ऐसा भी होता कि इनके रोजगार की जगह दूसरे सही पत्रकार बलि चढ़ जाती है। कुछ ऐसे तत्व नि:शुल्क काम करने को तैयार हो जाते हैं। आखिर ऐसे लोगों के खिलाफ कुछ करने के लिए पत्रकारों को प्रयास करने की आवश्यकता है। ऐसा माहौल बनाया जाना चाहिए जिससे इनकी प्रवेश ही नहीं हो पाए।

- रवींद कैलासिया

शुक्रवार, 5 जून 2009

साइ•ल पर ज्यादा दिन नहीं चले नेता

आज विश्व पर्यावरण दिवस है। मध्यप्रदेश में ए• साइ•ल राइडर क्लब ने इस मौ•े पर अच्छी पहल •ी है। उस•े द्वारा लोगों •ो इस•े लिए प्रेरित •रने •ी •ोशिश •ी जा रही है •ि छोटे-मोटे •ाम साइ•ल पर जा•र •िए जा स•ते हैं और इससे ईंधन •ी बचत •े साथ पर्यावरण •ो सुरक्षित •िया जा स•ता है। विश्व पर्यावरण दिवस पर क्लब द्वारा पांच •िलोमीटर •ी साइ•ल रैली •ा आयोजन •िया गया है जिस•ा •ई दिनों से व्याप• प्रचार •िया जा रहा है। क्लब •ा उद्देश्य बहुत अच्छा है मगर •ायदे से इस•ी शुरूआत क्लब •े सदस्यों •ो स्वयं •े घर से •रना चाहिए। •ुछ समय पहले मप्र सर•ार •े मुखिया शिवराजसिंह चौहान ने •ेंद्र सर•ार •ी पेट्रोल डीजल •ीमत वृद्धि और आर्थि• मंदी •े दौर में ईंधन •ी बचत •ो ले•र साइ•ल •ी सवारी •र खूब प्रचार पाया था। तब मुख्यमंत्री ने ऐलान •िया था •ि सप्ताह में ए• दिन वे और उन•े मंत्रिमंडल •े सदस्य ेघर से मंत्रालय त• साइ•ल से सवारी •रेंगे। इस ऐलान •े •ुछ दिन बाद ही सर•ार वापस पटरी पर आ गई और सीएम सहित उन•े मंत्री साइ•ल •ो छोड़ •ार पर सवार हो गए। पता नहीं उन्होंने जिन साइ•लों •ो खरीदा था वे उन•े बंगलों में •िस •ोने में धूल खा रही होंगी। अब साइ•ल राइडर क्लब इस मुहिम •ो चला रहा है। क्लब में जो सदस्य हैं वे घर और दफ्तर में तो ऐसी में बैठते ही हैं साथ बिना एसी •े •ार में भी सवारी नहीं •रते। उन्होंने क्लब •े प्रचार •े लिए महंगी-महंगी साइ•लें खरीदी हैं। जिन पर सवार हो •र ये लोग महीने में ए• या दो बार नि•ल पड़ते हैं। ये दो उदाहरण इसलिए दिए हैं •ि पर्यावरण और अर्थव्यवस्था •ी चिंता •रने वाले नेता और अफसर •ो सबसे पहले अपने घर से शुरूआत •रना चाहिए। वे अपने वादे पर अडिग रहे हैं तो जनता खुद ब खुद उन•े पीछे-पीछे चलने लगेगी। यही वजह है •ि जनता उन•ी बातों •ो गंभीरता से नहीं लेती और उन•ी ही तरह आज •ी बात •ो •ल भूल जाती है। आज भी अगर नेता और अफसर •ेवल सप्ताह में ए• दिन साइ•ल पर चल•र मंत्रालय पहुंचने •ा प्रण ले लें और दूसरे अफसर और •र्मचारियों •ो भी इस•े लिए प्रेरित •रें तो देखिए प्रदेश •े सभी शहरों में उस दिन वातावरण •ितना खुशनुमा होगा और आ•ाश में धूंए •े •ाले बादल दिखाई नहीं देंगे।
पर्यावरण दिवस •ी बधाई। पॉलीथिन •ा •म से •म उपयोग •रें और पर्यावरण •ो सुरक्षित •रें।
- रवींद्र •ैलासिया

गुरुवार, 4 जून 2009

अगर वन रहेंगे तब बचेंगे न टाइगर

मध्यप्रदेश टाइगर स्टेट के नाम से जाना जाता है मगर आज बाघों की संख्या आंध्रप्रदेश की तुलना में कम हो चुकी है। आंध्रप्रदेश में जहां 290 टाइगर हैं वहीं मप्र में इनकी संख्या अभी अधिकृत रूप से 300 संख्या बताई जा रही है। मगर इसमें पन्ना के वे 24 टाइगर भी शामिल हैं जिनको लेकर विवाद की स्थिति बन चुकी है। पन्ना में टाइगर की संख्या शून्य बताई जा रही है। केंद्र और हाल ही में मप्र सरकार ने इसकी जांच के लिए एक कमेटी बना दी है। अगर यह संख्या कम कर दी जाए तो मप्र टाइगर स्टेट कहां रहा। टाइगर स्टेट का खिताब तो ऐसे में आंध्रप्रदेश के पास पहुंच जाएगा। मप्र में नेशनल टाइगर अथॉरिटी के 2007 के आंकड़ों के मुताबिक 300 टाइगर थे जिनमें से अकेले कान्हा में 89, बांधवगढ़ में 47, सतपुड़ा में 39, पेंच में 33 और पन्ना में 24 (?) शामिल हैं। विश्व में टाइगर की संख्या 3400 से लेकर 5150 के बीच बताई जाती है। अकेले भारत में 1410 टाइगर बताए जाते हैं। भारत में इनकी संख्या में कमी आती जा रही है। सारिस्का और इसके बाद पन्ना जैसे टाइगर बहुल राष्ट्रीय उद्यानों में इनकी संख्या शून्य होना पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है। आखिर मप्र के जंगलों से टाइगर गए कहां? यह सवाल आज नेता और वन विभाग के आला अफसरों से पूछा जा रहा है? वन विभाग के मुखिया की कुर्सी पर आज जो डा. पीबी गंगोपाध्याय बैठे हैं वे इसके पहले चीफ वार्डन वाइल्ड लाइफ के पद पर थे। उसी समय पन्ना के बाघों की संख्या कम होना बताई जा रही है। ऐसे आला अफसरों के खिलाफ पहले कार्रवाई कर उन्हें वन विभाग के मुखिया पद से हटाया जाना चाहिए, फिर दूसरे अधिकारियों की जांच की जाना चाहिए। सवाल यह उठता है कि टाइगर कहां रहेंगे जब जंगल ही नहीं बच रहे हैं। जंगल कटाई की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। जनता को नेता और वन विभाग के आला अधिकारियों से यह सवाल करना चाहिए। प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने वाले इन लोगों की वजह से आज देश और प्रदेश के लोग सूखा और अन्य प्राकृतिक आपदों से जूझ रहे हैं।
- रवींद्र कैलासिया

बुधवार, 3 जून 2009

तालिबान पैदा •रने •े बाद भी नहीं सुधारना चाहता

पा•िस्तान ने तालिबान •ो जिस तरह से खड़ा •िया उसने उस•े ही घर •ो आग लगाने •ी जो •ार्रवाई पिछले दिनों •ी है उससे पा•िस्तानी अभी-भी सब• लेने •े तैयार नहीं है। वह भारत •े लिए •श्मीर •े बहान जिस गड्ढे •ो खोदना चाहता है उससे भारत तो •िसी तरह बाहर नि•ल आएगा मगर पा•िस्तान इस बार उसमें समा जाएगा और फिर उसे बाहर नि•लने •ा •ो रास्ता भी नहीं बचेगा। मुंबई हमले •े आरोपी हाफिज सईद •ो रिहा •र पा•िस्तान ने अपने असली चेहरे •ो दिखा दिया है। उस पर पा•िस्तानी प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी •े •श्मीर •े राग से विश्व •ो उस•े आतं•वाद परस्त चेहरे •ो पहचान जाना चाहिए। बार-बार उसे आर्थि•, सैन्य और अन्य तरह से मदद •र वि•सित देश अप्रत्यक्ष रूप से आतं•वाद •ो बढ़ावा देने से बाज आएं। भारत •ी सह्रदयता •ा वि•सित देश और पा•िस्तान लगातार लाभ उठा रहे हैं। उन्हें अब सईद •ी रिहाई •े बाद उस•े पीछे छिपे आतं•वाद •ो प्रश्रय देने •े पा•िस्तान •े असली सच •ा विरोध •रना चाहिए। हालां•ि सईद •ो रिहा •रने •ा फैसला वहां •ी •ोर्ट •ा है। मगर इस•े पीछे पा•िस्तान सर•ार •ी पैरवी •ो मुख्य •ारण माना जा रहा है। भारत ने जब पुख्ता सबूत दिए थे तो उन्हें आधार बना•र •ोर्ट •े सामने •ैसे पेश •िया गया? पा•िस्तान सर•ार •ी नीयत तो समय ही साफ हो गई थी जब वह अंतरराष्ट्रीय दबाव •े दौरान बार-बार भारत से सबूत •ी मांग •र आरोपियों •ी गिरफ्तारियों •ो टाल रहा थी। आखिर पा•िस्तान ऐसे तत्वों •ो क्यों पैदा •रता है जो उस•े लिए बाद में सिरदर्द बना जाएं।
- रवींद्र •ैलासियातालिबान पैदा •रने •े बाद भी नहीं सुधारना चाहता पा•िस्तान ने तालिबान •ो जिस तरह से खड़ा •िया उसने उस•े ही घर •ो आग लगाने •ी जो •ार्रवाई पिछले दिनों •ी है उससे पा•िस्तानी अभी-भी सब• लेने •े तैयार नहीं है। वह भारत •े लिए •श्मीर •े बहान जिस गड्ढे •ो खोदना चाहता है उससे भारत तो •िसी तरह बाहर नि•ल आएगा मगर पा•िस्तान इस बार उसमें समा जाएगा और फिर उसे बाहर नि•लने •ा •ो रास्ता भी नहीं बचेगा। मुंबई हमले •े आरोपी हाफिज सईद •ो रिहा •र पा•िस्तान ने अपने असली चेहरे •ो दिखा दिया है। उस पर पा•िस्तानी प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी •े •श्मीर •े राग से विश्व •ो उस•े आतं•वाद परस्त चेहरे •ो पहचान जाना चाहिए। बार-बार उसे आर्थि•, सैन्य और अन्य तरह से मदद •र वि•सित देश अप्रत्यक्ष रूप से आतं•वाद •ो बढ़ावा देने से बाज आएं। भारत •ी सह्रदयता •ा वि•सित देश और पा•िस्तान लगातार लाभ उठा रहे हैं। उन्हें अब सईद •ी रिहाई •े बाद उस•े पीछे छिपे आतं•वाद •ो प्रश्रय देने •े पा•िस्तान •े असली सच •ा विरोध •रना चाहिए। हालां•ि सईद •ो रिहा •रने •ा फैसला वहां •ी •ोर्ट •ा है। मगर इस•े पीछे पा•िस्तान सर•ार •ी पैरवी •ो मुख्य •ारण माना जा रहा है। भारत ने जब पुख्ता सबूत दिए थे तो उन्हें आधार बना•र •ोर्ट •े सामने •ैसे पेश •िया गया? पा•िस्तान सर•ार •ी नीयत तो समय ही साफ हो गई थी जब वह अंतरराष्ट्रीय दबाव •े दौरान बार-बार भारत से सबूत •ी मांग •र आरोपियों •ी गिरफ्तारियों •ो टाल रहा थी। आखिर पा•िस्तान ऐसे तत्वों •ो क्यों पैदा •रता है जो उस•े लिए बाद में सिरदर्द बना जाएं।


- रवींद्र •ैलासिया

मंगलवार, 2 जून 2009

आखिर •ब सोचेंग देशहित में ..

बिहार •े खुसरुपुर में सोमवार जो हुआ क्या वह विरोध •ा सही तरी•ा था। क्या इसमें शामिल लोग देशद्रोही नहीं हैं? उन पर देशद्रोह •ा मु•दमा चलाया जाना चाहिए। मगर इस सवाल •ो नेताओं ने ए•तरफ रख•र राजनीति• रोटियां सें•ना शुरू •र दी हैं।ए• तरफ जहां रेल मंत्री ममता बनर्जी इसे राजनीति• साजिश •रार दे रही हैं तो दूसरी तरफ बिहार •े मुयमंत्री नीतिश •ुमार •ेंद्र सर•ार •ी गलत •ी नतीजा बता रहे हैं। वहीं पूर्व रेल मंत्री लालूप्रसाद यादव ऐसा •रने वालों •ो गलत ठहरा रहे हैं। टे्रनों •ो सही समय पर चलाने और उन•ी दूरी •ो देखते हुए स्टॉपेज तय •रने •ी नीति रेलवे •ी रही है मगर नेताओं ने इसमें अपने मनमुताबि• परिवर्तन ç•ए। लंबी दूरी •ी टे्रनों •े भी जगह-जगह स्टॉपेज दे•र उन•ी यात्रा अवधि बढ़ाई है। इससे लोगों •े अपने गांव और •स्बे में टे्रन •े स्टॉपेज •राने •ी प्रवृçत्त बढ़ी और नतीजा खुसरूपुर है। रेलवे •ो सोचना चाहिए ç• •म से •म ऐसी नीति बनाए जिससे पूरे देश में ए•समान व्यवस्था बनाई जा स•े। इसमें राजनीति• •ो •हीं भी आड़े नहीं आने देना चाहिए। इस•े साथ ही जिन लोगों ने खुसरूपुर में राष्ट्रीय संपçत्त •ो नु•सान पहुंचाया है उन•े खिलाफ राष्ट्रद्रोह •ा मु•दमा चलाया जाना चाहिए। साथ ही उन•ी तत्•ाल पहचान •र उन्हें गिरतार •रना चाहिए।
- रवींद्र •ैलासिया

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