शनिवार, 27 जून 2009

क्या मुख्यमंत्री केवल पार्टी कार्यकर्ताओं का?


मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक बयान दिया है कि नशे के कारोबारियों को भाजपा से लात मारकर निकालेंगे। यह बयान किसी पार्टी का प्रमुख का नहीं बल्कि एक प्रदेश के मुखिया है और अगर वे वाकई इस तरह की विचारधारा वाले मुख्यमंत्री हैं तो उन्हें प्रदेश में शराब के कारोबार पर पाबंदी लगाना चाहिए। मगर वे ऐसा नहीं कर रहे हैं बल्कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष या संगठन के दूसरे प्रमुख पदाधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रहे हैं।

मुख्यमंत्री को अपने इस विचार का पालन हरियाणा और गुजरात की तरह शराब पर पाबंदी लगाकर करना चाहिए। इससे वे न केवल भाजपा कार्यकर्ताओं को नशे के क ारोबार से दूर रख सकेंगे बल्कि समाज को भी एक बुराई से दूर कर सकेंगे। उन्हें प्रदेश की महिलाएं और बच्चे सबसे ज्यादा दुआएं देंगे। मगर वे ऐसा नहीं कर सकेंगे क्योंकि इससे प्रदेश को जितना राजस्व मिलता है उसकी भरपाई के वे दूसरे रास्ते तलाश नहीं सकते। वैसे उनकी यह चिंता बहुत अच्छी है लेकिन उन्हें प्रदेश का मुखिया होने के नाते केवल पार्टी कार्यकर्ताओं के बारे में नहीं राज्य की समूची जनता का ध्यान कर कोई बात कहना चाहिए। यही नहीं उन्हें दोहरे चरित्र की भूमिका नहीं निभाना चाहिए और अगर वे पार्टी कार्यकर्ताओं को नशे के कारोबार से दूर रखना चाहते हैं तो शराब पर पाबंदी लगाकर उनका भला कर सकते हैं।

दूसरी बात यह कि मुख्यमंत्री को क्या लात मारकर निकालने जैसे वाक्यों को सार्वजनिक तौर पर इस्तेमाल करना चाहिए। भले ही यह बात उन्होंने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए कही हो मगर मुख्यमंत्री के नाते उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे संभ्रांत भाषा का उपयोग करेंगे। किसी के दिल को चोट न पहुंंचे ऐसी भाषा तो कतई उपयोग नहीं लाएंगे।


- रवींद्र कैलासिया

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