शनिवार, 25 जुलाई 2009

कौमार्य परीक्षण की आड़, बचीं धोखेबाज महिलाएँ?

गर्भवती महिलाओं के शादी के मंडप में बैठने के बाद मचे बवाल के बाद राजनीति उफान पर है। इस राजनीति में अब हथियार बने महिला आयोग। कांग्रेस ने जहां राष्ट्रीय महिला आयोग की एक सदस्य को कथित कौमार्य परीक्षण के लिए मप्र भेजा तो राज्य सरकार ने अपने राज्य महिला आयोग से जांच रिपोर्ट मांगी। दोनों आयोगों ने अपनी-अपनी सरकार के पक्ष में रिपोर्ट दे दी। केंद्रीय महिला आयोग ने जहां कौमार्य परीक्षण की पुष्टि कर दी तो राज्य महिला आयोग ने राज्य सरकार को क्लीनचिट दे दी कि कौमार्य परीक्षण नहीं हुआ। अब वास्तविकता क्या है आम आदमी की समझ नहीं आ रहा, किसे सही माने और किसे गलत।
महिला आयोगों के रवैये से उनकी कार्यप्रणाली पर जहां सवालिया निशान लग गया है वहीं उनके इस कृत्य से गलत ढंग से सरकारी योजनाओं का लाभ ले रही महिलाओं को एक तरह से प्रश्रय मिला है। उनके द्वारा सरकार को धोखा देकर योजना का लाभ लेने की कोशिश की गई। आज तक उनके खिलाफ राज्य शासन की तरफ से कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की गई। जबकि दूसरी सरकारी योजनाओं का गलत ढंग से फायदा उठाने वालों के खिलाफ संबंधित विभागों द्वारा एफआईआर दर्ज की जाती है। अब राज्य शासन को इस मामले को पुलिस के हवाले कर देना चाहिए। भले ही गर्भवती महिलाओं का कौमार्य परीक्षण हुआ हो या नहीं। मगर उन्होंने योजना का गलत ढंग से लाभ तो लेने की कोशिश की ही है। नेता इस तरफ ध्यान ही नहीं दे रहे हैं कि उन महिलाओं को सबक मिलना चाहिए जो गलत तरीके से सरकारी योजना का लाभ लेने चली थीं। इसमें शायद किसी को भी एतराज नहीं होगा।
- रवींद्र कैलासिया

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी ये सोच बिल्कुल सही है। कौमार्य परिक्षण ग़लत था लेकिन, सरकारी योजनाओं का यूँ फायदा उठानेवाले तो और भी ग़लत हैं। महिलाओं पर ही केवल केन्द्रीत ना रहे एक पूरा रैकेट है इसके पीछे जोकि ये काम करवा रहा हैं।

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  2. माना कि कौमार्य परीक्षण एक गलत निर्णय था। किन्तु इस मुद्दे पर हो रही राजनीति के चलते मूल उदेश्य ही हासिये पर चला गया है कि गलत तरीके से सरकारी योजना का लाभ लेने वाली लाभार्थीयों पर कारवाई होनी चाहिए ओर भविष्य में इस पर लगाम लगनी चाहिए।

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