रविवार, 30 अगस्त 2009

घरोंदे का सपना और सहकारिता विभाग की नीयत



खून-पसीने की कमाई से घरोंदे के सपने को पूरा करने के लिए लोग हाउसिंग सोसायटी में पैसे जमा करते हैं लेकिन सोसायटी के कर्ताधर्ता उनको भूखंड न देकर धोखाधड़ी कर बाहरी सदस्यों को प्लाट देते हैं। मध्यप्रदेश में ऐसे हाउसिंग सोसायटी के खिलाफ सहकारिता विभाग की मिलीभगत लंबे समय से चल रही थी और उसे तोडऩे के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अच्छी पहल की है। सहकारिता विभाग के सालों से जमे अफसरों को हटाकर नए अधिकारियों की पदस्थापना की गई है। हाउसिंग सोसायटी की गड़बडिय़ों पर पर्दा डालने वाले अफसरों को हटाने से समस्या का हल नहीं निकलने वाला बल्कि उसका स्थायी इलाज होना जरूरी है।
सरकार को सबसे पहले सहकारिता विभाग की कमान ऐसे स्वच्छ छवि के अधिकारी को सौंपना चाहिए जिसके मन में गरीब और मध्यम वर्ग के दर्द को समझने की ललक हो। जब ऊपर ऐसे अधिकारी की पदस्थापना हो जाएगी तो नीचे अधिकारी स्वत: कोई ऐसी गतिविधि नहीं करेंगे जिससे लोग ऊपर तक पहुंचें। सहकारिता विभाग में मैदानी अफसरों की संपत्ति का रिकार्ड तलब किया जाना चाहिए। कम से कम उनके पिछले पांच साल की संपत्ति का रिकार्ड देखकर उनसे पूछा जाना चाहिए संपत्ति कहां से आई। उनके विलासिता के साधनों, वाहनों के मालिकाना हक और अचल संपत्ति की जानकारी भी लेना चाहिए।
सहकारिता विभाग में कुछ मैदानी अफसर ऐसे हैं जो दूसरे राज्यों से आए हैं। सहकारी गृह निर्माण समितियों की गड़बडिय़ों पर पर्दा डालने का इन अफसरों को यह फायदा मिला कि उन्हें शहर के लगभग हर कोने में जमीन या प्लाट ऑफर होने लगे। पता चला कि उन्हें अपने रिश्तेदारों को मप्र बुलाना पड़ा क्योंकि उनके नाम से जमीन लेकर उन्हें बसाने का मौका मिल गया। ये शिकायतें आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो के आला अफसर दबी जुबान से कह रहे हैं मगर हाउसिंग सोसायटी की विवेचना अभी चल रही है इसलिए वे खुलकर कुछ भी कह नहीं रहे हैं।
अगर यह सब सच है तो सरकार को ऐसे अफसरों पर नियंत्रण पाने के लिए स्वच्छ छवि के आयुक्त की पदस्थापना करना होगी। अन्यथा सरकार की अच्छी पहल का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आएगा।
- रवींद्र कैलासिया

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