शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

क्या बार गर्ल के साथ बलात्कार कोई अपराध नहीं

राजधानी में 17 जून को गांधीनगर के पास हुए गैंग रैप में पुलिस की विवेचना पर एकबार फिर कई सवाल खड़े हुए हैं। जल्दबाजी में उसने पहले एक स्थानीय दुकानदार को इसमें आरोपी बनाया और अब पुलिस पीडि़त महिला के बार गर्ल होने की वजह से उसके साथ हुई घटना पर ही संदेह करना शुरू कर दिया है। पुलिस को सबसे पहले यह चाहिए कि सामूहिक बलात्कार जैसे संवेदनशील मामले में किसी पर कीचड़ उछालने के पहले साक्ष्य जुटाए।
पुलिस ने पहले एक जबलपुर-जयपुर रोड स्थित परवलिया सड़क के पास एक चाय की दुकान वाले सत्यनारायण शर्मा को पकड़ा और उसे आरोपी के रूप में प्रचारित किया। पुलिस की मौजूदगी में उसने रोते-रोते कहा कि तीन लोग उसकी दुकान पर आए थे और कॉल गर्ल की तलाश कर रहे थे। घटना स्थल पर ब्रेसलेट मिलने को पुलिस ने इतनी गंभीरता से लिया कि जयपुर में जांच कराने का बयान दे दिया और उसके दिमाग में जरा-सी देर के लिए यह सवाल नहीं उठा कि क्या गैंग रैप जैसी घटना में आरोपी इतना बड़ा साक्ष्य छोड़ सकते हैं। अपनी बात को सही साबित करने के लिए उसके द्वारा जोर देकर यह कहा जाता रहा कि आरोपी घटना के बाद जयपुर की ओर भागे हैं। फिर क्या परवलिया सड़क जैसा स्थान वैश्यावृत्ति के लिए कुख्यात भी नहीं है जो सत्यनारायण की दुकान पर कॉल गर्ल की पूछताछ की जाए। भोपाल पुलिस मुंबई में एफआईआर के मुताबिक पीडि़त महिला के पति प्रमोद से बयान लेने गई तो वहां उसे जो जानकारियां मिलीं उसको विवेचना के पहले ही सार्वजनिक कर दिया। पीडि़त महिला बार गर्ल थी, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या बार गर्ल होना अपराध है। बार गर्ल होने पर क्या किसी महिला के साथ बलात्कार की कानून अनुमति देता है। अब पीडि़त महिला के बयानों को लगातार सार्वजनिक कर रही है। जिस प्रमोद को एफआईआर में पति बताया गया वह उसका पति नहीं है और उसके द्वारा भी बलात्कार में सहयोग किया गया। इस तरह पुलिस इस मामले की विवेचना में कई लापरवाही बरतती जा रही। शायद सब इसलिए किया जा रहा है कि घटना के बाद पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए गए थे और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक ने डीजीपी से लेकर आईजी, एसपी तक की खिचाई की थी। लेकिन क्या अब पुलिस का यह रवैया ठीक है। उसे अब वैज्ञानिक साक्ष्य जुटाकर इसमें सही तथ्य सामने आने पर ही कोई बात कहना चाहिए।
- रवींद्र कैलासिया

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