रविवार, 26 जुलाई 2009

वीआईपी सुरक्षा में लापरवाही, समीक्षा तो नहीं समाचार रुकवाने में ताकत झोंकी

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस ) प्रमुख मोहन भागवत पिछले दिनों जब भोपाल आए तो उन्हें वापस नागपुर छोडऩे के लिए भोपाल पुलिस ने कोई इंतजाम नहीं किया और जब अंतिम समय में यह लापरवाही सामने आई तो तुरत-फुरत इंतजाम किया गया। सुरक्षा की विशिष्ट श्रेणी जेड प्लस प्राप्त श्री भागवत की सुरक्षा में लापरवाही को भोपाल पुलिस ने अपनी खामियों को पता लगाने के लिए गिरेबां में झांकने की बजाय इससे जुड़े समाचारों को रुकवाने में समाचार पत्रों पर दबाव के लिए पूरी ताकत झोंक दी।
बात 24 जुलाई की है जब भागवतजी भोपाल से नागपुर के लिए केरल एक्सप्रेस से जाने वाले थे। उनके रिंग राउंड (सुरक्षा घेरे) में लगे सुरक्षाकर्मी अपनी निर्धारित ड्यूटी कर वापस लौटने लगे तो वहां मौजूद स्वयं सेवकों में से किसी ने टोक दिया अब यहां से भागवतजी के साथ कौन पुलिस वाले जाएंगे? यह सुनकर रिंग राउंड ड्यूटी में तैनात सुरक्षाकर्मी भी दंग रह गए क्योंकि किसी अन्य पुलिसकर्मी ने यह जिम्मेदारी ली ही नहीं थी। वरिष्ठ अधिकारियों को जब इस बारे में बताया गया तो उन्होंने आनन-फानन में उनको ही भागवतजी को नागपुर तक छोड़कर आने को कहा और आम्र्स गार्ड की अलग से व्यवस्था की गई।
देशभर में जहां एक तरफ वीआईपी को लेकर हंगामा मचा है वहीं भोपाल पुलिस की इसके प्रति यह लापरवाही साबित करती है कि यहां के अफसर कितने गंभीर हैं। इस खामी को लेकर आत्म-मंथन करना तो दूर भोपाल पुलिस के अधिकारी इसमें जुट गए कि यह खबर किसी अखबार में छप नहीं जाए। इसके लिए उन्होंने पूरी ताकत झोंक दी। हालांकि वे इसमें सफल भी हो गए मगर वीआईपी की गाड़ी अगर स्टेशन से छूट रही होती और रिंग राउंड को वरिष्ठ अधिकारियों को बताने का मौका नहीं मिलता तो क्या स्थिति बनती। ऐसे में वीआईपी के साथ कोई घटना होने पर जिस तरह की जिम्मेदारी तय की जाती क्या इस खामी के लिए वही जिम्मेदारी निर्धारित नहीं होना चाहिए। समाचार पत्रों को क्या पुलिस वाले अपनी वाह-वाही के लिए इस्तेमाल करने का साधन समझने लगे हैं? अपनी आलोचना सुनने या पढऩे का साहस पुलिस में नहीं बचा है? पहले के अफसरों में यह सद्गुण था और इस कारण कई सूचनाएं उन्हें समय पर मिल जाती थीं और वे घटनाओं पर जल्द नियंत्रण पा लेते थे। वीआईपी सुरक्षा में लापरवाही से राजीव गांधी की हत्या हुई तो लालकृष्ण आडवाणी, चिंदबरम पर चप्पल-जूते फेंके जा चुके हैं।
- रवींद्र कैलासिया

4 टिप्‍पणियां:

  1. aaina dekhne me dar lge to aaina hi tod do ke usool pe chal rhi hai police. lekin aapne fir bhi aaina dikha hi dia.patrkarita makkarita na bne ye koshish jari rhna chahiye

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  2. पुलिस हफ्‍ता वसूली करे या सुरक्षा पर ध्‍यान दे?

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  3. kam se kam BJP state ko to shobh deta hi nahi.
    prantu IAS aur IPS jinka yeh kaam hai kyo nahi seriously is ko karte.
    http://parshuram27.blogspot.com/2009/07/blog-post_26.html

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