बुधवार, 17 जून 2009

जोश और जुनून के आगे पैसे के आगे नतमस्तक



क्रिकेट का जुनून भारत में दशकों से है। पहले अधिकांश लोग देश और कुछ व्यक्तिगत नाम के लिए खेलते थे। अब शायद क्रिकेट का मतलब पैसा और पैसा रह गया है। देश की सरकार के लिए जहां चुनाव होने जा रहे थे वहीं बीसीसीआई नोट की बारिश करने वाले आईपीएल ट्वेंटी 20 के आयोजन पर अड़ा था और उसे जब सुरक्षा की दृष्टि से यहां आयोजन की अनुमति देने में सरकार व राज्य सरकारों ने ना नुकूर की तो वे पैसे की खातिर उसे दक्षिण अफ्रीका ले गए। वहां डेढ़ महीने तक खूब नोट बरसे और भारतीय खिलाडिय़ों ने उसके लिए खूब पसीना बहाया। अब जब देश के सिर ट्वेंटी 20 का ताज चढ़ाने की बारी आई तो पता लगा कि ये शेर मांद में नोटों का बिस्तर बनाकर ऐसे मस्त हो गए कि उन्हें न प्रेक्टिस की याद रही न कम डॉट बॉल खेलने की।
आईपीएल ट्वेंटी 20 के बादशाह और देशवासियों के अजीज माही उर्फ महेंद्रसिंह उर्फ एमएस धोनी अब देशवासियों से माफी मांग रहे हैं। क्या उन्हें माफ किया जाना चाहिए? उन्हें अपने वरिष्ठ साथियों के साथ राजनीति करने से फुरसत नहीं है। कभी सचिन तो कभी सहबाग के साथ उनकी राजनीति सामने आती है। विज्ञापनों में इतने व्यस्त रहते हैं कि अब वे क्रिकेटर कम मॉडल ज्यादा बन गए हैं। उनके ही राज्य झारखंड में कई पूर्व क्रिकेटरों, राज्य क्रिकेट संघ के पदाधिकारियों ने उनके और टीम इंडिया के खेल की आलोचना की है।
वैसे परिणाम सामने आने के बाद उसकी आलोचना सबसे आसान होता है। मगर क्रिकेटरों से भारतीयों की ज्यादा भावनाएं जुड़ी रहती हैं और शायद इसी वजह से उन्हें बीसीसीआई नोटों से खूब तौल रहा है। यह पैसा अप्रत्यक्ष तौर पर आम नागरिकों का है। विभिन्न कंपयिनों के विज्ञापन से यह राशि बीसीसीआई को मिलती है और ये कंपनियां अपने उत्पाद की कीमत में शुमार करती हैं। कीमत तो नागरिक ही चुकता है।
हमने ओलंपिक खेलों के स्थान पर क्रिकेट को तव्वजोह दी है मगर क्रिकेटरों द्वारा समय समय पर इसका मजाक उड़ाकर खिताबी दौड़ के समय ही अपने आपको फिसड्डी साबित देशवासियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाया। भारत सरकार को देशवासियों की भावनाओं की कद्र कर बीसीसीआई का नियंत्रण अपने पास लेना चाहिए क्योंकि उसमें बेहिसाब पैसा है और आ रहा है। इस पैसे को दूसरे खेलों में इस्तेमाल किया जा सकता है। आप अपनी राय इस बारे में जरूर दें।

- रवींद्र कैलासिया

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