सोमवार, 29 जून 2009

1946 में भोपाल के हिंदूओं की हालत

आजादी की दहलीज पर जब भारत खड़ा था और राष्ट्रीय सरकार के उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल छोटी-छोटी रियासतों को भारत में मिलाने की कवायद कर रहे थे तब 30 जून 1946 में अलग-अलग विचारधारा वाले हिंदू नेताओं के उन्हें जो आवेदन पत्र दिया उसे पढऩे पर हिंदुओं के साथ हो रहे व्यवहार को लेकर आज रोंगटे खड़े हो सकते हैं। तब मुसलमानों द्वारा कई तरह से ज्यादती की जाती थी। राजनैतिक संरक्षण में धर्म परिवर्तन होता था। उस आवेदन के तथ्यों को पढऩे के बाद लगता है कि भोपाल में हिंदुओं की हालत में बहुत कम बदलाव आया है।
सरदार वल्लभ भाई पटेल को दिए गए आवेदन में भोपाल के भैरोंप्रसाद, उद्धवदास मेहता, लक्ष्मीनारायण शर्मा, बाबूलाल शर्मा, लक्ष्मीनारायण सिंहल, मदनलाल गुप्ता, नारायणदास सिंहल, राजमल वैश्य, जगन्नाथ सर्राफ, रामनारायण अग्रवाल, मिश्रीलाल तिवारी, निर्मल कुमार जैन, चतुर्भुज दास अघ्रवाल ने हस्ताक्ष किए थे। यह आवेदन भोपाल समाचार नाम के साप्ताहिक समाचार पत्र ने सात अक्टूबर 1947 को प्रकाशित किया था। उस समय के हालात बताते हुए इन लोगों ने लिखा था कि जब से लड़ाई चालू हुई तब से फूड कंट्रोल, राशन, टेक्सटाइल विभाग द्वारा हिंदूओं पर अत्याचार किया जा रहा है। मुस्लिम पक्षपाती नीति के कारण हिंदुओं को सदैव शिकार बनाया जाता रहा है। हिंदू मजदूर और किसानों की हालत दयनीय बताई गई।धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर बताया गया कि भोपाल शहर में मस्जिद के 25 कदम के फासले पर रात हो या दिन कभी-भी बाजा नहीं बजाया जा सकता। यदि किसी मंदिर की मरम्मत के लिए आवेदन दो तो नामंजूर हो जाती है जबकि हर साल मस्जिदों की वृद्धि होती रही। मगर मंदिर बनाया जाना लगभग असंभव बताया गया। अखबार ने 1931 और 1941 की भोपाल राज्य की आबादी की तुलना की थी। 1931 में जहां भोपाल राज्य में निम्न हिंदू वर्ग 167017, अन्य हिंदू 396089, जंगली जाति 64485, जैन, सिख आदि 60093 और मुसलमान 88 हजार थी वहीं 1941 में क्रमश: यह आबादी 187243, 409960, 69339, 69003 और 109870 हो गई।
1931 में भोपाल राज्य की आबादी में मुसलमान का प्रतिशत 12 था जो 1941 मं 14 फीसदी हो गया। भोपाल शहर की आबादी 1931 में 61033 थी जिसमें मुसलमान 60 फीसदी थे। 1941 में भोपाल शहर की 75000 की आबादी में 66 फीसदी मुसलमान हो गए। तब हिंदू नेताओं ने आवेदन में यह आशंका जताई थी कि अगर यही वृद्धि दर रही तो 50 साल में भोपाल में गैर मुसलमान आबादी नही ंबचेगी। इसके लिए उन्होंने धर्म परिवर्तन को जिम्मेदार बताया था। आरोप लगाया था कि सरकारी कर्मचारी मुसलमान गुंडों को संरक्षण देते थे और हिंदू स्त्रियों व बच्चे को शिकार बनाते थे। रियासत में अलग महकमा था जिसका स्थानीय काजी प्रधान होता था। यह महकमा धर्म परिवर्तन का काम करता था। धर्म परिवर्तन में मुसलमानों की कई गुप्त संस्थाएं भी थीं। हिंदू महिलाओं के अपहरण की आशंका हमेशा बनी रहती थी।
समाचार पत्र ने लिखा था कि भोपाल राज्य में मुसलमानों को बसाने का काम किया गया। बाहरी मुसलमानों को उच्च पदों पर बैठाया गया या नौकरियां दी गईं। पठान पेशावर और उत्तर पश्चिम सीमांत से फौज में भती कर लोगों को लाया गया जो अपने आपको भोपाली बताते हैं। तिब्बत में लूटमार करने वाले रज्जाकों ने कश्मीर में शरण ली मगर वहां से भगाए तो वे भोपाल आ गए। यहां उनके लिए सुविधा आदि देने हेतु अलग महकमा बनाया गया। बड़े-बड़े ठेके राज्य के बाहर के मुस्लिमों को दिए गए। आवेदन में बताया गया था कि सरकारी नौकरियों में भी हिंदुओं को जगह बहुत कम थी। सात हजार में से केवल 400 हिंदू थे। ये भी निचले ओहदों के कर्मचारी ज्यादा थे। पांच मिनिस्टर्स में कोई हिंदू नहीं था। 30 सेक्रेटरी व अंडर सेक्रेटरी में 1, चार हाईकोर्ट जज में 1, दो सेशन जज में से शून्य, 18 दूसरे जज में से चार हिंदू थे। एक इंस्पेक्टर जनरल पुलिस और दो डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल पुलिस में से कोई भी नहीं तो पांच सुपरिटेंडेंट पुलिस में से एक हिंदू था। 12 इंस्पेक्टर पुलिस में से 2, 63 सब इंस्पेक्टर पुलिस में से 3, 140 हेड कांस्टेबल मेंसे पांच तो लगभग 1000 कांस्टेबल में से 50 हिंदू सिपाही थे। चारों नाजिम व डिप्टी नाजिम मुसलमान थे। वहीं 20 तहसीलदार में से 3, 25 नायब तहसीलदार मे से दो हिंदू ते। इन आंकडों को आधार बनाकर तत्कालीन हिंदू नेताओं ने सरदार पटेल को बताया था कि भोपाल राज्य में हिंदुओं की हालत काफी दयनीय है। यह आवेदन तब समाचार पत्र ने प्रकाशित किया था। यह समाचार पत्र भोपाल राज्य के इतिहास की एक पुस्तक में उपलब्ध है।
- रवींद्र कैलासिया

1 टिप्पणी:

  1. उपयोगी जानकारी देने के लिए धन्यवाद।
    धर्मांतरण तो अब एक सुनियोजित और सुव्यव्स्थित प्रक्रिया बन चुकी है। इसके कर्ता धर्ता बड़े सक्रिय हैं। इतने की हिन्दी ब्लॉग दुनिया में भी छ्द्म नामों और उद्देश्यों से कितने ही ब्लॉग हैं!

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