गुरुवार, 4 जून 2009

अगर वन रहेंगे तब बचेंगे न टाइगर

मध्यप्रदेश टाइगर स्टेट के नाम से जाना जाता है मगर आज बाघों की संख्या आंध्रप्रदेश की तुलना में कम हो चुकी है। आंध्रप्रदेश में जहां 290 टाइगर हैं वहीं मप्र में इनकी संख्या अभी अधिकृत रूप से 300 संख्या बताई जा रही है। मगर इसमें पन्ना के वे 24 टाइगर भी शामिल हैं जिनको लेकर विवाद की स्थिति बन चुकी है। पन्ना में टाइगर की संख्या शून्य बताई जा रही है। केंद्र और हाल ही में मप्र सरकार ने इसकी जांच के लिए एक कमेटी बना दी है। अगर यह संख्या कम कर दी जाए तो मप्र टाइगर स्टेट कहां रहा। टाइगर स्टेट का खिताब तो ऐसे में आंध्रप्रदेश के पास पहुंच जाएगा। मप्र में नेशनल टाइगर अथॉरिटी के 2007 के आंकड़ों के मुताबिक 300 टाइगर थे जिनमें से अकेले कान्हा में 89, बांधवगढ़ में 47, सतपुड़ा में 39, पेंच में 33 और पन्ना में 24 (?) शामिल हैं। विश्व में टाइगर की संख्या 3400 से लेकर 5150 के बीच बताई जाती है। अकेले भारत में 1410 टाइगर बताए जाते हैं। भारत में इनकी संख्या में कमी आती जा रही है। सारिस्का और इसके बाद पन्ना जैसे टाइगर बहुल राष्ट्रीय उद्यानों में इनकी संख्या शून्य होना पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है। आखिर मप्र के जंगलों से टाइगर गए कहां? यह सवाल आज नेता और वन विभाग के आला अफसरों से पूछा जा रहा है? वन विभाग के मुखिया की कुर्सी पर आज जो डा. पीबी गंगोपाध्याय बैठे हैं वे इसके पहले चीफ वार्डन वाइल्ड लाइफ के पद पर थे। उसी समय पन्ना के बाघों की संख्या कम होना बताई जा रही है। ऐसे आला अफसरों के खिलाफ पहले कार्रवाई कर उन्हें वन विभाग के मुखिया पद से हटाया जाना चाहिए, फिर दूसरे अधिकारियों की जांच की जाना चाहिए। सवाल यह उठता है कि टाइगर कहां रहेंगे जब जंगल ही नहीं बच रहे हैं। जंगल कटाई की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। जनता को नेता और वन विभाग के आला अधिकारियों से यह सवाल करना चाहिए। प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने वाले इन लोगों की वजह से आज देश और प्रदेश के लोग सूखा और अन्य प्राकृतिक आपदों से जूझ रहे हैं।
- रवींद्र कैलासिया

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