रविवार, 21 जून 2009

शिव के गुस्से का शिवराज द्वारा मजाक..




भगवान शिव के कऱोध के बारे में कहा जाता है कि उनके गुस्से से भगवान बऱह्मा तक घबराते हैं। मगर उनके नाम के साथ मध्यपऱदेश में राज कर रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गुस्से का सरेआम मजाक उड़ रहा है। मुख्यमंत्री ने शुकऱवार को अपने गुस्से का शायद पहली बार इजहार किया जिसमें सामने थे पुलिस महानिदेशक संतोष कुमार राउत और भोपाल आईजी शैलेंदऱ श्रीवास्तव, एसपी जयदीप पऱसाद। गुस्से की वजह थी भोपाल में लूट की घटनाएं बढ़ रही हैं और सरेराह अपराधियों द्वारा महिलाओं के साथ गैंग रेप जैसी घटनाएं की जा रही हैं। मगर सीएम के गुससे में इतना दम था कि रात के अंधेरे में सरकार ने पऱदेश के ५० में से २५ जिलों के एसपी बदल िदए और तीन रेंज के छह आईजी-डीआईजी को हटा िदया मगर न तो शैलेंदऱ श्रीवास्तव का नाम था न जयदीप पऱसाद का।
मुख्यमंत्री शायद यहां असहाय महसूस कर रहे हैं क्योंकि जिन अधिकारियों की डोर उनके हाथ में नहीं हैं। आखिर उनके गुस्से के चंद घंटे बाद जो पुलिस के थोकबंद तबादला आदेश जारी हुए उससे तो यह लगता है। उनके गुस्से में भोपाल की जनता की पीड़ा तो नजर आ रही थी मगर तबादला आदेश में उनकी पीड़ा नजर नहीं आई। क्या वे जनता को अपने गुस्से के बाद भी अफसरों को हटा नहीं पाने की वजह बता पाएंगे।
बढ़ते अपराधों के बारे में माना जाता है कि पुलिस की अपराधियों के साथ सांठगांठ हो चुकी है या उनका कंट्रोल समाप्त हो चुका है। पुलिसिंग सही तौर पर नहीं हो रही। न तो रात्रिगश्त की जा रही न अपराधियों की सही तौर पर की जा रही। न अपराधों में पकड़े जा रहे नए अपराधियों का सही रिकाडर् रखा जा रहा। पढ़ने के लिए भोपाल आ रहे छात्रों के रिकाडर् को रखे जाने की आज जरूरत है जिसके लिए थाना स्तर पर ज्यादा काम होने की आवश्यकता है। बीट में सिपाही और हवलदार को ज्यादा काम करने की जरूरत है। जगह-जगह हास्टल बन जाने से उन्हें घूम-घूमकर उनमें रह रहे छात्रों के बारे में हर हफ्ते-दस दिन में उनके बारे में पूछताछ करने की जरूरत है। उनके रहन-सहन पर लगातार नजर रखने की आवश्यकता है। उनके पड़ोसियों से उनके बारे में पूछताछ करने आवश्यकता है।
पुलिस जब ये सारे काम करेगी तो जनता में विश्वास जागेगा और पुलिस की आलोचना होने से बचेगी। दूसरे राज्यों की तरह अपराध दजर् होने से परहेज की पऱवृत्ति को त्यागना होगा। जितने ज्यादा अपराध दजर् होंगे उतने ज्यादा पुलिस को इनवेस्टीगेशन करना होगा जिससे अपराधियों की धरपकड़ होगी और फिर अपराधियों में खौफ बैठेगा कि कहीं कुछ किया नहीं उन्हें पुलिस पकड़ लेगी।
एकबार फिर मुख्यमंत्री के गुस्से पर आता हूं। वे दिखावा नहीं करें क्योंकि जो वे करना चाहते हैं कर नहीं पाते। पहले वे जहां सरकार की डोर है वहां से हरी झंडी ले लिया करें फिर अफसरों पर गुस्सा निकाल करें क्योंकि इससे अफसरों में उनकी छवि पर असर पड़ता है। गुस्से से लाल-पीले होने के बाद भी जब वे निणर्य नहीं ले पाते तो संबंधित अफसर कई जगह उनके असहाय होने की खबरें बताता है और दोस्तों-साथियों को सुनाता है।

-रवींदऱ कैलासिया

2 टिप्‍पणियां:

  1. आप का आलेख मुख्यमंत्री बिरादरी के लिए बहुत ही अपमान जनक है। यह तो अभी हिन्दी ब्लाग जगत में मुख्यमंत्री पाठक इने गिने ही हैं और वे भी मित्र ही हैं। मैं ने भी आप के इस आलेख का किसी मुख्यमंत्री मित्र से उल्लेख नहीं किया है। इस आलेख के आधार पर कोई भी सिरफिरा मुख्यमंत्री मीडिया में सुर्खियाँ प्राप्त करने के चक्कर में आप के विरुद्ध देश की किसी भी अदालत में फौजदारी मुकदमा कर सकता है। मौजूदा कानूनों के अंतर्गत इस मुकदमे में सजा भी हो सकती है। ऐसा हो जाने पर यह हो सकता है, कि हम पूरी कोशिश कर के उस में कोई बचाव का मार्ग निकाल लें, लेकिन वह तो मुकदमे के दौरान ही निकलेगा। जैसी हमारी न्याय व्यवस्था है उस में मुकदमा कितने बरस में समाप्त होगा कहा नहीं जा सकता। मुकदमा लड़ने की प्रक्रिया इतनी कष्ट दायक है कि कभी-कभी सजा भुगत लेना बेहतर लगने लगता है।

    एक दोस्त और बड़े भाई और दोस्त की हैसियत से इतना निवेदन कर रहा हूँ कि कम से कम इस पोस्ट को हटा लें। जिस से आगे कोई इसे सबूत बना कर व्यर्थ परेशानी खड़ा न करे।

    आप का यह आलेख व्यंग्य भी नहीं है, आलोचना है, जो तथ्य परक नहीं। यह मुख्यमंत्री समुदाय के प्रति अपमानकारक भी है। मैं अपने व्यक्तिगत जीवन में बहुत लोगों को परेशान होते देख चुका हूँ। प्रभाष जोशी पिछले साल तक कोटा पेशियों पर आते रहे, करीब दस साल तक। पर वे व्यवसायिक पत्रकार हैं। उन्हें आय की या खर्चे की कोई परेशानी नहीं हुई। मामला आपसी राजीनामे से निपटा। मुझे लगा कि आप यह लक्जरी नहीं भुगत सकते।
    अधिक कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ।

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  2. कानून व्यवस्था की हालत तो खराब हुई है. ध्यान देने वाली बात है. नेताओं का असमाजिक तत्वों के सर पर हाथ है और पुलिस मजबूर हो जाती है.

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